दुष्प्रवृत्तियों का संगठित होकर मुकाबला करें–साध्वी कृष्णानंद
गीता भवन में महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के सानिध्य में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ का फूलों की होली के साथ हुआ समापन

दुष्प्रवृत्तियों का संगठित होकर मुकाबला करें–साध्वी कृष्णानंद
गीता भवन में महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के सानिध्य में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ का फूलों की होली के साथ हुआ समापन
इंदौर,। कंस व्यक्ति नहीं, प्रवृत्ति है, जो आदिकाल से चली आ रही है। दुष्टों और असुरों की कोई अलग शक्ल नहीं होती, लेकिन उनकी प्रवृत्तियां मानवता के विरुद्ध होती है। ऐसे लोगों को परमात्मा भी क्षमा नहीं कर सकते। वर्तमान दौर में हमें सनातन धर्म की मजबूती के लिए एकजुट होकर समाज की दुष्ट प्रवृत्तियों का मुकाबला वैसे ही करना होगा, जैसे द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने किया। हमारे धर्मग्रंथ हमें वह विवेक देते हैं, जिससे हम अपने कर्मों को सुधारकर एक ऐसे परिवार और समाज का निर्माण कर सकते हैं, जहां सत्य की प्राण प्रतिष्ठा हो और जहां हम धर्म और संस्कृति के मार्ग पर चलते हुए अनीतियों का संगठित होकर मुकाबला कर सकें।
ये दिव्य विचार हैं वृंदावन-हरिद्वार की साध्वी कृष्णानंद के, जो उन्होंने मनोरमागंज स्थित गीता भवन सत्संग सभागृह में मंगलवार को आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद महाराज के सानिध्य में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में कृष्ण-सुदामा मिलन एवं भागवत के समापन प्रसंग के दौरान व्यक्त किए। प्रारंभ में व्यासपीठ का पूजन समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, ललित अग्रवाल श्याम अग्रवाल मोमबत्ती, किशोर गोयल के साथ कमलेश, गौरव, अर्पित शिवहरे एवं प्रमोद बिंदल आदि ने किया। वृंदावन से आए भजन गायकों ने आज भी भक्तो को खूब थिरकाया। साध्वी कृष्णआनंद ने राधे-राधे जपो चले आएंगे बिहारी… भजन पर तो समूचे सत्संग सभागृह को मंत्रमुग्ध बनाए रखा। कथा समापन पर सैकड़ों भक्तों ने भगवान के साथ फूलों की होली खेली। आयोजन समिति की ओर से समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, श्याम अग्रवाल, शिव जिंदल, संजय मंगल एवं गीता भवन ट्रस्ट के मंत्री रामविलास राठी ने महांमडलेश्वर स्वामी भास्करानंद एवं साध्वी कृष्णानंद का सम्मान किया।
साध्वी कृष्णानंद ने कहा कि दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होगा, जिसने स्मशान, पार्थिव शरीर और जलती चिता नहीं देखी होगी, लेकिन इसके बावजूद व्यक्ति यही समझता है कि अभी उसकी बारी नहीं आएगी। भगवान ने सारी तिथियां दी हैं, लेकिन मृत्यु की तिथि नहीं दी है। भागवत का चिंतन हमें सकारात्मक जीवन का विचार देता है। श्रेष्ठ विचार ही हमारे कर्मों को श्रेष्ठ बनाते हैं। आज समाज अर्थ प्रदान हो गया है। रिश्ते गोण हो गए हैं और धन प्राथमिकता पर आ गया है। हम सैकड़ों बार भागवत कथा सुन चुके हैं। कई बार कथा में बैठे हैं, लेकिन अब कथा भी हमारे अंदर बैठना चाहिए, तभी इस श्रवण की सार्थकता होगी।