परमात्मा के शब्दकोष में सुख या दुख नाम का कोई शब्द है ही नहीं – सुश्री सर्वेश्वरी देवी

इंदौर, । परमात्मा के शब्दकोष में दुख या सुख नाम का कोई शब्द है ही नहीं। सुख और दुख हमारे कर्मों का फल होते हैं। हम जैसे कर्म करेंगे, फल भी वैसे ही मिलेंगे। न तो कर्म से बच सकते हैं और न ही उनके फल से। गंगा और अन्य नदियां तभी तक पूजनीय हैं, जब तक वे अपने किनारों की मर्यादा में रहकर बहती हैं। किनारा छोड़ने पर कोई भी उन्हें नहीं पूजता, क्योंकि तब वही जीवन रेखा विनाश की बाढ़ लेकर आती है। मनुष्य के जीवन का भी यही सिद्धांत है। भगवान के अवतार सज्जनों के कल्याण और दुर्जनों के विनाश के लिए ही होते हैं।
ये दिव्य और प्रेरक विचार हैं नीलांचल धाम ओंकारेश्वर की भागवताचार्य सुश्री सर्वेश्वरीदेवी के, जो उन्होंने एयरपोर्ट रोड स्थित सुखदेव नगर में सुखदेव वाटिका, पंचवटी हनुमान मंदिर पर चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में व्यक्त किए।
सुश्री सर्वेश्वरीदेवी ने कपिल देवहुति संवाद की व्याख्या के दौरान कहा कि भागवत वह कथा है जो जन्म जन्मांतर के पुण्योदय के बाद नसीब होती है। स्वयं भगवान के श्रीमुख से जिस ग्रंथ की रचना हुई हो, वह कालजयी ही होता है। भागवत को चाहे कल्पवृक्ष कह लें या संस्कारों का महासागर अथवा सदगुणों का भंडार – सबका सार यही है कि जीवन को मोक्ष की ओर प्रवृत्त करना है तो भागवत की शरण जरूरी है। भारत भूमि ही वह स्थान है, जहां इतनी बड़ी संख्या में देवी –देवता अवतार लेकर इस सृष्टि का संचालन और लालन-पालन कर रहे हैं।