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मन में भरे विकारों के कचरे को हटाए बिना श्रेष्ठविचारों का खजाना अंदर नहीं जा पाएगा – पंड्या

जगत की चकाचौंध में फंसकर जगदीश को भूल रहे हैं

इंदौर से विनोद गोयल की रिपोर्ट:-

इंदौर, । कपड़ों की गंदगी तो हम साबुन या डिटर्जेंट से दूर कर सकते हैं, शरीर की गंदगी को साफ करने के लिए भी एक से बढ़कर एक महंगे साबुन मिल जाएंगे, लेकिन मन में घुसे हुए काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसे विकारों की धुलाई तो सत्संग, संकीर्तन और भक्ति से ही हो सकती है। जब तक मन का कचरा खाली नहीं होगा, श्रेष्ठ विचारों का खजाना अंदर नहीं जा पाएगा। शहर की तरह अपने मन को भी साफ-सफाई में नंबर वन बनाने की जरूरत है। भक्ति बाजार में नहीं मिलती, यह मन के भावों की उपज है। भक्ति मन को निर्मल, पवित्र और परमार्थ से परिपूर्ण बनाती है।

अमरेली (गुजरात) से आए प्रख्यात भागवताचार्य नितिन भाई पंड्या ने आज स्नेहलतागंज स्थित गुजराती समाज अतिथि गृह में श्री गुजराती विश्वकर्मा समाज के तत्वावधान में आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व आज भी सैकड़ों युगलों ने श्रीमद भागवत के मूल पारायण में भाग लिया। कथा शुभारंभ के पूर्व मन्नू भाई पिडवा ,शोभना बेन परमार एवं नीरू बेन पित्रोदा आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। कथा के दौरान गुजरात से आए संगीतज्ञों ने भजनों की प्रस्तुति दी तो महिलाओं ने भजनों एवं गरबा गीतों पर नृत्य करते हुए अपनी प्रसन्नता व्यक्त की।

भागवताचार्य पंड्या ने कहा कि भगवान की प्रसन्नता केवल प्रेम और निर्मल भावों से ही मिल सकती है। हम जगत को तो धोखा दे सकते हैं, जगदीश को नहीं। दुर्लभ मनुष्य जीवन की धन्यता तभी संभव है, जब हम काम, क्रोध, लोभ और मोह जैसे विकारों से मुक्त होकर नर में नारायण की अनुभूति करें। हम सब परमात्मा के ही अंश हैं। लेकिन जगत की चकाचौंध में फंसकर जगदीश को भूल रहे हैं। भागवत जगत और जगदीश के मिलन का सेतु है। गुजराती समाज अतिथि गृह में चल रही इस गुजराती कथा में दिनोंदिन भक्तों का सैलाब उमड़ रहा है।

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