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बड़वाह। ध्यान साधना के लिए बनाई 24 फिट लम्बी गुफा…आरती के स्वर सुनते ही खाने के लिए दौड़ लगाते हैं कुत्ते…जहां होता हैं उनका रोजाना भंडारा…

कपिल वर्मा बड़वाह। नावघाट खेड़ी मुक्तिधाम के समीप नर्मदा तट पर स्थित अवधूत संत श्री टाटम्बरी सरकार के 1008 टाटम्बरी सरकार आश्रम पर ध्यान साधना भक्ति के लिए पांच लाख रुपए की लागत से 24 फिट लंबी गोलाकार गोल्डन गुफा का निर्माण हुआ है।

जिसे 5 फिट गोलाकार सीमेंट के पाईप मे बनाया गया। जिसमें ध्यान साधना के दौरान गुफा से ही मां नर्मदा के दर्शन होगे।

इस प्रकार की यह गुफा मां नर्मदा के उदगम स्थल अमरकंटक से लेकर खंभात की खाड़ी समुद्र तक मां नर्मदा के दोनों तटों के बीच एक ही है जो ध्यान साधना तप के लिए बनाई गई है।

मां नर्मदा की ध्यान साधना के लिए 24 फिट लंबी बनाई गई ———- संत श्री टाटम्बरी सरकार ने शुकवार को बताया कि यह गोल्डन गुफा मां नर्मदा की ध्यान साधना के लिए 24 फिट लंबी बनाई गई है। इसके बाद एक गोल्डन कक्ष भी बनाया गया है।उन्होंने बताया कि गुफा के दोनों ओर गोल्डन दरवाजों के ऊपर 9 तालों की चाबियों से बनाया गया है।वर्षाकाल में पानी अत्यधिक होने के बावजूद भी गुफा को हिला नहीं पाएगा।क्योंकि गुफा के चारों ओर मजबूती के लिए लोहे की जाल बिछाई गई है।ताकि गुफा ओर मजबूत रहे।संत श्री ने इस गुफा की लागत पांच लाख रुपए की बताते हुए कहा कि मां नर्मदा की साधना भक्ति करने के लिए इस प्रकार की गुफा मां नर्मदा के दोनों तटों पर नहीं है।

मूक जानवर कुत्तों के लिए भंडारे का आयोजन होता है ————- नर्मदा तट आध्यात्मिक स्थलों व आश्रमों के लिए विख्यात है। आश्रम में आए दिन होने वाले भंडारों में हजारों की संख्या में संत परिक्रमावासी व आम नागरिक प्रसादी ग्रहण करते है। कुछ आश्रम ऐसे भी है जहां केवल मूक जानवर कुत्तों के लिए भंडारे का आयोजन होता है। जो कई वर्षों से लगातार जारी है। मेहताखेड़ी क्षेत्र में अवधूत टाटंबरी सरकार में आश्रम में यह नजारा प्रतिदिन शाम को देखने को मिलता है।

मां कालिका दस मस्तक वाली माता है, ———— संत टाटंबरी सरकार ने बताया कि हिन्दू धर्म में सबसे जागृत देवी हैं मां कालिका है दस मस्तक वाली माता है। पुरी दुनिया में दश भुजा वाली माता तो मिलेगी। लेकिन मां काली की दस विद्या मतलब 10 मस्तक वाली माता मेहताखेड़ी टाटंबरी सरकार में आश्रम में पर ही देखने को मिलेगी। मां काली के दस मुख है इसमें तारा है बगलामुखी है असम बंगाल में अलग-अलग रुप में मंदिर है उनका एक-एक रूप है। नर्मदा के दक्षिण छोर पर स्थित कालीघाट की मां काली की अलौकिकता और उनके प्रति आस्था व विश्वास से लबरेज है।

आरती के स्वर सुनते ही दौड़ लगाता है कुत्तों का झुंड————- शाम होते ही जैसे ही आरती के स्वर और वाद्य यंत्रों की ध्वनि आश्रम में गुजित होती है। कुत्तों का काफिला दूर से ही दौड़ा चला आता है। एक के पीछे एक दौड़ लगाते ये कुत्ते आश्रम के गेट पर खड़े हो जाते है। आरती समाप्त होने के बाद भंडारा शुरु हो जाता है। स्वयं अवधूत श्री टाटम्बरी सरकार सहित उपस्थित भक्तगण भी कुत्तों को भंडारे में बनी दूध रोटी, मिठाई व अन्य पकवान देते है। पिछले 50 वर्षों से आश्रम में मूक जानवरों के लिए भंडारा हो रहा है। टाटम्बरी सरकार कहना है की आदमी तो रोटी कही से भी जुटा लेता है, लेकिन इन मूक प्राणी का कोई सहारा नहीं होता है। इसलिए इन जीवों के प्रति सदा दया का भाव होना चाहिए।

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