धारब्रेकिंग न्यूज़मुख्य खबरे

“*ये साहब आज तक किसी के नहीं हुए*!” बस सहाब को उड़ने का बड़ा शौक है”

नए साहब की बाते तो बादशाह से भी बढ़कर" बातों में तो नेताओं को भी पीछे छोड़ देते साहब"

आशीष यादव धार
धार वन विभाग के नए प्रभारी अधिकारी के कार्यकाल में विभाग की कार्यशैली चर्चा का विषय बन गई है। हाल ही में पदस्थ हुए इस अधिकारी को लेकर कर्मचारियों, स्थानीय ग्रामीणों और विभागीय सूत्रों में असंतोष लगातार बढ़ता जा रहा है। वजह है—उनका व्यवहार, बदलते रुख और कथित सांठगांठ से भरा प्रशासनिक रवैया। ओर साहब को बोल बच्चन का रूप देख लोग हैरान नजर आ रहे है।
बातों के बादशाह, भरोसे के बेमेल”
स्थानीय कर्मचारी और वन क्षेत्र से जुड़े लोगों का कहना है कि साहब की सबसे बड़ी ताकत उनकी वाणी है। वे अपनी बातों से किसी को भी भ्रमित करने में माहिर हैं। लेकिन बातों के पीछे असलियत कुछ और ही होती है। कई कर्मचारियों का कहना है कि अधिकारी न विभाग के हुए, न जनता के, और न ही अपने मातहतों के। “एक बार किसी से काम निकलवा लो, फिर साहब रंग बदल लेते हैं,” – ऐसा आरोप एक वरिष्ठ कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर लगाया।
पहले हीरो, फिर ‘हिरन पर सवार’ साहब!
धार में पदस्थ होते ही अधिकारी ने कुछ समय तक वन अपराधों के खिलाफ सख्ती दिखाई। कुछ सूखी लकड़ियों की जब्ती कर प्रेस में ‘शेर’ जैसी दहाड़ सुनाई गई। लेकिन स्थानीय सूत्रों के अनुसार, यह सब सिर्फ शुरुआती दिखावा था। जल्द ही माहौल बदल गया और अब ‘पेड़ों की सुरक्षा’ की जगह ‘सेवा शुल्क’ की फुसफुसाहटें जंगलों में सुनाई देने लगी हैं।
IMG 20250610 WA0059
इंदौर संभाग से मिली ‘ग्रीन केमिस्ट्री’?
सूत्रों का दावा है कि इंदौर संभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी से इनकी करीबी इस बदलाव की वजह बनी। अब जंगलों की सीमाओं पर अनौपचारिक ‘टोल टैक्स’ जैसा माहौल है। ग्रामीणों का आरोप है कि वन क्षेत्रों में प्रवेश और लकड़ी की ढुलाई जैसे हर काम के पीछे शुल्क तय हो गया है।
जो डाल पर बैठे, वही काट दी”
कर्मचारी वर्ग का कहना है कि इस अधिकारी पर विश्वास करना कठिन है। “जहां बैठते हैं, वही रिश्ता तोड़ देते हैं,” – ऐसा कहना है एक वनरक्षक का। साहब की ‘शकुनी चालें’ अब विभागीय कर्मचारियों के बीच डर और अविश्वास का माहौल बना रही हैं।
जांच से बचने की चालबाज़ी?
पूर्व में हुई विभागीय जांच की आँच अब भी इन पर मंडरा रही है, लेकिन इंदौर-भोपाल संभाग के कुछ प्रभावशाली अधिकारियों की मदद से उन्हें राहत मिलती रही है। सूत्र बताते हैं कि धार में बहाली भी एक ‘प्रायोजित वापसी’ रही है, जिसमें कुछ स्थानीय प्रभावशाली लोगों ने भी सहयोग दिया
क्या कहती है जनता और विभाग?
स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि वन अधिकारी के आने के बाद अवैध गतिविधियों में कमी आने की जगह ‘नियमित फीस’ जैसी व्यवस्था बनने लगी है। कर्मचारी वर्ग उनकी कार्यशैली से नाराज है और कहता है कि विश्वास करना मुश्किल हो गया है। पूर्व जांच अब भी बंद नहीं हुई है, लेकिन सख्त कार्रवाई नहीं हो पा रही।
 “वन देवता से यही प्रार्थना”
अब धार के वन क्षेत्र से जुड़े लोग यही मांग कर रहे हैं कि उच्च स्तर पर निष्पक्ष जांच हो और विभाग को एक ऐसा नेतृत्व मिले जो ईमानदार, जिम्मेदार और जवाबदेह हो। “वरना जंगल में जानवरों से ज़्यादा डर इंसान से होने लगेगा।”

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!