इंदौरधर्म-ज्योतिष

दीन-दुखियों के आंसू पोंछने का पुण्यगंगा स्नान से भी ज्यादा डॉ. सलिल

बिचौली मर्दाना रोड स्थित वैष्णो धाम मंदिर पर दिव्यांगों के सहायतार्थ भागवत ज्ञान यज्ञ जारी

इंदौर । भागवत का प्रत्येक संदेश मनुष्य के लिए संजीवनी के समान है। क्षमा एवं दया, मानव जीवन के अलंकार होना चाहिए। हमारा हृदय तभी पवित्र बनेगा, जब उसमें दया के भाव सृजित होंगे। क्षमा से बड़ा कोई दंड नहीं होता, क्योंकि क्षमा का आनंद जीवनभर याद रहता है। जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए क्षमा और दया जैसे आभूषण आत्मसात होना चाहिए। दया के अभाव में मनुष्य पशु तुल्य माना जाता है। दया का गुण हमें शिष्ट और सभ्य बनाता है। किसी मजार पर चादर चढ़ाने से ज्यादा पुण्य किसी ठिठुरते हुए व्यक्ति को चादर भेंट करने से मिलेगा। दुखियों के आंसू पोंछने का पुण्य गंगा स्नान से भी अधिक होता है।
वृंदावन से पधारे प्रख्यात भागवताचार्य डॉ. संजय कृष्ण सलिल ने मंगलवार को जागृति महिला मंडल ट्रस्ट एवं बालाजी सेवा संस्थान ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में अग्रवाल पब्लिक स्कूल के पास बिचौली मर्दाना स्थित वैष्णो धाम मंदिर पर पर दिव्यांगों के सहायतार्थ आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा के दौरान प्राप्त होने वाली धनराशि का उपयोग दिव्यांगों के लिए ट्रायसिकल, कृत्रिम अंग, आपरेशन आदि में किया जाएगा। इसी तरह कथा समापन अवसर पर आने वाले सभी भक्तों को फलदार एवं छायादार पौधे भेंट किए जाएंगे और उन्हें संकल्प दिलाया जाएगा कि वे अपने घर एवं आसपास के क्षेत्रों में उपयुक्त स्थान पर इन पौधों का रोपण कर इनकी देखभाल एवं साज-संभाल भी करेंगे। कथा शुभारंभ के पूर्व श्रीमती विनोद अहलूवालिया, डॉ. आर.के. गौर, वंदना जायसवाल, प्रभा खुराना, सरोज राठी, दीप्ति शर्मा, सरिता छाबड़ा, आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। कथा प्रतिदिन सायं 4 से 7 बजे तक हो रही है। वृंदावन से आए भजन गायकों के भजनों का जादू आज भी छाया रहा।
डॉ. सलिल ने भागवत कथा की विशेषताएं बताते हुए कहा कि जीवन में दया का भाव होगा तो धर्म भी टिका रहेगा। धर्म का पहला लक्षण दया और क्षमा होता है। जिस व्यक्ति के मन में दया का भाव नहीं होता, वह पशु तुल्य माना जाता है। हृदय में पवित्रता तभी प्रवेश कर सकेगी, जब व्यक्ति के मन में दया और करूणा के भाव होंगे। क्षमा को मनुष्य का आभूषण कहा गया है। कई बार तो क्षमा से बड़ा कोई दंड नहीं होता, क्योंकि क्षमा का आनंद जीवन भर याद रहता है, हालांकि कई मामलों में हमारी सौजन्यता का दुरुपयोग भी होता है।

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