इंदौरधर्म-ज्योतिष

सनातन धर्म और संस्कृति पर आघात पहुंचानेके दुष्प्रयास आज भी जारी- स्वामी भास्करानंद

स्नान से शरीर, संस्कार से गर्भ, तपस्या से इंद्रियां, संतोष से मन और यज्ञ से ब्राह्मणों की शुद्धि होती है।

गीता भवन में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में भगवान की बाल लीलाओं का चित्रण-मना गोवर्धन पूजा का उत्सव

इंदौर,। सनातन धर्म और संस्कृति पर हमले के प्रयास आदिकाल से जारी हैं। विप्रों, गायों, वेदों, यज्ञों और तप आदि को नुकसान पहुंचाने की प्रवृतियां आज भी चल रही हैं। जब तक समाज संगठित नहीं होगा, इस तरह की घातक प्रवृत्तियां सिर उठाए रहेंगी। कंस व्यक्ति नहीं, प्रवृत्ति का नाम है। समाज में आज भी राक्षसी प्रवृत्तियां मौजूद हैं। सत्य मनुष्य को निर्भय बनाता है। सत्य के स्वरूप का चिंतन भगवान कृष्ण का ही चिंतन होगा। कृष्ण ही जगत की उत्पत्ति के आधार और कारण हैं तथा उनकी प्रत्येक क्रिया में जीव के कल्याण का भाव होता है। राक्षसी प्रवृतियों के मुकाबले के लिए समाज को संगठित होने की सख्त जरूरत है। देश-दुनिया का घटनाक्रम देखते हुए समझना पड़ेगा।
वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने मनोरमागंज स्थित गीता भवन पर गोयल पारमार्थिक ट्रस्ट और रामदेव मन्नालाल चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह के दौरान भगवान की बाल लीलाओं और गोवर्धन पूजा प्रसंग के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा का यह आयोजन समाजसेवी मन्नालाल गोयल और मातुश्री चमेलीदेवी गोयल की पुण्य स्मृति में किया जा रहा है। आज कथा में गोवर्धन पूजा का उत्सव मनाया गया। भगवान को छप्पन भोग भी परोसे गए। बाल-ग्वालों ने भगवान की पूजा-अर्चना की। इसके पूर्व शुभारंभ अवसर पर समाजसेवी प्रेमचंद –कनकलता गोयल, विजय-कृष्णा गोयल एवं निधि-आनंद गोयल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। आज भी साध्वी कृष्णानंद ने अपने मनोहारी भजनों से भक्तों को बार-बार थिरकाया। कथा में रुक्मणी विवाह तथा गुरूवार को सुदामा चरित्र प्रसंग के साथ फूलों की होली खेली जाएगी।
स्वामी भास्करानंद ने कहा कि स्नान से शरीर, संस्कार से गर्भ, तपस्या से इंद्रियां, संतोष से मन और यज्ञ से ब्राह्मणों की शुद्धि होती है। नंद बाबा ने गोकुल में कृष्ण के आने पर जबर्दस्त उत्सव मनाया और दो लाख सुसज्जित एवं स्वर्ण से लदी हुई गायें दान की। दान से धन की शुद्धि होती है। जिस धन का उपयोग दुरुपयोग होता है, वह धन हमारे परिवार को विषाक्त बना देता है। धन का कुछ अंश यदि परमार्थ और सेवा के कार्यों में लगाया जाए तो वह धन सार्थक और फलीभूत माना जाता है।
भागवत कथा की मानें तो पिता पांच प्रकार के होते हैं – जन्म देने वाले, पालन करने वाले, शिक्षा देने वाले, भयमुक्त बनाने वाले और मृत्यु से बचाने वाले। इस प्रकार पांच तरह के पिता माने गए हैं। नंद बाबा पालन करने वाले पिता हैं। दुनिया में कई तरह के सुख मिल सकते हैं। धन, वैभव, पद, प्रतिष्ठा और अन्य तरह के भोग विलास से सुख तो मिल सकता है, लेकिन सच्चा आनंद तो परमात्मा की प्राप्ति से ही संभव है। बाकी सब सुख थोड़े समय के लिए हो सकते हैं, लेकिन भगवान से मिलने वाला सुख स्थायी होता है। भगवान कहीं और नहीं हमारे अंतर्मन में ही विराजित हैं, लेकिन उन्हें अनुभूत करने के लिए मन को मथना जरूरी है। जिस तरह मक्खन को मंथन के बाद घी में बदला जाता है, उसी तरह मन का मंथन भी किसी न किसी रूप में हमें परमात्मा की अनुभूति कराता है। भक्ति में सम्पूर्णता, निष्ठा और श्रद्धा होना चाहिए।

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!