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सेंधवा; शिवजी जब माता पार्वती से विवाह करने के लिए भूत-प्रेत और चुड़ैलों की बारात लेकर पहुंचे तो सब हैरान रह गए थे

-अग्रवाल समाज महिला मंडल द्वारा सत्यनारायण मंदिर पर आयोजित शिवपुराण कथा के पांचवे दिन आचार्य आदित्य त्रिपाठी ने दिए प्रवचन।

सेंधवा। पुराणों में भी भगवान शिवजी और माता पार्वती के विवाह को लेकर जिक्र मिलता है। कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के पावन दिन में शिव-पार्वती का विवाह हुआ था। भगवान शिव को पाना मां पार्वती के लिए आसान नहीं था। जब भगवान शंकर भस्म लगाकर दूल्हे के रूप बारात लेकर आए, तो मां पार्वती की मां ने उनकी बेटी की शादी करने से इंकार कर दिया।
उक्त प्रवचन आचार्य आदित्य त्रिपाठी ने अग्रवाल समाज महिला मंडल द्वारा आयोजित सत्यनारायण मंदिर पर आयोजित शिवपुराण कथा के पांचवे दिन व्यक्त किए।
आचार्य आदित्य त्रिपाठी ने कहा पार्वती राजा हिमवान और रानी मैनावती की पुत्री थी। माता पार्वती शिवजी से विवाह करना चाहती थी, लेकिन शिव को पाना इतना आसान नहीं था। फिर क्या था माता पार्वती ने कठोर तपस्या शुरू कर दी। शिवजी माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन देकर कहा कि वो किसी राजकुमार के साथ विवाह कर ले। लेकिन पार्वती ने साफ इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि वो मन ही मन शिव को अपना पति मान चुकी हैं और ऐसे में किसी अन्य व्यक्ति के साथ रहना आसान नहीं होगा। अपने प्रति पार्वती का असीम प्रेम देख भोलेनाथ का मन पिघल गया और वे पार्वती से विवाह के लिए राजी हो गए।
शिव जी जब माता पार्वती से विवाह रचाने के लिए पहुंचे तो अपने साथ भूत-प्रेत और चुड़ैलों की बाराती लेकर पहुंचे। जब ऐसी अनोखी बारात लेकर शिव बारातियों के साथ पार्वती के द्वार पर पहुंचे तो सभी डर गए और हैरान रह गए। पार्वती की माता मैनावती ने तो विवाह से इंकार कर दिया था। तब पार्वती ने शिव जी से प्रार्थना करते हुए कहा कि वह विवाह के रीति-रिवाजों के अनरूप तैयार हो जाएं। शिवजी मान गए और इसके बाद देवताओं द्वारा शिवजी को दूल्हे के रूप में तैयार किया गया। जब शिवजी दूल्हा बनकर तैयार हो गए तो उनका दिव्य रूप देखकर सभी चकित रह गए। इसके बाद बाराती-शराती, भूत-प्रेत, सभी देवता और सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी की मौजूदगी में शिव-पार्वती का विवाह संपन्न हुआ।

दान हस्त मुक्त करना चाहिए-
जीवन में हमेशा अन्न दान, जल दान, वस्त्र दान बिना सोच विचार से करना चाहिए। किंतु गाय दान, भूमि दान व कन्या दान सोच समझ कर करना चाहिए।
पंडित त्रिपाठी ने कहा की दान हस्त मुक्त करना चाहिए। दान का स्वरूप इस प्रकार होना चाहिए की एक हाथ से दो तो दूसरे हाथ को भी पता नही चलना चाहिए। दान हर व्यक्ति को करना चाहिए। आप जितना दान करेंगे प्रभु दस गुना करके लोटते है। दान करने के भी स्वरूप है। जरूरत मंद को दिया गया दान फलित होता है। भरे हुए को किया गया दान, दान नहीं होता है। शास्त्रों में गाय दान, भूमि दान व कन्या दान को सर्व श्रेष्ठ दान माना गया है। बिटिया सबसे ज्यादा पिता को चाहती है तो पिता भी सबसे ज्यादा स्नेह बेटी को देता है। जब पिता बेटी का हाथ अपने दामाद के हाथ में देकर कन्या दान करता है तो बेटी तो वही रहती है, लेकिन बेटी का गोत्र बदल जाता है।

अन्नकूट वितरण हुआ-
कथा समाप्ति के पश्चत अन्नकूट प्रसादी का वितरण किया गया। पंडित त्रिपाठी के स्वागत के लिए महू से चंद्र प्रकाश लड्डा, नरेश माहेश्वरी, गोपाल सराफ, द्वारका बंसल, प्रकाश गोयल, तुलसीराम चतुर्भुज, गौरव जोशी, लक्ष्मी शर्मा अभिलाषा भट्ट, निर्मला वर्मा, चंदा गोयल, माली गर्ग, श्याम सुन्दर तायल, राहुल गर्ग, राकेश एरन, सुनील अग्रवाल, निलेश अग्रवाल, गोपाल तायल, ज्योसना अग्रवाल, रानी मंगल, किरण तायल, मीना चोमूवाला सुशीला सिंहल, उषा तायल और समस्त कार्यकारिणी सदस्य और बहु बेटी मंडल सदस्य मौजूद रहे।

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