धर्म से मिलती है चैतन्यता,धर्म वही हो सकता है,जिसमें सेवा और परमार्थ का भाव हो – डॉ. शास्त्री
भगवान अकारण किसी का भी अपमान नहीं करते, अकारण उद्धार जरूर करते हैं

छावनी अनाज मंडी प्रांगण में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में धूमधाम से मना कृष्ण रुक्मणी विवाह –
इंदौर, । वर्तमान युग धर्म जागरण का है। धर्म से समाज को चैतन्यता मिलती है। धर्म वही हो सकता है, जिसमें सेवा और परमार्थ का भाव हो । भारतीय संस्कृति परंपराओं और मर्यादाओं से जुड़ी हुई है। भगवान का अवतरण जीवमात्र के कल्याण और उद्धार के लिए ही होता है। संसार में सारे विवाद मर्यादा के उल्लंघन के कारण ही होते हैं। परमात्मा के साथ प्रकृति भी पूजनीय है। प्रकृति के साथ खिलवाड़ के नतीजे हमें ही नहीं, आने वाली पीढियों को भी भोगना पड़ सकते हैं। यदि गंगा में स्नान से हमारे पापों का नाश होता है, तो उस गंगा को प्रदूषित करना भी पाप कर्म ही है। यदि हमने पवित्र नदियों को नालों बदल दिया तो हमारे पाप कहां धुलेंगे ?
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भी आज कथा में आकर डॉ. शास्त्री को मालवी पगड़ी पहनाकर उनका अभिनंदन किया।डॉ. शास्त्री ने भी विजयवर्गीय को पगड़ी पहनाई। विजयवर्गीय ने छोटी छोटी गैया... छोटे-छोटे ग्वाल... भजन भी सुनाया। कथा में आज कृष्ण रुक्मणी विवाह का उत्सव धूमधाम से मनाया गया। सैकड़ों भक्तों ने कृष्ण की बारात रुक्मणी की वरमाला के प्रसंगों का आनंद लिया। कथा स्थल को विशेष रूप से फूलों एवं गुब्बारों से सजाया गया था।
भागवताचार्य डॉ. शास्त्री ने कहा कि गौमाता, वेदपाठी विप्र, देवमंदिर और साधु, ये चारों भारतीय संस्कृति के केंद्र एवं आत्मा हैं। इन सबके मालिक स्वयं भगवान ही है। जिनके मालिक भगवान हों, वे बाजार में नहीं बिकते। हमारी परंपराएं बहुत महान रही हैं। देश विश्वगुरू रहा है। हम सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति में शामिल गंगा, तुलसी एवं सभी पवित्र नदियों की पूजा करते आ रहे हैं। प्रकृति भी परमात्मा की ही रचना है। जीवात्मा से परमात्मा का मिलन तभी संभव होगा, जब हमारे मन के अहंकार, दंभ, काम, क्रोध, अश्रद्धा जैसे विकार से हम पूरी तरह मुक्त हो जाएंगे। भागवत का श्रवण और मंथन पाप से मुक्ति का ही मार्ग है। भगवान अकारण किसी का भी अपमान नहीं करते, अकारण उद्धार जरूर करते हैं।