बड़वानी; बाग़ की गुफाएं हैं भारत की महान पुरातात्विक संपदा – श्री राजेन्द्र प्रसाद

विद्यार्थियों ने कहा पत्थरों से लिखा महाकाव्य हैं बाग़ की गुफाएं
बड़वानी; सैकड़ों साल पहले बनाई गई बाग़ की गुफाएं भारत की महान पुरातात्विक सम्पदा है. यह हमारे पूर्वजों की वास्तुकला में निपुणता की जीवंत उदाहरण हैं। उन्होंने सीमित संसाधनों का उपयोग करते हुए भव्य सृजन किया है. गुफाओं की भित्तियों पर बने उस समय के चित्र और वहां स्थित प्रतिमाएं भारतीय ज्ञान परंपरा के साक्ष्य हैं। विन्ध्याचल पर्वत में कुल नौ गुफाएं थीं, कुछ गुफाएं बंद कर दी गई हैं, गुफा क्रमांक 2, 3, 4 और 5 आज भी बहुत अच्छी स्थिति में हैं।
ये बातें पुरातत्व विभाग से सम्बन्धित पुरातात्विक स्थलों पर दीर्घ काल तक अधिकारी के रूप में कार्य कर चुके श्री राजेन्द्र प्रसाद ने प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ़ एक्सीलेंस शहीद भीमा नायक शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय बड़वानी के विद्यार्थियों से कहीं। ये विद्यार्थी प्राचार्य डॉ. वीणा सत्य के निर्देशन में स्वामी विवेकानन्द करियर मार्गदर्शन प्रकोष्ठ के माध्यम से एक्सपोजर विजिट के अंतर्गत पर्यटन और पुरातात्विक स्थलों को देख और समझ रहे हैं तथा यात्रा के उपरान्त प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करके उन पर परिचर्चा कर रहे हैं। बाग़ की गुफाओं के अध्ययन में श्री धर्मेन्द्र शर्मा, प्रो. जितेन्द्र ठाकुर और श्री भेरुलाल हम्मड़, दिव्या पाटिल, प्रीति गुलवानिया और वर्षा मुजाल्दे ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

पत्थरों से लिखा महाकाव्य
विद्यार्थी सुरेश कनेश, सुभाष चौहान, मोनिका अवासे, स्वाति यादव, खुशी अग्रवाल आदि ने कहा कि बाग़ की गुफाएं पत्थरों से लिखा महाकाव्य है। यह पांचवीं से सातवीं शताब्दी के दौरान बनी हैं। यहाँ का पूरा परिसर सौन्दर्य से युक्त है, इस विजिट ने हमें अपने अतीत को देखने की नई दृष्टि दी है। सहयोग नागासिह डावर, राहुल भंडोले, कन्हैयालाल फूलमाली, सूरज सुल्या एवं डॉ. मधुसूदन चौबे ने दिया।