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धूर्त और महाठग नितीश कुमार !- निर्मल सिरोहिया

लेख

इंदौर। अवसरवादी, धोखेबाज़, सत्तालोलुप, अतिमहत्वाकांक्षी और इन सबसे बढ़कर धूर्त व महाठग, आज के दौर में यदि ये उपाधियां यदि किसी राजनेता को देना हो तो बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार को दी जा सकती है। इस बेशर्म राजनीतिज्ञ ने लोकतांत्रिक व्यवस्था का जितना मजाक बनाया है, उतना देश के किसी भी राजनेता अथवा राजनीतिक दल ने नहीं बनाया है। दुःखद पहलू यह है कि सत्तालोलुप नितीश कुमार को अन्य दलों के साथ खुद को संस्कारित राजनीति का पैरोकार बताने वाली भारतीय जनता पार्टी भी पोषित और संरक्षित कर रही है। ऐसे में क्या अब यह सोचने अथवा चिंतन करने का वक्त नहीं आ गया है कि जनमत का मखौल उड़ाने वाले इन राजनेताओं और दलों को नियंत्रित किया जाए अथवा उन पर अंकुश लगाया जाए। आखिर एक व्यक्ति, एक दल के विरुद्ध आपकों मत देकर अपना प्रतिनिधि चुनने वाली जनता के साथ यह धोखाधड़ी और ठगी क्यों ? उस जनप्रतिनिधि और दल को जनमत के विरुद्ध जाने का अधिकार किसने दिया ? कैसे वह जनप्रतिनिधि अथवा दल जनभावनाओं के विपरीत और उन्हें नजरअंदाज कर किसी का भी समर्थन कर सकता है अथवा उसकी सत्ता का भागीदार बन सकता है ? किस अधिकार से वह कई बार सिर्फ सत्ता के लिए अपना मत ही नहीं दल तक बदल लेते हैं ! यह स्थिति स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक है, इसलिए चुनाव सुधार की कड़ी में यह प्रावधान लाया जाना आवश्यक है कि जनता द्वारा चुने गए निर्दलीय अथवा किसी भी दल के नेता को अपने निर्धारित पांच वर्षीय कार्यकाल में न तो जनमत व जनभावनाओं के विपरीत अपना समर्थन किसी को देने का हक़ होगा न ही अपना दल बदलने का अधिकार होगा। यदि वह ऐसा करना चाहता भी है तो वह इस्तीफ़ा देकर पुनः जनमत हासिल करें। बावजूद इसके अगर कोई ऐसा करता है, तो उसे आजीवन चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया जाना चाहिए। अन्यथा राजनीति की यह दीमक स्वस्थ लोकतंत्र को बीमार कर नष्ट कर देगी।
इस स्थिति में नितीश जी आपको बधाई नहीं दे सकता।
और हां…. भाजपा का नेतृत्व भी आज बधाई का हकदार नहीं है।
उम्मीद है सिर्फ सत्ता की चाह से ऊपर उठकर राष्ट्र हित के लिए इस घिनौनी राजनीति और उसकी गंदगी को लोकतांत्रिक व्यवस्था से विलग करने के ठोस और गंभीर प्रयास होंगे।

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