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गुड मूड, गुड हार्मोन, गुड बर्थ: बच्चों के साथ मांओं का ख्याल भी जरूरी

गर्भावस्था नहीं है बीमारी, बस विशेष ध्यान रखने की है जरूरत

गुड मूड, गुड हार्मोन, गुड बर्थ: बच्चों के साथ मांओं का ख्याल भी जरूरी

*हेलो मॉमीज़: मांओं और गर्भवती महिलाओं के लिए केयर सीएचएल में विशेष आयोजन*

• गर्भावस्था से लेकर बच्चे की देखभाल तक हर विषय पर विशेषज्ञों ने दिए सवालों के जवाब
• गर्भावस्था नहीं है बीमारी, बस विशेष ध्यान रखने की है जरूरत

इंदौर, । माँ और नवजात शिशु दोनों की सही देखभाल बहुत जरुरी है। गर्भावस्था से लेकर स्तनपान और फिर नवजात शिशु की देखभाल मातृत्व के बहुत जरुरी पहलू बन जाते हैं। सही देखभाल से माँ के साथ साथ शिशु को भी एक सेहतमंद जीवन मिलता है। मातृत्व से जुड़े विषयों के बारे में जानकारी देने के लिए केयर सीएचएल हॉस्पिटल के केयर वात्सल्य वुमेन एंड चाइल्ड इंस्टिट्यूट ने शनिवार को मातृत्व और नवजात देखभाल पर आधारित एक विशेष कार्यक्रम “हेलो मॉमीज़” का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में शहर की 100 से अधिक अभिभावकों ने भाग लिया। महिलाओं के सवालो के जवाब देने के लिए इस कार्यक्रम में स्त्री रोग विशेषज्ञ, शिशु रोग विशेषज्ञ, डाइटीशियन एवं न्यूट्रीशियन भी मौजूद रहे।

*केयर सीएचएल हॉस्पिटल की स्त्री रोग विशेषज्ञ और वरिष्ठ सलाहकार एवं विभागाध्यक्ष डॉ. नीना अग्रवाल ने कहा कि,* “प्रेग्नेंसी के दौरान हाथों और पैरों की हल्की-फुल्की एक्सरसाइज करते रहना फायदेमंद है, इससे रक्त प्रवाह अच्छा रहता है और थकान कम होती है। खाने-पीने की आदतों पर ध्यान देना भी जरूरी है। ज्यादा मीठा खाने से बचें, क्योंकि यह गर्भावस्था के दौरान शुगर लेवल को प्रभावित कर सकता है। अपने स्वास्थ्य और बच्चे के स्वास्थ्य को हल्के में न लें। बच्चे की हर छोटी-बड़ी जरूरत को समझें और नियमित रूप से डॉक्टर से परामर्श लेते रहें। पौष्टिक आहार लेना, पर्याप्त मात्रा में पानी पीना और समय पर सभी जरूरी जांच करवाना बेहद जरूरी है। तनाव से बचें और डॉक्टर पर भरोसा रखें। सकारात्मक रहना और परिवार का सहयोग लेना मां और बच्चे दोनों के लिए लाभदायक होता है।”

*नवजात शिशु की देखभाल पर माताओं और गर्भवती महिलाओं को संबोधित करते हुए केयर सीएचएल हॉस्पिटल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सौरभ पिपरसानिया ने कहा कि,* “ब्रेस्टफीडिंग बच्चे के स्वास्थ्य और विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। जिन माताओं को दूध न आने की समस्या हो, वे आत्मविश्वास बनाए रखें और हर ढाई-तीन घंटे में बच्चे को दूध पिलाएं। बच्चे का दूध बाहर निकालना या उल्टी करना सामान्य है। दूध पिलाने के बाद कुछ देर बच्चे को कंधे पर रखें। बच्चे का रोना सामान्य है, लेकिन अगर बच्चा लगातार रो रहा हो तो डॉक्टर से सलाह लें। सर्दियों में बच्चे को ढक कर रखें, लेकिन ओवर क्लोथिंग से बचें। हाइजीन का विशेष ध्यान रखें क्योंकि संक्रमण अक्सर माता-पिता से बच्चों तक पहुंचता है। सभी जरूरी वैक्सीनेशन समय पर करवाएं और वैक्सीनेशन कार्ड का पालन करें। बच्चों को गैजेट्स से दूर रखें और उनकी देखी-सुनी हर चीज पर ध्यान दें। केमिकल वाइप्स और डाइपर की जगह पानी और कपड़े के नैपकिन का उपयोग करें। “अंजीर का तेल, जैतून का तेल और नारियल का तेल मालिश के लिए बहुत अच्छे हैं, लेकिन इसे सही तरीके से और सावधानीपूर्वक करें। बच्चों की देखभाल केवल मां की जिम्मेदारी नहीं है; पिता और परिवार के अन्य सदस्यों को भी सहयोग देना चाहिए।

