इंदौरधर्म-ज्योतिष

प्रथम तपागच्छीय महाधिवेशन में आचार संहिता के पालन सहित अनेक मुद्दों पर हुआ विचार-मंथन

व्यापार, कृषि, परंपराओं, लेन-देन और धार्मिक सांस्कृतिक मर्यादाओं के संरक्षण हेतु एकजुट हों - डॉ. मुक्तिसागर

प्रथम तपागच्छीय महाधिवेशन में आचार संहिता के पालन सहित अनेक मुद्दों पर हुआ विचार-मंथन

व्यापार, कृषि, परंपराओं, लेन-देन और धार्मिक सांस्कृतिक मर्यादाओं के संरक्षण हेतु एकजुट हों – डॉ. मुक्तिसागर

इंदौर। समग्र जैन श्वेताम्बर तपागच्छ श्रीसंघ, इंदौर की मेजबानी में रविवार को शहर में पहली बार तपागच्छ जैन समुदाय के प्रतिनिधियों का महाधिवेशन अनेक संकल्पों के साथ संपन्न हुआ। मालव मार्तण्ड प.पू. डॉ. मुक्तिसागर सूरीश्वर म.सा. के सानिध्य में इस अवसर पर मालवा अंचल के 40 से अधिक श्रीसंघों और शहर के तपागच्छ समाज के प्रतिनिधियों ने भगवान महावीर स्वामी के आदर्शों के अनुरूप आचार संहिता का पालन करने, समाजबंधुओं के हित में व्यापार, कृषि, सामाजिक परंपराओं, आर्थिक लेन-देन और धार्मिक सांस्कृतिक मर्यादाओं के संरक्षण की दिशा में एकजुट होकर समाज को आगे बढ़ाने का संकल्प व्यक्त किया। समाज के सभी सदस्यों की जानकारी को कम्प्यूटराईज्ड करने का निर्णय भी लिया गया। तिथियों की घट-बढ़, विभिन्न अवसरों पर सूतक परंपरा का पालन करने तथा तपस्या को प्रधानता देने सहित अनेक मुद्दों पर प्रदेश के कोने-कोने से आए प्रतिनिधियों ने विचार-मंथन किया।


रेसकोर्स रोड स्थित बास्केट बाल काम्प्लेक्स पर आयोजित तपागच्छीय महाधिवेशन की शुरुआत मालव मार्तण्ड प.पू. डॉ. मुक्तिसागर सूरीश्वर म.सा. एवं शहर में विराजित अन्य साधु साधु भगवंतों की निश्रा में दीप प्रज्ज्ज्वलन के साथ हुई। अध्यक्ष डॉ. प्रकाश बांगानी, कार्याध्यक्ष पुण्यपाल सुराना, महासचिव यशवंत जैन एवं संयोजक कैलाश नाहर ने सभी प्रतिनिधियों का स्वागत किया। संयोजक मंडल के प्रीतेश ओस्तवाल, शेखर गेलड़ा, सौमिल कोठारी एवं पुंडरिक पालरेचा ने महाधिवेशन की विषय वस्तु प्रस्तुत की। प्रीतेश ओस्तवाल ने तपागच्छ समुदाय की स्थापना की दिलचस्प पृष्ठभूमि बताई। उन्होंने कहा कि सुधर्मा स्वामी की साधु परंपरा की स्थापना के पश्चात कालांतर में निर्गंधगच्छ, कोटिगच्छ, चंद्रगच्छ, वनवासीगच्छ, बड़गच्छ होते हुए तपागच्छ नामकरण हुआ। तप की प्रधानता के कारण ही तपागच्छ नाम मिला। आज देश में 18 गच्छाधिपति हैं, उनमें तपागच्छ के 12 हजार से अधिक साधु साध्वी भगवंत हैं। इंदौर में हो रहे इस महाधिवेशन को इन सभी आचार्य और साधु साध्वी भगवंतों का आशीर्वाद प्राप्त है। इंदौर में तपागच्छ के 9 हजार से अधिक परिवार और 35 हजार से अधिक साधार्मिकबंधु निवासरत हैं। डॉ. प्रकाश बांगानी ने स्वागत भाषण दिया। महासचिव यशवंत जैन ने कार्यक्रम की अवधारणा बताई।
महाधिवेशन में पुण्यपाल सुराणा, कैलाश नाहर और विजय मेहता ने भी अपने विचार व्यक्त किए और समाज संगठन की मजबूती के लिए अनेक सुझाव भी दिए। इस अवसर पर शहर में विराजित सभी साधु साध्वी भगवंत एवं शहर के सभी जैन श्रीसंघों के प्रतिनिधि भी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। महाधिवेशन के लाभार्थी बादलदेवी टोडरमल कटारिया परिवार का भी बहुमान किया गया। इस अवसर पर सभा में दिलसुखराज कटारिया, दिलीप सी जैन, मनीष सुराना, कांतिलाल बम, प्रकाश भटेवरा, प्रीतेश ओस्तवाल, जिनेश्वर जैन, संजय छाजेड़, संजय मोगरा, दीपक सुराना, शैलेन्द्र नाहर, शरद जैन, प्रवीण गुरूजी, सौमिल कोठारी, संतोष मेहता, अनिल देशलहरा सहित बड़ी संख्या में प्रमुख समाजसेवीबंधु उपस्थित थे। इस अवसर पर देवसुर तपागच्छ समाचारी पत्रिका का विमोचन कर समाजबंधुओं को निशुल्क वितरण भी किया गया। संचालन शेखर गेलड़ा ने किया और आभार माना पुंडरिक पालरेचा ने।
महाधिवेशन के मार्गदर्शक मालव मार्तण्ड प.पू. डॉ. मुक्तिसागर सूरीश्वर म.सा. की निश्रा में इस अवसर पर नागेश्वर तीर्थ के सचिव धरमचंद जैन एवं इंदौर के महेन्द्र गुरूजी को तपागच्छ रत्न से अलंकृत किया गया। अहमदाबाद से आने वाले समाजसेवी भूषण भाई ने अपने शुभकामना संदेश में इस आयोजन के प्रति सम्पूर्ण समर्थन और स्नेह देने का संकल्प व्यक्त किया। प.पू. डॉ. मुक्ति सागर सूरीश्वर म.सा. ने जिनशासन की प्रभावना कर रहे सभी साधु साध्वी भगवंतों एवं श्रावक-श्राविकाओं के प्रति शुभाशीष व्यक्त करते हुए कहा कि जैन मत को फैलाने में जनसंख्या, कृषि, व्यापार, परिवार, स्वास्थ्य के साथ साधु साध्वी वैय्यावृत में उनके समस्त हितों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। मुनि ऋषभचंद्र सागर म.सा. ने भी कहा कि तपागच्छ 2500 वर्ष पुराना सोने का ऐसा सिक्का है, जिसका मूल्य कभी कम नहीं हो सकता और जिसकी शुद्धता भी शत-प्रतिशत खरी है। महाधिवेशन में समाज की समृद्धि के लिए अनेक संकल्प भी पारित किए गए।

 

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