शिष्य की रूह को पकड़कर उसमें चैतन्यता का भाव भरने वाला होता है गुरू –पं. सत्तन
गुरु तत्व’ एवं श्रद्धा विषय पर श्री श्रीविद्याधाम में हुआ प्रेरक व्याख्यान

श्री श्रीविद्याधाम
शिष्य की रूह को पकड़कर उसमें चैतन्यता
का भाव भरने वाला होता है गुरू –पं. सत्तन
‘गुरु तत्व’ एवं श्रद्धा विषय पर श्री श्रीविद्याधाम में हुआ प्रेरक व्याख्यान
इंदौर। गुरू वह होता है, जो शिष्य की रूह पकड़कर उसमें चैतन्यता का भाव भरता है। गुरू धोबी, शिष्य कपड़ा और मां अम्बे साबुन की तरह हैं, जो शिष्य के जीवन के दाग-धब्बे दूर करते हैं। गुरू के दिखाए हुए आचरण पर चलते हुए हम ऐसे मुकाम पर आ खड़े हो सकते हैं, जब जन-जन को ज्ञान की रोशनी देकर उनके अंतर्मन के अंधकार को मिटाया जा सकता है। श्री श्रीविद्याधाम के संस्थापक ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी गिरिजानंद सरस्वती ‘भगवन’ ने अपने जप, तप और साधना के प्रभाव से धर्म, संस्कृति और समाज कल्याण के क्षेत्र में ऐसे कीर्तिमान रचे हैं कि आज भी उनके प्रति श्रद्धा और विश्वास का अडिग भाव हम सबके मन में बना हुआ है।
राष्ट्रकवि पं. सत्यनारायण सत्तन ने विमानतल मार्ग स्थित श्री श्रीविद्याधाम के संस्थापक महामंडलेश्वर स्वामी गिरिजानंद सरस्वती ‘भगवन’ के 14वें पुण्यतिथि प्रसंग पर गुरुवार की रात को विद्याधाम परिसर पर आश्रम के महामंडलेश्वर स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती के सानिध्य में ‘गुरू तत्व एवं श्रद्धा’ विषय पर बोलते हुए उक्त ओजस्वी एवं प्रेरक विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में आश्रम परिवार की ओर से पं. दिनेश शर्मा, राजेन्द्र महाजन, आचार्य राजेश शर्मा, रमेश पसारी, ममता शुक्ला, आचार्य राहुल कृष्ण शास्त्री, ठा. विजयसिंह परिहार आदि ने पं. सत्तन का शाल श्रीफल से सम्मान किया l विषय प्रवर्तन एवं संचालन पं. दिनेश शर्मा ने किया l
‘गुरू तत्व एवं श्रद्धा’ विषय पर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए पं. सत्तन ने कहा कि गुरू कहीं नहीं जाते, हमारे आसपास ही रहते हैं। ‘भगवन’ के लिए भी हम सब अनुभूत करते हैं कि वे कहीं गए नहीं, हमारे ही बीच रहकर सब पर निगाह रखे हुए हैं। उनके मन में धर्म, समाज और राष्ट्र के प्रति उद्धार का भाव था। उन्होंने भक्ति के साथ शक्ति की भी आराधना की। मातृशक्ति के कल्याण की भावना भी उनके मन में बनी रही। वे यहां पार्थिव प्रतिमा के रूप में नहीं, सशरीर हमें देख रहे हैं। गुरू वहीं रहते हैं, जहां उनकी चेतना विराजित होती है। श्रद्धा तभी होगी जब विश्वास मजबूत होगा। पराम्बा श्रद्धा है और शिव विश्वास। इन दोनों के बिना हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर सकते। गौसेवा, ब्राह्मण सेवा, कर्म-धर्म के प्रति श्रद्धा के भाव से गुरू जो भी कुछ हमें विभिन्न मार्ग दिखा गए हैं, उन पर पूरी निष्ठा के साथ चलकर ही हम उनके दिखाए सपनों को पूरा कर सकते हैं। श्रद्धा जब प्रस्फुटित होती है तो उसकी लीला अलग ही होती है। उसी का परिदृश्य हमें विद्याधाम में दिखाई देता है। व्याख्यान के समापन अवसर पर महामंडलेश्वर स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती ने पं. सत्तन को रजत मंडित प्रतिमा भेंट कर सम्मानित किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में ‘भगवन’ के भक्त एवं शिष्य तथा शहर की विभिन्न धार्मिक-सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधि एवं पदाधिकारी उपस्थित थे।