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अपने भक्तों के मान और स्वाभिमान की जो रक्षा करे, उसी का नाम है हनुमान – पं. पुष्पानंदन

कैट रोड स्थित हरिधाम आश्रम पर आज हनुमान प्राकट्य महोत्सव पर सुबह महाआरती, संध्या को 56 भोग और भंडारा

अपने भक्तों के मान और स्वाभिमान की जो रक्षा करे, उसी का नाम है हनुमान – पं. पुष्पानंदन

कैट रोड स्थित हरिधाम आश्रम पर आज हनुमान प्राकट्य महोत्सव पर सुबह महाआरती, संध्या को 56 भोग और भंडारा

इंदौर, । हनुमानजी विलक्षण और अनुपम देवता हैं। उन्होंने कभी भी स्वयं को रामदूत से अलग रखकर कोई परिचय नहीं दिया। उन्होंने अपने बल, बुद्धि और योग्यता से कोई सम्मान प्राप्त करने की अपेक्षा नहीं की, निष्काम भाव से अपने को सौंपी गई सभी जिम्मेदारियों का पालन किया। हम छोटी-छोटी सी बातों के लिए श्रेय लेने में देर नहीं करते, लेकिन हनुमानजी ने कभी श्रेय लेने की कोशिश नहीं की। अपने भक्तों के मान और स्वाभिमान की जो रक्षा करे, उसी का नाम हनुमान है।
प्रख्यात मानस मनीषी आचार्य पं. पुष्पानंदन पवन तिवारी ने शुक्रवार को हवा बंगला, कैट रोड स्थित हरिधाम पर चल रही हनुमत कथा के दौरान उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। प्रतिदिन सुबह हनुमत महायज्ञ का अनुष्ठान भी यहां चल रहा है, जिसकी पूर्णाहुति शनिवार को होगी। इस महायज्ञ में यजमान युगल विश्व शांति और जन कल्याण के भाव से आहुतियां समर्पित कर रहे हैं। नवनिर्मित मां यज्ञशाला में परिक्रमा करने के लिए भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आ रहे हैं। कथा शुभारंभ के पूर्व आश्रम के अधिष्ठाता महंत शुकदेवदास महाराज के सानिध्य में डॉ. सुरेश चौपड़ा, प्रकाश अजमेरा, विजयसिंह राणा, सुधीर अग्रवाल, नागेश अग्रवाल, ओमप्रकाश अग्रवाल एवं गोविंद मंगल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया । विद्वान वक्ता की अगवानी श्याम भांगड़िया, रामचंद्र चौधरी, पीयूष सेन, सौरभ पाटिल, गुमानसिंह ठाकुर, कमल गुप्ता, रोहित दुबे, सीताराम एवं सुरेन्द्र कुमावत ने की। हनुमत महायज्ञ के कारण समूचा हरिधाम परिसर सुबह से दोपहर तक मंत्रों और श्लोकों की ऋचाओं से गुंजायमान बना हुआ है। हनुमान जयंती पर शनिवार, 12 अप्रैल को यहां सुबह 6 बजे जन्मोत्सव आरती के पश्चात 10 बजे अखंड रामायण पाठ की पूर्णाहुति एवं 56 भोग, श्रृंगार दर्शन तथा सांय 7 बजे से भंडारा प्रसादी के आयोजन होंगे।
मानस मनीषी पं. तिवारी ने कहा कि हनुमानजी ने हमेशा सेवक बनकर अपने आराध्य प्रभु श्रीराम के लिए सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने बड़ी से बड़ी चुनौती को भी चुटकियों में स्वीकार किया और हर कसौटी पर खरे उतरे। उनसे जब-जब अपना परिचय पूछा गया तब-तब उन्हें स्वयं को रामदूत बताया। स्वयं के अस्तित्व को अलग रखकर उन्होंने मानो अपने आप को प्रभु श्रीराम में ही समाहित कर लिया। स्वयं की महत्वाकांक्षा और मान सम्मान से परे रहकर उन्होंने समाज और राष्ट्र को ही आगे रखा। छोटा बनकर बड़े से बड़ा काम कैसे किया जा सकता है, यह हनुमानजी से सीखना चाहिए। यह स्वभाव ही व्यक्ति को बड़ा बना सकता है। किराना दुकान पर 50 ग्राम का बाट मंगल के समय सबके ऊपर शिखर पर पहुंच जाता है, यह छोटा सा उदाहरण इस बात को समझाता है कि जितना छोटा बनकर रहेंगे, हमारी जगह भी शिखर पर बनती चली जाएगी।

 

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