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केवट समाज के अंतिम छोर और शबरी निष्काम भक्ति का प्रतीक, जिन्हें राम ने गले लगाया

बर्फानी धाम के पीछे गणेश नगर में चल रही रामकथा में मानस मर्मज्ञ डॉ. सुरेश्वरदास के आशीर्वचन

इंदौर । श्रद्धा और विश्वास के बिना भक्ति और साधना-उपासना सार्थक नहीं हो सकते। संशयग्रस्त जीव को राम नहीं मिल सकते। संसार में रहते हुए मानव देह धारण करने का उद्देश्य यही है कि हम अपने आराध्य के प्रति लगन और निष्ठा के साथ समर्पण भाव से भक्ति करें । भरत मिलाप भारत भूमि में भाईयों के बीच स्नेह और विश्वास का अत्यंत प्रेरक प्रसंग है। भाई हो तो भरत जैसा, जिसने राजपाट मिलने के बाद भी राम के खडाऊ रखकर अपना शासन चलाया। केवट समाज का अंतिम छोर का नागरिक है जिसे प्रभु ने सबसे पहले गले लगाया। शबरी निष्काम भक्ति का उदाहरण है।
ये दिव्य विचार हैं मानस मर्मज्ञ आचार्य डॉ. सुरेश्वरदास रामजी महाराज के, जो उन्होंने बर्फानी धाम के पीछे स्थित गणेश नगर में माता केशरबाई रघुवंशी धर्मशाला परिसर के शिव-हनुमान मंदिर की साक्षी में चल रही रामकथा में व्यक्त किए। कथा में शनिवार को भगवान राम के वनवास जाने और केवट प्रसंग की व्याख्या की गई। कथा शुभारंभ के पूर्व तुलसीराम-सविता रघुवंशी के साथ ठा. गजेन्द्रसिंह चंदेल, कुं. सचिनसिंह राजपूत, नाना यादव, करणसिंह रघुवंशी, जयेश कालवा, प्रेम कुशवाह, बबलू ठाकुर, ऋषि शर्मा, इंद्रसिंह ठाकुर, शैलेन्द्र जोशी आदि ने व्यासपीठ एवं रामचरित मानस का पूजन किया। कथा के दौरान मनोहारी भजनों पर शनिवार को भी समूचा पांडाल झूमता रहा ।
डॉ. सुरेश्वरदास ने कहा कि भक्ति निष्काम होगी तो शबरी की तरह भगवान हमारे जूठे बैर भी स्वीकार कर लेंगे लेकिन पाखंड और प्रदर्शन वाली भक्ति से कभी खुश नहीं होंगे। राम हमारी भारतीय संस्कृति और धर्म क्षेत्र के आदर्श हैं। रामकथा संशय को ही दूर करने का सबसे सहज और सरल माध्यम है। हमें मनुष्य शरीर भगवान की कृपा से ही मिला है। उनके नाम का स्मरण ही सच्ची भक्ति है। केवट को गले लगाकर भगवान ने अपने वनवास की शुरूआत की थी। यह प्रसंग उदाहरण है कि राम राज्य की स्थापना की नींव केवट जैसे अंतिम छोर के नाविक को गले लगाकर रखी गई है। भगवान ने वनवास में पशु-पक्षियों तक को प्रेम है।

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