हमारी संस्कृति में कुछ भी कपोल-कल्पित नहीं – पंड्या
भगवान का अवतरण भक्तों की रक्षा और दुष्टों के नाश के लिए ही हुआ है
इंदौर से विनोद गोयल की रिपोर्ट
इंदौर, । भगवान की भक्ति कभी निष्फल नहीं होती। कृष्ण की लीलाएं पूतना वध से शुरू होकर कंस वध तक जारी रही और सभी लीलाओं में भक्तों के कल्याण का ही भाव है। ब्रज की भूमि आज भी भगवान की लीलाओं की साक्षी है, जहां हजारों वर्ष बाद भी गोपी गीत, महारास और कालियादेह नाग के मर्दन के जीवंत उदाहरण मौजूद हैं। हमारी संस्कृति में कुछ भी कपोल कल्पित नहीं है। जितने प्रसंग हमारे धर्म शास्त्रों में बताए गए हैं, उन सबके प्रमाण आज भी देखे जा सकते हैं। अयोध्या और बृज भूमि इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। यह भारत भूमि का ही पुण्य फल है कि यहां सबसे ज्यादा देवी-देवता अवतार लेते हैं। भक्तों की भी यही भूमि है और लीलाओं का अलौकिक मंचन भी भारत की पूण्य धरा पर ही होता है।
अमरेली (गुजरात) से आए प्रख्यात भागवताचार्य नितिन भाई पंड्या ने आज स्नेहलतागंज स्थित गुजराती समाज अतिथि गृह में श्री गुजराती विश्वकर्मा समाज के तत्वावधान में आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। आज कथा में गोवर्धन पूजा का उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया। कथा शुभारंभ के पूर्व अनेक भक्तों ने श्रीमद भागवत के मूल पारायण में भाग लिया। व्यासपीठ का पूजन दिलीप भाई परमार, मनीष पित्रोदा, वीरेन्द्र कनाड़िया, भरत भरड़बा, संजय परमार, शैलेष पीड़वा तथा महिला मंडल की ओर से नीतू बेन भरड़बा, मयूरी पित्रोदा, टीना बेन परमार, मंगला बेन पीड़वा आदि ने किया। संध्या को आरती में सैकड़ों भक्तों ने भाग लिया। सोमवार, 31 जुलाई को सुबह 8 बजे से पूजा अर्चना के बाद 9 से 12 बजे तक सुदामा चरित्र की कथा के बाद यज्ञ हवन के साथ कथा का विराम होगा।
भागवताचार्य पंड्या ने कहा कि यह भगवान का अवतरण भक्तों की रक्षा और दुष्टों के नाश के लिए ही हुआ है। उनकी लीलाओं में प्राणी मात्र के प्रति सदभाव और कल्याण का चिंतन होता है। संसार की दृष्टि से भगवान की लीलाओं का चाहे जो अर्थ-अनर्थ निकाला जाए, यह शाश्वत सत्य है कि यदि हमारी भक्ति अडिग, अखंड और निष्ठावान होगी तो भगवान को भक्तों की रक्षा के लिए आना ही पड़ेगा। भक्त निष्काम और निर्दोष होना चाहिए। भक्ति मनुष्य को निर्भयता प्रदान करती है।