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करोड़ो का खेल: चार दिन की चांदनी फिर वही अंधेरी रात, शिक्षा भी बनी व्यापार सब लगे कमाने में सीजन में करोड़ो का खेल।

सबकी दुकानें 'फिक्स' निजी स्कूलों की मनमानी से पालकों पर बढ़ा बोझ विभाग बना अनजान, ठोस कार्रवाई का अभाव

आशीष यादव धार

एक जमाना हुआ करता था। शिक्षा मुफ्त में दी जाती थी। मगर आज शिक्षा का व्यापार बन कर रह गया है। बिना पैसे के शिक्षा ग्रहण कर पाना कोसों दूर है। वही आज सरकार के केंद्रीय विद्यालय में एक दूसरी कक्षा में बच्चो द्वारा आज भी किताबो का आदान प्रदान किया जा रहा मगर निजी स्कूलों में हर साल नई काफी किताबो का बाजार सजाकर कर रख दिया जाता है हर स्कूल की एक दुकान फिक्स रहती है। वही जिले व शहर टॉप स्कूलों की सांठगांठ निजी पुस्तक विक्रेताओं से है। निजी स्कूल अपने हिसाब से सिलेबस तैयार करते हैं और तैयार सिलेबस की किताबें सिर्फ विशेष दुकानों पर ही मिलती हैं। नगर के सभी प्रमुख छोटे बड़े मिलाकर 800 से अधिक स्कूल है जिसमें सभी स्कूलों का हर दुकानदार से साठगांठ हैं। स्कूल शुरू होने के पहले ही निजी स्कूल शहर में अपनी दुकानें फिक्स कर लेते हैं। फिर शुरू होता है लाखों की कमीशनबाजी का खेल। निजी स्कूल और निजी व्यापारियों की इस सांठगांठ का खामियाजा जिले व शहर के पालकों को उठाना पड़ रहा है।

हर पुस्तक विक्रेता अटैच:
जिले व शहर का हर निजी स्कूल अपने हिसाब से सिलेबस तैयार करता है। इसके बाद सिर्फ उसी दुकान पर सिलेबस की पुस्तकें मिलती हैं जहां से निजी स्कूल की सेटिंग हो गई हो। आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो पुस्तक विक्रेताओं को बिक्री में खासा कमीशन मिलता है। जिले में 500 से अधिक दुकान तो शहर 10 दुकानों में पुस्तकों का खेल जारी है। आपसी सहमति से इन दुकानदारों ने स्कूल भी बांट लिए हैं। एक दुकान में चार से पांच स्कूलों की किताबें मिलती हैं। सूत्रों की मानें तो सिटी इंटनेशनल , दिल्ली पब्लिक, सेंट जार्ज, सीके चंदेल, धार पब्लिक, मॉडर्न एकेडमी, गुरुकुल, एमीनेंट, पाटीदार स्कूल, गौतम पब्लिक की पुस्तको की दुकानें फिक्स है तो कुछ स्कूल वाले स्कूल से ही देते है मिलती है। अगर दूसरी दुकान पर इन स्कूलों की पुस्तकों का सेट लेने जाएंगे तो नहीं मिल पाएगा। नगर के टॉप टेन स्कूलों में पढ़ने वाले नर्सरी के बच्चों की पुस्तकों का सेट ही महंगा आ रहा है। जानकारी के मुताबिक नर्सरी के बच्चों का सेट 15 सौ 2 हजार रुपए में बाजार में मिल रहा है। इसके अलावा बड़ी कक्षाओं में ये सेट 4 से 5 हजार रुपए में जा रहा है।

सीजन में होता है करोड़ों का खेल:
नगर में किताबों के कारोबार से प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए के वारे-न्यारे हो रहे हैं। जिले व शहर के प्रमुख स्कूलों के बच्चों की गिनती की जाए तो लगभग 80 हजार बच्चे जिले के निजी स्कूलों में पढ़ते हैं। प्रति छात्र अगर 1500 रुपए का सेट माना जाए तो यह आंकड़ा 10 करोड़ रुपए तक पहुँच रहा है। वही यह तो एक अनुमान है मगर जमीनीस्तर पर तो रेट ओर अधिक है तो आंकड़ा ओर बढ़ जाता है। वही अधिक दामों में निश्चित दुकानों से पालकों को सेट खरीदना मजबूरी हो गई है।

