विविध

मर्यादा एवं संस्कृति की बुनियाद पर खड़ा है भारतीय समाज

हम विकृति नहीं, संस्कृति के पक्षधर गुजराती भागवत

इंदौर से विनोद गोयल की रिपोर्ट

कथा में धूमधाम से मना रूक्मणी विवाह

इंदौर,। भारत संस्कारों की भूमि है। हम जन्म से लेकर मृत्यु तक संस्कारों और मर्यादाओं में बंधे हुए हैं। विवाह भी एक संस्कार है। पश्चिम की संस्कृति में विवाह केवल अनुबंध या सौदा होता है, लेकिन भारत में यह सात जन्मों का रिश्ता माना जाता है। संस्कृति के संवर्धन के बिना कोई भी देश, समाज या परिवार समृद्ध नहीं हो सकता। हम विकृति नहीं, संस्कृति में जीते हैं। यह संस्कृति ही भारत की पहचान है। निर्मल मन से की गई प्रत्येक क्रिया को यदि हम परमात्मा को समर्पित करत दें तो हमारा वही कर्म पूजा बन जाएगा।

        ये दिव्य विचार हैं अमरेली (गुजरात)  से आए प्रख्यात भागवताचार्य नितिन भाई पंड्या के, जो उन्होंने रविवार को स्नेहलतागंज स्थित गुजराती समाज अतिथि गृह में श्री गुजराती विश्वकर्मा समाज के तत्वावधान में आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ के दौरान व्यक्त किए।

भागवत कथा में आज कथा श्रीकृष्ण रुक्मणी विवाह का उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया। विवाह के लिए कथा स्थल पर विशेष सजावट की गई थी। गुजरात से आए भजन गायकों और संगीतज्ञों की जुगलबंदी का जादू भी समूचे सभा मंडप पर देखने को मिला। वर और वधू बने कृष्ण रुक्मणी ने जैसे ही एक -दूसरे को वरमाला पहनाई समूचा सभा मंडप भगवान के जयघोष से गूंज उठा। गुजराती बधाई गीत और गरबों पर नाचते-झूमते भक्तों ने एक –दूसरे पर पुष्प वर्षा कर बधाइयां दी। इसके पूर्व कथा शुभारंभ प्रसंग पर जीतेन्द्र परमार, नानजी भरड़बा, कांतिभाई जेठवा, नरेन्द्र भाई एवं दिव्येश परमार तथा महिला मंडल की ओर से मीनल परमार, शुभी परमार, शारदा जेठवा, निर्मला भरड़बा एवं नैना बेन पंचासरा ने व्यासपीठ का पूजन किया। संध्या को आरती में सैकड़ों भक्त शामिल हुए। अध्यक्ष दिलीप भाई परमार ने बताया कि सोमवार 31 जुलाई को कथा सुबह 8 बजे से पूजा-अर्चना के बाद प्रारंभ होगी। सुदामा चरित्र की कथा के बाद यज्ञ, हवन के साथ पूर्णाहुति होगी। इस अवसर शहर के गुजराती संगठनों की ओर से भागवताचार्य नितिन भाई पंड्या एवं गुजरात से आए अन्य संगीतज्ञों का सम्मान भी किया जाएगा।

        भागवताचार्य पंड्या ने कहा कि पेट की तरह आत्मा को भी भूख लगती है। भोजन से तो पेट की भूख मिट जाती है, लेकिन आत्मा की भूख भजन, सत्संग और कथा श्रवण से ही मिटेगी। भारतीय परिवार और समाज मर्यादा एवं संस्कृति की बुनियाद पर खड़े हैं। पश्चिम में परिवार बनने के पहले ही टूटते-बिखरते रहते हैं, क्योंकि वहां संस्कारों का अभाव है। हमारी संस्कृति में जन्म से लेकर मृत्यु तक हर क्रिया के लिए एक संस्कार निश्चित है। विवाह भी इनमें से एक संस्कार है। भारत संतों, मुनियों और ऋषियों की भूमि है, जहां हर काम में मर्यादा का पालन होता है।
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