जैन स्थानक में अहंकार त्याग का संदेश, श्रद्धालुओं ने ली तपस्या का दीक्षा संकल्प
सेंधवा। जैन स्थानक में सुव्रताजी म.सा. और शीतल जी म.सा. ने अहंकार, क्रोध और आत्मज्ञान पर दिए अमूल्य विचार

सेंधवा। जैन स्थानक में प्रवर्तक जिनेंद्र मुनि जी की अज्ञानुवर्तनी पूज्य श्री सुव्रताजी म.सा. ने प्रवचन में कहा कि अहंकार किसी का भी स्थायी नहीं होता। सांसारिक ज्ञान तो हम खूब अर्जित करते हैं, लेकिन आत्मिक ज्ञान की ओर हमारा ध्यान कम होता है। आत्मा का कल्याण तभी संभव है जब हम वितराग वाणी को सुनें और उसे जीवन में उतारें।
आत्मज्ञान की राह में बाधाएं
सुव्रताजी म.सा. ने कहा कि जो व्यक्ति अहंकारी, क्रोधी, प्रमादी, रोगी व आलसी होता है, उसे आत्मज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता। पुण्य के प्रभाव से धन-संपत्ति तो मिल जाती है, लेकिन यह शाश्वत सुख नहीं देती। उन्होंने कहा कि संसार के विषय, भोग, कषाय और वासना से दूर रहकर ही सच्चा सुख संभव है।
अहंकार से पतन का रास्ता
प्रवचन में पूज्य शीतलजी म.सा. ने कहा कि अकड़पन से अहंकार जन्म लेता है और अहंकार से क्रोध बढ़ता है। जो व्यक्ति विनम्र नहीं होता, उसका अंत सुनिश्चित है। शीतलजी म.सा. ने कहा कि “जो वृक्ष झुकते नहीं, वे जल्दी टूट जाते हैं।” इसलिए जीवन में विनय गुण आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि चक्रवर्ती सम्राट भी अपना वैभव और रिद्धि यहीं छोड़कर चले गए। फिर भी यदि हम अहंकार करें तो यह मूर्खता होगी। घमंड और अहंकार के साथ जीवन का पतन तय है। जैसे ही अहंकार का विसर्जन होता है, वैसे ही क्रोध भी कम होने लगता है और जीवन में सुख-शांति आती है।
तपस्या का पच्खान
श्री संघ के उपाध्यक्ष परेश सेठिया ने बताया कि प्रवचन के अवसर पर सौ प्रभावती भट्टुलाल जैन ने केवल गर्म जल पर आधारित 6 उपवास, सौ पवन सुराणा ने 4 उपवास तथा सौ सुनीता सुराणा एवं सोनल ओस्तवाल ने 3 उपवास की तपस्या का पच्खान लिया। इसके अतिरिक्त कई श्रावक-श्राविकाओं की तपस्या चातुर्मास प्रारंभ होने के साथ ही सतत जारी है।