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मोह का क्षय होना ही मोक्ष – पं. शास्त्री
दुनिया के सारे विवाद मोह की प्रवृत्ति के कारण ही पनपते है
इंदौर, । भगवान को धनबल, बाहुबल या ऐश्वर्य के बलबूते पर रिझाया नहीं जा सकता। उनकी कृपा वृष्टि हमारा धन, वैभव, पद या शक्ल, सूरत देखकर नहीं बल्कि हमारी भक्ति देखकर होती है। मृत्यु के बाद हमारा जो कुछ है, वह सब यहीं धरा रह जाता है। भागवत मनुष्य को सत्संग की ओर आगे बढ़ाकर मोक्ष की मंजिल तक पहुंचाती है। मोह का क्षय होना ही मोक्ष है।
श्री श्रीविद्याधाम के आचार्य पं. राहुल कृष्ण शास्त्री के, जो उन्होंने देवेन्द्र नगर, अन्नपूर्णा रोड स्थित ‘पंचामृत सदन’ पर बैसाख माह के उपलक्ष्य में आयोजित सात दिवसीय भागवत ज्ञान यज्ञ के दौरान व्यक्त किए। आज भी कथा में मनोहारी भजनों पर भक्तों के नाचने-गाने का सिलसिला चलता रहा। कथा शुभारंभ के पूर्व समाजसेवी गणेश गोयल, तुलसीराम रघुवंशी, प्रो. रूपेश कुंभज, श्याम अग्रवाल, शिव जिंदल, विनोद गोयल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। अतिथियों का स्वागत सी.ए. रीतेश गुप्ता, मयंक गुप्ता, कृष्णकांत मेहता, कमल डोंगरिया, शालिनी जैन, मधु शर्मा, भारती कुमावत, वीणा शर्मा, भारती दुबे आदि ने किया।
आचार्य पं. शास्त्री ने कहा कि हमारी भक्ति निष्काम होना चाहिए। भक्ति में श्रद्धा और विश्वास अनिवार्य तत्व है। भक्ति बाजार में नहीं मिलती। भक्ति अंतःकरण के साथ भगवान से प्रेम का रिश्ता जोड़ने पर ही संभव है। सुख-दुख जीवन के क्रम है। भगवान और मृत्यु को कभी नहीं भूलना चाहिए। जिस तरह हम एक छोटे से कम्प्यूटर में बहुत सी जानकारी भर सकते हैं, उसी तरह हमारे कर्मों का ब्योरा भी परमात्मा के पास दर्ज हो जाता है। मोह हम सबको घेरे हुए है। दुनिया के सारे विवाद मोह की प्रवृत्ति के कारण ही पनपते है। मोह का क्षय होना ही मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। यही हम सबके जीवन का परम लक्ष्य भी है।