भोपाल; 3 लाख आदिवासियों से छीनी ज़मीन!15 दिन में नहीं माने तो कांग्रेस करेगी आंदोलन

भोपाल; वनाधिकार पट्टों की निरस्ती पर कांग्रेस का सीधा हमला। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर लगाए गंभीर आरोप, बोले – सरकार ने तीन लाख पट्टे खारिज किए, आदिवासियों को जंगल से खदेड़ने की साजिश। भोपाल में प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में गुरुवार को नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार, सीडब्ल्यूसी सदस्य कमलेश्वर पटेल और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरुण यादव ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान नेता प्रतिपक्ष ने दावा किया कि अकेले बुरहानपुर जिले के नेपानगर क्षेत्र में 8 हजार वनाधिकार पट्टे और पूरे प्रदेश में करीब 3 लाख पट्टे निरस्त किए जा चुके हैं।
उमंग सिंघार ने आरोप लगाया कि सरकार आदिवासियों को जंगल से बाहर निकालकर इन जमीनों को खनिज कंपनियों को देना चाहती है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि 15 दिनों के भीतर सरकार ने इस मुद्दे पर स्पष्ट निर्णय नहीं लिया, तो कांग्रेस पार्टी उग्र आंदोलन शुरू करेगी।
उन्होंने कहा कि वनाधिकार कानून 2006 के तहत जिन आदिवासियों के पास पीढ़ियों से जमीन पर कब्जा है, उन्हें पट्टे मिलना चाहिए। कई मामलों में स्टेट टाइम के दस्तावेज मौजूद हैं, इसके बावजूद पट्टे खारिज किए गए।
सिंघार ने सरकार पर लगाए ये प्रमुख आरोप:
-
नेपानगर में बिना नोटिस 8 हजार पट्टे निरस्त किए गए।
-
वन विभाग और अधिकारी आदिवासियों को गलत तरीके से दोषी ठहरा रहे हैं।
-
माधुरी बेन जैसे लोग जंगल कटवा रहे हैं, और आरोप आदिवासियों पर लग रहे हैं।
-
सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना कर रही है।
-
आदिवासी क्षेत्रों की जमीनें खदानों व खनिज कंपनियों को देने की तैयारी।
RSS की विचारधारा थोपने का आरोप
प्रेस कॉन्फ्रेंस में उमंग सिंघार ने यह भी आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी आदिवासी क्षेत्रों में आरएसएस की विचारधारा थोपना चाहती है। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज जल, जंगल और जमीन से जुड़ा है और वह प्रकृति पूजक है, लेकिन भाजपा उन्हें धर्म की राजनीति में धकेल रही है।
वर्तमान मुख्यमंत्री की आलोचना
सिंघार ने कहा कि मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अभी तक वनाधिकार पट्टों की कोई समीक्षा नहीं की। उन्होंने मंत्री विजय शाह पर भी सवाल उठाए, जो आदिवासी विभाग के मंत्री होते हुए भी इस मुद्दे पर चुप हैं।
जमीनी सच्चाई और तकनीकी सवाल
सिंघार ने यह भी पूछा कि जब सरकार कहती है कि प्रमाण नहीं हैं, तो वह 50-60 साल पुरानी सैटेलाइट इमेज क्यों नहीं निकालती? उन्होंने कहा कि वन अधिकार कानून के तहत ग्रामसभा की पुष्टि ही पर्याप्त प्रमाण मानी जाती है।
वन संसाधनों पर अधिकार की मांग
नेता प्रतिपक्ष ने सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (CFARR) के तहत आदिवासियों को अधिकार दिए जाने की मांग की और कहा कि केवल झाबुआ में पांच पट्टे बांटे गए हैं, जबकि बालाघाट, मंडला, डिंडोरी जैसे आदिवासी जिलों में हज़ारों लोग आज भी अपने हक से वंचित हैं।