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श्रद्धा और विश्वास के दो स्तंभों पर ही यह दुनिया और यहां के सारे रिश्ते टिके हुए हैं – भास्करानंद

और यहां के सारे रिश्ते टिके हुए हैं - भास्करानंद

इंदौर से विनोद गोयल की रिपोर्ट:—–

इंदौर,। पाप कर्म करने के लिए शक्ति चाहिए, लेकिन पुण्य कर्म के लिए भक्ति ।  बिना भक्ति के पुण्य संभव नहीं है। शिव का नाम ही भोले भंडारी है। उनकी शरण में पहुंचने पर बड़े से बड़ा अपराध भी क्षम्य हो सकता है। शिव इतने सरल देव हैं कि रावण को भी उन्होंने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान दे दिया, लेकिन दुरुपयोग करने पर वही वरदान रावण के लिए अभिशाप बन गया और सर्व शक्ति संपन्न होने पर भी रावण को पतन का शिकार होना पड़ा। शिव श्रद्धा और पार्वती विश्वास। श्रद्धा और विश्वास के दो स्तंभों पर ही यह दुनिया और यहां के सारे रिश्ते टिके हुए हैं।

            वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने मंगलवार को  अग्रवाल संगठन नवलखा क्षेत्र द्वारा आनंद नगर स्थित आनंद मंगल परिसर में आयोजित शिव पुराण कथा में मौजूद श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए उक्त दिव्य बातें कहीं। कथा शुभारंभ के पूर्व साध्वा कृष्णानंद के सानिध्य में सुनील अग्रवाल, राजेन्द्र अग्रवाल, अखिलेश गोयल, विकास मित्तल, कार्यक्रम संयोजक मृदुल अग्रवाल ने व्यासपीठ का पूजन किया। कथा के दौरान साध्वी कृष्णानंद ने अपने मनोहारी भजनों से भक्तों को भाव विभोर बनाए रखा।

            आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने कहा कि शिव पुराण ऐसी ज्योत है, जिसके संपर्क में आने पर हमारे मन के अज्ञान रूपी अंधकार का नाश हो जाता है।संसार में कोई भी जीव ऐसा नहीं है, जो दुख चाहता हो। हर कोई प्रत्येक कर्म सुख पाने की इच्छा से ही करता है। शिव पुराण भगवान शिव की कृपा, करूणा, दया और अपनत्व का भंडार है। भगवान शिव का स्वभाव हमारे पाप कर्मों के शमन का है। शिव के पास अमृत है, जबकि हमारे पास जहर के सिवाय कुछ नहीं। हमसे हमारा विष लेकर बदले में हमें अमृत देने वाले केवल महादेव ही हो सकते हैं।

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