विवाह सबसे श्रेष्ठ संस्कार,जो समाज को मर्यादित बनाता है
संस्कारों के कारण भारतीय समाज मर्यादित और संस्कारित बना हुआ है।
बक्षीबाग कालोनी में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में धूमधाम से मना कृष्ण-रूक्मणी विवाह का उत्सव –
इंदौर, । सूर्य की पहली किरण हमारे देश पर पड़ती है। पश्चिमी में सूर्य डूबता है। डूबते सूर्य को कोई नमस्कार नहीं करता। भारत वह पुण्य भूमि है जहां कण-कण में परमेश्वर की अनुभूति होती है। कृष्ण और रूक्मणी का विवाह हमारी संस्कृति को बांध कर रखता है। विवाह भी सोलह संस्कारों में सबसे श्रेष्ठ संस्कार माना गया है जो हमारी समाज व्यवस्था को मर्यादित और मजबूत बनाए हुए है। पूरब और पश्चिम का यही मुख्य अंतर है कि हम संस्कृति में जीते हैं और पश्चिम में विकृति को ही संस्कृति मान लिया गया है।
कथा में विवाह का जीवंत उत्सव धूमधाम से मनाया गया। कृष्ण और रूक्मणी ने एक-दूसरे को वरमाला पहनाई तो महिलाओं द्वारा बधाई गीतों के बीच भगवान के जयघोष से समूचा पांडाल गूंज उठा। इसके पूर्व वर-वधू पक्ष के भक्तों ने एक-दूसरे का सम्मान और स्वागत भी किया। कथा शुभारंभ के पूर्व महामंडलेश्वर संत दादू महाराज के सानिध्य में ठा. ओमप्रकाशसिंह पंवार, कुंवर सत्यमसिंह गोल्डी के साथ पं. लक्की अवस्थी, दीपेन्द्रसिंह सोलंकी, चेतना मंडल के रतनसिंह राजपूत, किशोरसिंह पंवार, लोकेन्द्रसिंह राठौर, अखिलेश शाह, राजपूत समाज के सुनील ठाकुर, मनोहर चौहान, प्रहलादसिंह सांखला, संजय यादव, अभिभाषक संजय शर्मा आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया।
पं. शुकदेव महाराज ने कहा कि भारत विश्व गुरू रहा है। यहां धर्म और संस्कृति का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। पश्चिम की विकृति अब हमारी नई पौध की ओर बढ़ रही है। जरूरत है समाज को नव संस्कारों की, जो भागवत और रामायण जैसी धरोहरों से ही मिल सकेंगे। कृष्ण-रूक्मणी का विवाह मातृ शक्ति के सम्मान का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में विवाह सबसे श्रेष्ठ और बड़ा संस्कार माना गया है। हम संस्कारों में ही जीते हैं और मृत्यु के बाद अंतिम यात्रा भी संस्कार मानी गई है। इन्हीं संस्कारों के कारण भारतीय समाज मर्यादित और संस्कारित बना हुआ है।