शिप्रा नदी का कुंड और बाल हनुमान के मोहक दर्शन, इंदौर में 125 साल पुराने मंदिर का हुआ जीर्णोद्धार
शिलनाथ महाराज के 104 वे समाधी दिवस पर धूनी मंदिर का तीन दिनी प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव का समापन

शिप्रा नदी का कुंड और बाल हनुमान के मोहक दर्शन, इंदौर में 125 साल पुराने मंदिर का हुआ जीर्णोद्धार
शिलनाथ महाराज के 104 वे समाधी दिवस पर धूनी मंदिर का तीन दिनी प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव का समापन
नाथ संप्रदाय के सद्गुरु योगेंद्र शिलनाथ महाराज के मंदिर का रूप निखरा, शिलनाथ महाराज के 104 वे समाधी दिवस पर धूनी मंदिर का तीन दिनी प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न हुआ।
इंदौर। योगेंद्र शिलनाथ महाराज, जिन्हें संत शिरोमणि भी कहा जाता है, भारतीय संत और गुरु हैं, जिनका संबंध मध्य प्रदेश के देवास क्षेत्र से है। वे देवास जूनियर रियासत के कुलगुरु माने जाते हैं। शीलनाथ बाबा जयपुर के क्षत्रिय घराने से थे। 1839 में दीक्षा प्राप्ति के बाद बाबा ने उत्तराखंड के जंगलों में कठिन तप किया। इसके बाद उन्होंने देश-देशांतरों के निर्जन स्थानों पर भ्रमण किया। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, रूस, चीन, तिब्बत और कैलाश मानसरोवर होते हुए वे पुन: भारत पधारे। योगेंद्र शिलनाथ महाराज की धूनी (अखंड धूनी) और ज्योत आज भी इंदौर राजकुमार मंडी क्षेत्र में स्थित है। 125 वर्ष पुराने बाबा के समाधि स्थल पर श्रद्धालु नियमित रूप से आते हैं। इसीलिए भक्तों ने मिलकर इस 125 वर्ष पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया जिससे देश विदेश में स्थित बाबा के भक्त उनके दर्शन के लिए आ सके। राजकुमार मंडी स्थित शिलनाथ कैम्प में बाबा की जीवंत धूनी के साथ ही मां शिप्रा कुंड, बाल हनुमान मंदिर, बेलेश्वर महादेव मंदिर भी पहले से थे जिनका जीर्णोद्धार किया गया । विद्वान पंडितो द्वारा विधि विधान के पश्चात् प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव का सम्पन्न हुआ।
जीवंत शिप्रा नदी का कुंड भी है आकर्षण इंदौर स्थित शिलनाथ कैंप में 60 फिट गहरा कुआं और 12 फुट गहरा शिप्रा नदी का कुंड है जिसमें एक प्राचीन शिवलिंग है। ऐसी मान्यता है की जब शिलनाथ महाराज स्वास्थ कारणों के चलते शिप्रा में स्नान करने नहीं जा पा रहे थे तब शिप्रा मां खुद उन्हें दर्शन देने यहां आईं थी तभी से यह कुंड यहां स्थित है। इसकी खास बात यह है की शिप्रा नदी के जलस्तर के बराबर यहां के कुंड में जलस्तर बढ़ता घटता रहता है।
साधु संतों की उपस्थिति में तीन दिवसीय प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव शिलनाथ धूनी संस्थान एवं भक्त मंडल के सदस्यों ने बताया की १०४ प्रण प्रतिष्ठा महोत्सव में इंदौर के साथ देश के विभिन्न हिस्सों में बसे बाबा के भक्त शामिल हुए जैसे दिल्ली से हरिनाम महाराज, हनुमानगढ़ राजस्थान से पंचमनाथ महाराज उज्जैन से रामनाथ महाराज, हरियाणा से कृष्णनाथ महाराज एवं समुन्दर नाथ महाराज का आगमन हुआ।
संपन्न परिवार को त्यागकर तपस्या की राह चुनी
शिलनाथ बाबा का जन्म जयपुर के सम्पन्न परिवार में हुआ था, लेकिन वे संसार के भोग का त्याग कर योगी बन गए। पंजाब के सुल्तानपुर में कान पकड़वाकर नाथ संप्रदाय की दीक्षा ली वे हमेशा अपने साथ एक जलती हुई लकड़ी लेकर चलते थे। बाबा की विश्व प्रसिद्ध राजकीय धूनी देवास में है वे जब देवास से इंदौर आए तो देवास के राजघराने को इस बात का पता चला तो उन्होंने होल्कर शासकों से बात की तो स्थानीय शासको ने यहां की 300 एकड़ जमीन शिलनाथ कैम्प के नाम कर दी, जिसकी जानकारी आज भी दस्तावेजों में मिलती है। संस्थान से जुड़े भक्त बताते हैं कि बाबा से मिलने सेठ हुकुमचंद आए और उन्होंने उस क्षेत्र में मिल लगाने की बात कही तो बाबा ने सहर्ष सहमति देते हुए कहा की भूमि भगवान के भक्तों के उपयोग में आए इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। उसके बाद यहां की जमीन पर हुकुमचंद मिल बनाई गई और आगे जाकर यह क्षेत्र मिल क्षेत्र के नाम से जाना जाने लगा।
इस अवसर पर युवराज उस्ताद, अरविंद तिवारी, संजय त्रिपाठी, कीर्ति राणा, महेंद्र सोंनगरा, बालकृष्ण, मुले, राम कृष्ण मूले, मुस्ताक् शेख, विनोद गोयल सहित अनेक पत्रकार एवं फ़ोटो ग्राफर भी मौजूद थे।