*डिलीवरी के बाद फिजियोथेरेपी पर केयर सीएचएल हॉस्पिटल के फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. सचिन जलानी ने बताया कि,* “डिलीवरी के बाद महिलाओं के शरीर में कई बदलाव होते हैं, जो उनके स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। इनमें पीठ दर्द (लो बैक पेन), यूरीन का रिसाव (यूरीनरी लीकेज) जैसी समस्याएं आम हैं। डिलीवरी के बाद हार्मोनल बदलाव का प्रभाव तीन महीने तक बना रह सकता है। पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज, जैसे कि कीगल एक्सरसाइज और ब्रिजिंग, इन समस्याओं को ठीक करने और शरीर को सामान्य स्थिति में लाने में मदद करती हैं। ये एक्सरसाइज पेल्विक मांसपेशियों को मजबूत बनाती हैं और यूरीनरी लीकेज को रोकने में सहायक होती हैं। इसके अलावा, ब्रीदिंग एक्सरसाइज और सर्कुलेशन एक्सरसाइज भी बेहद फायदेमंद हैं, क्योंकि ये शरीर में रक्त प्रवाह को बेहतर करती हैं और मांसपेशियों को आराम देती हैं। यूरीन को बहुत देर तक रोकने से बचें, क्योंकि यह समस्या को बढ़ा सकता है। लो बैक पेन से राहत के लिए सही पोस्चर बनाए रखना बेहद जरूरी है। उठने-बैठने के दौरान विशेष सावधानी बरतें और ब्रेस्टफीडिंग के दौरान सही पोस्चर अपनाएं, ताकि पीठ और गर्दन पर अनावश्यक दबाव न पड़े। डिलीवरी के बाद फिजियोथेरेपी न केवल शारीरिक समस्याओं को कम करती है, बल्कि महिलाओं के आत्मविश्वास और जीवन की गुणवत्ता को भी बढ़ाती है।”

*केयर सीएचएल हॉस्पिटल की फीटल मेडिसिन कंसल्टेंट डॉ. अदिति लाड ने गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड के महत्व और उनकी सही समयसीमा के बारे में बताते हुए कहा कि* “प्रेग्नेंसी के दौरान उचित समय पर अल्ट्रासाउंड करवाना मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। शुरुआत में अर्ली प्रेग्नेंसी टेस्ट करवाया जाता है, जिससे यह पता चलता है कि महिला गर्भवती है या नहीं, गर्भ में एक बच्चा है या जुड़वां, और किसी प्रकार की समस्या तो नहीं है। गर्भावस्था के तीसरे महीने में एंटी स्कैन (न्यूक्ल ट्रांसलूसेंसी स्कैन) किया जाता है, जिससे बच्चे की ग्रोथ, संभावित समस्या और आनुवांशिक विकारों का पता लगाया जा सके। इसके बाद एनॉमली स्कैन या टारगेट स्कैन गर्भावस्था के मध्य चरण में किया जाता है, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि बच्चे के सभी अंग सही तरीके से विकसित हो रहे हैं या नहीं। गर्भावस्था के अंतिम चरण में ग्रोथ स्कैन किया जाता है, जो बच्चे की ग्रोथ, उसकी स्थिति, एम्नियोटिक फ्लुइड (पानी का स्तर) और प्लेसेंटा की स्थिति की जानकारी देता है। इन सभी स्कैन के माध्यम से बच्चे की सही विकास प्रक्रिया को ट्रैक करना और समय पर किसी भी समस्या का समाधान करना संभव होता है। नियमित रूप से डॉक्टर की सलाह के अनुसार अल्ट्रासाउंड कराना मां और बच्चे दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।”

*केयर सीएचएल हॉस्पिटल की डायटिशियन एवं न्यूट्रिशनिस्ट डॉ. रेणु जैन ने गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद पोषण से जुड़ी जरूरी बातों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि,* “प्रेग्नेंसी के दौरान एक वेल बैलेंस्ड डाइट बेहद जरूरी है, जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल्स, आयरन-रिच फूड और गुड फैट शामिल हो। सब्जियां, घी, और विटामिन-सी युक्त खाद्य पदार्थों को आहार का हिस्सा बनाना चाहिए। हालांकि, शुरुआत में पपीता और पाइनएपल जैसे फलों से परहेज करना चाहिए। हमेशा हाइड्रेटेड रहें और बाहर के खाने से बचें, क्योंकि इससे संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें। ज्यादा चीनी और नमक का सेवन करने से बचें, क्योंकि इससे डायबिटीज और हाइपरटेंशन जैसी समस्याओं का खतरा हो सकता है। साथ ही, लंबे समय तक भूखे न रहें और थोड़ी-थोड़ी देर में कुछ न कुछ खाते रहें। ज्यादा देर तक एक ही जगह बैठने के बजाय हल्की-फुल्की मूवमेंट करते रहना भी जरूरी है। डिलीवरी के बाद सही पोस्चर का ध्यान रखना चाहिए। प्रसव के एक घंटे के भीतर बच्चे को स्तनपान कराना शुरू कर देना चाहिए और इसे कम से कम 6 महीने तक जारी रखना चाहिए। स्तनपान कराने के बाद पानी पीना और अपने आहार में दूध व उससे बने उत्पादों को शामिल करना भी महत्वपूर्ण है। इन सभी बातों का ध्यान रखने से मां और बच्चे दोनों का स्वास्थ्य बेहतर रहता है।”

कार्यक्रम के बाद भाग लेने वाले अभिवावकों ने अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा किए और विशेषज्ञों से महत्वपूर्ण सुझाव प्राप्त किए। एक प्रतिभागी ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा, “यह सत्र मेरी गर्भावस्था से जुड़ी कई शंकाओं को दूर करने में मददगार साबित हुआ। विशेषज्ञों के सुझाव बहुत ही उपयोगी और व्यावहारिक थे। कार्यक्रम के बाद अभिवावकों ने लाइव फोटो सेशन में हिस्सा लिया, जहां कार्यक्रम के बाद उन्हें खूबसूरत फ्रेम में केयर सीएचएल परिवार की ओर से ये फोटोज भेंट की गई।

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