इंदौर

आकर्षण मात्र शरीर का नहीं, त्याग तपस्या और वैराग्य का भी होता है- मुनिश्री प्रमाण सागर

शंका समाधान में मुनिश्री ने किया सभी की जिज्ञासाओं को शांत

रेसकोर्स रोड़ स्थित मोहता भवन में हजारों की संख्या में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं ने लिया प्रवचनों का लाभ,

इन्दौर । तेरी सूरत से मिलती नहीं किसी की सूरत है। मैं जहां में तेरी तस्वीर लिए फिरता हूं। भगवान का रूप सौन्दर्य अपने स्वरुप सौन्दर्य की ओर ले जाता है। जो राग का प्रतीक न होकर वैराग्य की ओर होता है। उक्त विचार मुनिश्री प्रमाण सागर महाराज ने भक्तामर महाकाव्य की विवेचना करते हुए रेसकोर्स रोड़ स्थित मोहता भवन में श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। मुनिश्री ने कहा कि आज कल रूप की ओर आकर्षित होने वाले लोग बहुत है। अपने स्वरूप की ओर देखने वाले बहुत कम है।

मुनिश्री ने कहा कि लोक में सुंदर रूप ही आकर्षण है। जहां प्यार शरीर से किया जाता है वहां मात्र देह का आकर्षण होता है। उन्होंने कहा कि सुंदर लगने वाली चीजें भी असुंदर लगने लगती है। लेकिन जहां आत्मिक प्रेम होता है। वहां पर आल्हाद होता है और वहां प्रेम बढ़ता ही बढ़ता है। भगवान के प्रति प्रेम में मात्र आकर्षण ही नहीं आल्हाद है। अनिमेष विलोकनीय सुंदर कौन जो आल्हाद उत्पन्न करे। जिससे काम, क्रोध, लोभ, मोह बड़े वह असुंदर और जिससे काम क्रोध लोभ मोह शांत हो वह वास्तविक सौन्दर्य है। रूप सौन्दर्य के साथ आत्म सौन्दर्य को पहचानने वाला ही सच्चे अर्थों में सौन्दर्यानुभूति कराता है। जिसका इससे परिचय हो जाता है वह आत्मानुभूति कराता है। आकर्षण मात्र शरीर का नहीं होता। आकर्षण त्याग, तपस्या और वैराग्य का होता है। जो हमें आंतरिक रुप से खींचता है। भगवान के दर्शन आंखें खोलकर करो आंखों में बसा लो और आंख कब बंद हो जाएगी पता ही नहीं लगेगा

कबीरदास कहते है-
नयनन की करी कोठरी, पुतली पलंग बिछाय
पलकन की चित्त डार के, पिय को लिये रिझाय

मुनिश्री ने इस दोहे का अर्थ समझाते हुए कहा कि अपने प्रभु को रिझाना या प्राप्त करना है तो नयन पथ गामी बनो। जिसने एक बार आपका दर्शन कर लिया, फिर उसे दूसरे के दर्शन करने की इच्छा नहीं होती। जिसने एक बार क्षीरसागर का जल पी लिया, उसे फिर और कोई जल अच्छा नहीं लगता। परमार्थ का सुख जो आनंद देता है। उसे अन्य सुख अच्छा नही लगता। मुनिश्री ने कहा कि कोई नयनों को चुराता है क्या? जिसने भगवान के पास जाकर एक आनंद की अनुभूति कर ली। उसका ये धन ये दिवस धन्य हो जाता है।

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