सेंधवा। क्रोध की अग्नि हमारे सद्गुणों को जला देती है- चंपाजी मसा

सेंधवा। क्रोध हमारे जीवन को बरबाद करने वाला है, क्रोध करने से हमारे पुण्य तो क्षय होते ही हैं साथ में पाप की बढ़ोत्तरी होती है। क्रोध की अग्नि हमारे सद्गुणों को जला देती है। इसलिए शास्त्रों में क्रोध को अग्नि की उपमा दी गई है।
उक्त उद्गार पूज्य कानमुनी जी मसा की आज्ञानुवर्तनी चंपाजी मसा ने शनिवार को जैन स्थानक में कहें। मसा ने कहा कि गुस्से से प्रिती का नाश होता है और आपस में बैर बढ़ता है। याद रखना ये बैर की गठान कैंसर की गठान से खतरनाक होती है। कैंसर की गठान तो आपरेशन से निकल भी सकती है और यदि ना भी निकल पायी तो हमारे यही भव में दुख देने वाली है, लेकिन बैर की गठान हमें इस भव के साथ भव -भव में दुख देने वाली है। बैर की गठान हमारी भव परंपरा बढ़ाने वाली है। इसलिए क्षमा से बैर परंपरा को समाप्त कर देना चाहिए।
क्रोध आने के मुख्य 4 कारण –
मसा ने कहा कि क्रोध में व्यक्ति दुसरांे का सम्मान करना भूल जाता है। जब हमें बुखार आता है या खांसी होती है तो हम उसके कारण तक पहुंचते हैं। फिर इलाज लेते हैं, लेकिन क्या हम कभी क्रोध क्यों आता है उसके कारण तक पहुंचे हैं क्या? ज्ञानीजनों ने अत्यधिक क्रोध आने के मुख्य 4 कारण बताए हैं। पहला मोहनीय कर्म का उदय, दुसरा इच्छा, तीसरा अहंकार चौथा दुसरों से अत्यधिक अपेक्षा। जब तक हम हम इस बात को नहीं समझेंगे कि जो प्राप्त है वह पर्याप्त है। साथ ही जब तक हम स्वयं के अंहकार को समाप्त नहीं करेंगे तथा जब तक हम दुसरो से अपेक्षा रखना कम नहीं करेंगे तब तक जीवन में क्रोध कम होने वाला नहीं है।
गुस्सा हमारे तन को दुर्बल बनाता है-
मसा ने कहा गुस्से से जलने वाला ज्ञानरहित हो जाता है। साथ ही उसकी बुद्धि भी भ्रष्ट हो जाती है। ये गुस्सा हमारे तन को दुर्बल बनाता है। साथ ही शरीर तेज रहित होता है। यहां तक कि चिकित्सक भी इस तथ्य को बोलते हैं कि अत्यधिक गुस्सा हमारे शरीर में ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसी बिमारी को जन्म देता है। इसलिए यदि स्वयं को दुख व दुर्गति से बचाना है तो इन क्रोध, मान, माया व लोभ रुपी कषायों से बचना होगा।
जैसे कर्म करेंगे वैसा फल भोगना पड़ेगा-
मसा ने कहा कि हम जैसे कर्म करेंगे वैसा फल तो भोगना ही पड़ेगा। जब हमारे क्रोध के कारण हुए अशुभ कर्मों का हिसाब होगा तो वह फल भी हमें स्वयं को ही भोगना पड़ेगा। जब भी हमें अत्यधिक क्रोध आये तो हमें हमारे शास्त्रों को पढ़ना चाहिए। जिसमें अनेक राजा- महाराजा और सुश्रावक व साधकों के दृष्टांत आते हैं जिन्होंने क्रोध करके क्या परिणाम भुगते है और क्रोध को त्याग करके कहां से कहां पहुंच गय और अपना भव सुधार लिया।