सनावद। मुनि श्री महिमासागर महाराज संघ के आगमन पर समाजजनों ने की अगवानी….

राहुल सोनी सनावद। दिगंबर जैन संतों की जन्म भूमि में साधुओं के आने का सिलसिला निरंतर जारी है। सुदूर कर्नाटक के चिकमगलूर में जन्मे तथा आचार्य श्री वरदत्तसागर महाराज द्वारा दीक्षित तपस्वी मुनि श्री महिमासागर महाराज सिद्धवरकूट क्षेत्र के जिनमंदिरों की वंदना के उपरांत मंगलवार को नगर में पहुंचे। जहाँ श्रद्धालुजनों ने संघ की अगवानी की। मुनि श्री महिमा सागर जी समीपस्थ णमोकर धाम तथा पोदनपुरम तीर्थ की वंदना कर नगर में पहुंचे।
डॉ. नरेंद्र जैन भारती एवं बसंत पंचोलिया ने बताया कि पूज्य मुनि श्री दिव्यसेन, मुनि परमसागर जी, आर्यिका सुग्रीवमती माताजी, आर्यिका सुभद्रामती माताजी एवं क्षुल्लिका सम्मेदमती माताजी ने पवन गोधा के निवास पर आहार ग्रहण किया।
डॉक्टर जैन ने बताया कि पूज्य मुनि श्री महिमासागर महाराज विगत 9 वर्षों से एक दिन निराहार रहकर दूसरे दिन मुनिचर्या के अनुसार दिन में एक बार आहार ग्रहण कर ज्ञान,ध्यान और तप साधना में लीन रहते हैं। 48 घंटे में केवल एक ही बार आहार ग्रहण करते हैं।
संघ मांगीतुंगी जी पहुंचकर चातुर्मास स्थापन करेगा। नगर आगमन पर निमिष जैन, सरल जैन, प्रफुल्ल जैन, राजेश जटाले, अचिंत्य जैन,बसंत पंचोलिया, रिंकेश जैन, वारिस जैन ने संघ की अगवानी की। मुनि महिमा सागर जी ने संत निवास पहुंचकर पार्श्वनाथ जिनालय में अभिषेक शांतिधारा का अवलोकन कर संत निलय में विराजमान आचार्य श्री विनम्र सागर जी का जल से पाद प्रच्छालन किया।
कमलेश भूच एवं सत्येंद्र जैन ने बताया कि संत निलय में प्रवचन के दौरान पूज्य आचार्य श्री विनम्र सागर महाराज ने बताया कि चिंतन की धारा जैसी होगी वैसा ही जीवन बनेगा। जब विरक्ति आती है तब आसक्ति नहीं रहती, जब आसक्ति नहीं रहती तब व्यक्ति पेंट-शर्ट, जींस, सफारी, महंगे वस्त्रों का त्याग कर वैराग्य की ओर अग्रसर हो जाता है।वह यह जान जाता है कि आत्मा अजर अमर है।
आयु तो शरीर की समाप्त होती है इसलिए सम्यग्दृष्टि जीव संसार शरीर से विरक्त होकर संयम धारण करता है।जहाँ संयम होता है वही संस्कार पनपते हैं। माता-पिता से प्राप्त संस्कार जीवन में प्रभावी होकर कार्य करते हैं।
मुनि श्री महिमा सागर जी ने सनावद से निकले साधु संतों के त्यागमय जीवन की प्रशंसा करते हुए एक भजन “सत्संग से सुख मिलता है” के माध्यम से सत्संगति में रहने की प्रेरणा दी।रजत जैन बडूद परिवार ने दीप प्रज्ज्वलन तथा आचार्य जी का पद प्रच्छालन किया।