क्वालिटी एजुकेशन के लिए छात्र- शिक्षक का संतुलित अनुपात होना अत्यावश्यक

बड़वानी; शिक्षाविद् व आदर्श कॉलेज बड़वानी के प्राचार्य डॉ प्रमोद पंडित ने गुरूवार को महाविद्यालय के शैक्षणिक स्टाफ के साथ उच्च शिक्षा विभाग की महाविद्यालयों में वर्तमान में जारी प्रवेश प्रक्रिया पर चर्चा की।
शिक्षाविद डॉ. प्रमोद पंडित ने विद्यार्थियों के प्रवेश की स्थिति को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि शासन और उ.शि.वि. विभाग द्वारा प्रत्येक जिले में ब्लॉक एवं तहसील स्तर पिछले 10 वर्ष में अनेक नवीन शासकीय महाविद्यालय प्रारंभ किए गए हैं। उन महाविद्यालय में अनेक प्रकार की अत्याधुनिक शिक्षण की व्यवस्थाए एवं अधोसंरचनागत सुविधाएं भी उपलब्ध करवाई गई है। लेकिन प्रवेश प्रक्रिया के दौरान यह आमतौर पर देखा जा रहा है कि विद्यार्थी एवं पालकगण प्राथमिकता के आधार जिला मुख्यालय के अग्रणी महाविद्यालयों में ही अपने बच्चों को स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर प्रवेशित करवाने के इच्छुक रहते हैं। ऐसी स्थिति में नवीन महाविद्यालयों में अत्यंत कम संख्या में छात्र-छात्राएं प्रवेश ले रहे हैं तथा इन महाविद्यालयों के अस्तित्व पर ही एक संकट खड़ा हो रहा है।
डा. पंडित ने बताया कि बड़वानी जिले में ही शासकीय महाविद्यालय पाटी, बलवाड़ी, राजपुर यहां तक की जिला मुख्यालय पर ही प्रारंभ हुआ। शासकीय नवीन आदर्श महाविद्यालय भी छात्रों प्रवेश की संख्या की कमी को महसूस कर रहा है।
शिक्षाविद् के रूप में डॉ. पंडित ने कहा कि नैक एवं राष्ट्रीय स्तर पर रूसा एवं विश्व बैंक परियोजनाओं में इस बात पर स्पष्ट जोर दिया गया है की प्रत्येक महाविद्यालय में विद्यार्थियों की एवं शिक्षकों की संख्या का अनुपात एक निश्चित होना चाहि। तभी क्वालिटी एजुकेशन को हम बनाए रख पाएंगे। परंतु धरातल पर ऐसा हो नहीं रहा है, यह अत्यंत चिंतन का विषय है। शिक्षाविदों को इस बात से शासन को अवगत कराना आवश्यक होगा कि जिला मुख्यालय पर स्थित अग्रणी महाविद्यालय में प्रवेशित छात्रों की संख्या को एक निश्चित सीमा तक सीमित किया जाए एवं जिले के अन्य महाविद्यालय में छात्रों को प्रवेश लेने हेतु प्रेरित एवं उनके आवास के पते के आधार पर अनिवार्य किया जाए। तभी तहसील एवं ब्लॉक स्तर पर प्रारंभ हुए महाविद्यालय भी उच्च शिक्षा में अपना सही योगदान दे पाएंगे एवं विद्यार्थियों को भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप अध्ययन -अध्यापन का सही लाभ मिल पाएगा। डॉ. पंडित ने अपने व्यक्तिगत अनुभव से इस बात को बताया है कि विद्यार्थी संख्या अत्यधिक होने से क्वालिटी एजुकेशन में अनिवार्य रूप से गिरावट आती है और विद्यार्थियों का संपर्क अपने प्राध्यापकों से बहुत कम हो पाता है और यह शिक्षा की एक खानापूर्ति जैसा हो जाता है। अतः इस पर गंभीरता के साथ कार्य करना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षाविद के रूप में एवं उच्च शिक्षा विभाग के प्रामाणिक लेखक के रूप में वे अपनी बात को उच्च अधिकारियों एवं शिक्षाविदों के बीच में पूर्व में भी रख चुके हैं एवं भविष्य में भी इस पर चर्चा करके निर्णय हेतु अपनी बात रखेंगे । ज्ञातव्य है कि डॉ. पंडित विश्व बैंक परियोजना के राज्य स्तरीय एकेडमी एक्सपर्ट व फोकल प्वाइंट के रूप में प्रदेश के अनेक महाविद्यालय में अपना एक्सपर्टीज उपलब्ध करवा चुके हैं एवं सतत रूप से शिक्षाविद् लेखक के रूप में अपना योगदान प्रदेश की शिक्षा में दे रहे हैं।