आज भी जारी कमीशन का खेल:
निजी स्कूल सत्र शुरू होने के पहले ही व्यापारियों से सांठगांठ कर लेते हैं। व्यापारी भी स्कूलों के लिए कुछ कमीशन निर्धारित कर देते हैं। यदि किसी स्कूल में 1500 बच्चे पढ़ते हैं और वे निश्चित दुकान से 1500 रुपए में प्रति सेट खरीदते करते हैं तो तो यह आंकड़ा 22 लाख के रुपए के पार जाता है। ऐसी स्थिति में स्कूल और निजी पुस्तक विक्रेता दोनों के वारे-न्यारे हो रहे हैं। और बच्चों के पिता- माता पर बोझ बढ़ता ही जा रहा है

सिर्फ कागजों में विभाग:
मुख्यालय पर डीपीसी ओर जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय सिर्फ कागजों में काम करता नजर आ रहा है। विभाग के अधिकारी बस शिकायत करने वाले पर ही करवाई करते है यू बस एसी के रूम में बैठकर कागजो पर योजना तैयार कर ली जाती है। अधिकारी शहर में एक का दुकान पर जाकर फोटो खिंचवाकर ओर कार्रवाई कर वाहवाही लूट रहे हैं। इसके अलावा विभाग ने आज तक निजी पुस्तक विक्रेताओं के यहां जांच करने कोशिश ही नहीं की। हर स्टेशनरी विक्रेता किसी न किसी बहाने स्कूल प्रबंधन से जुड़ा हुआ है। कमीशन के इस सांठगांठ में भाजपा-कांग्रेस का फैक्टर भी काम कर रहा है।

शिक्षा के नाम पर चल रहा धंधा:
शिक्षा के निजीकरण के चलते प्राइवेट स्कूलों ने पढ़ाई को धंधा बना लिया है। हर साल फीस बढ़ोतरी सहित महंगी कॉपी, किताब और बार-बार ड्रेस बदलकर पालकों को खरीदी के लिए मजबूर किया जा रहा है। कमीशन के रूप में यह खेल शिक्षा सत्र आरंभ होने के पहले महीने यानी अप्रेल से की शुरु हो गया था, लेकिन इस पर अभी तक प्रशासनिक अधिकारियों की नजरें नहीं पड़ी थी। वहीं पिछले दिनों एसडीएम रोशनी पाटीदार की कार्रवाई की बाद कुछ उम्मीद जागी है, लेकिन ऐसा न हो कि यह कार्रवाई भी महज दिखावे तक समिति होकर रह जाए।

चौक देने वाली तस्वीर सामने आई:
जिले के एकमात्र शासकीय केंद्रीय विद्यालय धार में सीबीएसई पैटर्न के तहत पढ़ाई होती है। जिसमें एनसीआरटीई की कीताबें ही उपयोग में ली जाती है। केवी में पहली से पांचवीं तक के कोर्स की कीमत एक हजार से भी कम है, वहीं प्राइवेट में यह पांच गुना ज्यादा महंगा मिल रहा है। केवी में शासकीय अधिकारी-कर्मचारियों के बच्चे पढ़ते है, जिनके अभिभावकों को हर महीने शासन से मोटी पगार मिलती है। जबकि प्राइवेट स्कूलों में गरीब, मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चे होते हैं। वही केवी में पुस्तकों का एक दूसरी क्लास में बच्चों द्वारा अदला-बदली का भी तारिक आज अपनाया जा रहा।

ऐसे समझे अंतर:
कक्षा केंद्रीय विद्यालय प्राइवेट
पहली 250 2000
दूसरी 300 2200
तीसरी 450 2800
चौथी 500 3200
पांचवीं 680 3600

यह स्थिति बच्चो ओर स्कूल की स्कूल बच्चे:
1से 8तक 600 करीब 50- 60 हजार के लगभग
9से12तक 229 करीब 25- 30 हजार के लगभग

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