इतिहास से रूबरू करवाने के लिए आज भी प्राचीन शिलालेख को समेटे हुए धार संग्रहालय 123 साल पुराना धार संग्रहालय
5 वी शताब्दी से लगाकर 13वीं शताब्दी की 555 मूर्तियां व 400 साल पुराने सिक्के भी यहां मौजूद।

आशीष यादव धार
आज अपने आंचल में इतिहास मे की धरोहर को समेटे हुए धार का संग्रहालय है जो आज 123 साल पुराना हो गया है
वही धार में पुरातत्यान अवशेषों का संकलन 1875 ई. से प्रारम्भ हुआ। सर्वप्रथम धार के राजवाडा के पास मलवे से कुछ पुरासामग्री संकलित की गई। 15 जुलाई 1898 में पँवार शासक आनंदराव तृतीय की मृत्यु हो जाने पर उनके के दत्तक पुत्र उदाजीराव पँवार के अवयस्क होने से शासन की वास्तविक बागडोर भोपावर के पॉलीटिकल एजेन्ट के हाथों में रही। भोपावर में उस समय मेजर किन चाईड पॉलीटिकल एजेन्ट थे। इनकी पुरातत्व के क्षेत्र में काफी रूचि थी तथा इनके प्रयासों के कारण धार से अनेक कलाकृतियों का संकलन किया गया। इनमें से भोजशाला से प्राप्त वाग्देवी प्रतिमा भी सम्मिलित थी, जो अब ब्रिटिश संग्रहालय लंदन में प्रदर्शित है। अंग्रेज अधिकारी केप्टन वार्नेज एवं श्रीमती वार्नेज के प्रयासों से लार्ड कर्जन के धार प्रवास के दौरान 1902 ई. में “राजरतन” के. के. लेले द्वारा संग्रहालय की स्थापना की जो इस संग्रहालय के प्रथम संग्रहाध्यक्ष भी थे। संग्रहालय का सबसे पहले संकलन 1902 से 1913 तक आनंद हाई स्कूल में रखा गया, तत्पश्चात् इसे 1913 में विक्टोरिया लाईब्ररी भवन में स्थानांतरित कर दिया गया। 1939 ई. में संग्रहालय उटावद गेट पर चर्च भवन में स्थानांतरित किया गया तथा 2010 तक यही रहा। 24 अक्टूबर 2010 से संग्रहालय धार किले में स्थित इस भवन में स्थायी रूप से स्थानांतरित कर दिया गया। इस भवन में इसके पूर्व धार रियासत की जेल, केन्द्रीय विद्यालय तथा होमगार्ड कमाडेन्ट का कार्यालय रहा।
आज 123 साल पुराना धार संग्रहालय:
आज आपको शहर के किले में स्थित मप्र सबसे पुराना संग्रहालय है जो 123 साल पुराने संग्रहालय ले चलते हैं, जहां 5 से 13वीं शताब्दी की प्राचीन मूर्तियां, पत्थर, शिलालेखों और अन्य अवशेष सहेजकर रखे गए हैं। यहां 400 साल से अधिक पुरानी तांबे व पीतल की मुद्राएं भी है। इसकी ख्याति ऐसी है कि इसे देखने के लिए लोग देश-विदेश से यहां आते हैं। यहां गौरवशाली इतिहास की जानकारी मिलती है, जो हमें हमारे समृद्ध इतिहास की याद दिलाते हैं। यहां आज पर्यटकों को एक निशुल्क प्रवेश मिलेगा, जबकि शहरवासियों के लिए 5 दिनी शैव प्रतिमाओं पर आधारित छायाचित्र प्रदर्शनी लगेगी। जिन्हें शहरवासी निहार सकेंगे। पर्यटन के लिहाज से धार के किले में स्थित प्राचीन संग्रहालय अपने आप में खास है। यहा भोजशाला के भी अभिलेख यहा है जिसमे अर्धनारीश्वर, व भगवान कुबेर मूर्ति भी यहा है वही बूढ़ी मांडू से लेकर जिलेभर में खुदाई के दौरान मिले पुरातत्व महत्व के अवशेष 6 गैलरी में रखे हुए है।
स्थापना 1902 में की गई 500 से अधिक मूर्तियां:
यहां आने वाले पर्यटक इतिहास की रोचक जानकरी से रोमांचित हो जाते है। इसकी स्थापना 1902 में की गई थी। इसमें बूढ़ी मांडू समेत जिले के अनेक स्थानों से प्राप्त करीब 554 मूर्तियां संग्रहित करके रखी हुई है। इसके अलावा 6 अलग-अलग विथिकाएं यानी गैलरी हैं। पुरातत्व महत्व के बर्तन व लोक परंपरा से जुड़ी सामग्री भी है इसमें एक मूर्ति कला की गैलरी, दूसरी अभिलेख आधारित गैलरी, तीसरी चित्रकला आधारित व चौथी आदिवासी लोक कला और परंपरा से जुड़ी हुई सामग्री की कला गैलरी है। पांचवी गैलरी पुरातत्व वस्तुओं से संबंधित होकर इसमें पुरातत्व महत्व के बर्तन, कपड़े सहित अन्य कई धरोहर है। सबसे अहम छठी गैलरी में 400 साल पुरानी मुद्रा यानि सिक्के है। हालांकि इन सिक्कों की सुरक्षा व रखरखाव को लेकर विशेष सावधानी रखी जाती है। मां नर्मदा की प्रतिमा समेत शैव शैली की प्राचीन प्रतिमाएं भी है। अक्टूबर 2010 से यह संग्रहालय धार किला स्थित जेल भवन में संचालित है जो इतिहास के विद्यार्थियों के साथ-साथ आम बच्चों और पर्यटकों के लिए भी खास है। अंग्रेजों के शासनकाल में स्थापित यह पुरातत्व संग्रहालय कभी धार के उदावद दरवाजा क्षेत्र में संचालित होता था। यहां विभिन्न मूर्तियां और ऐसी धरोहर हैं जो अपने आप में देखने योग्य हैं। इस संग्रहालय ब्रिटिश कालीन मूर्तिया भी जैसे रानी विक्टोरिया व पुरानी मुर्दा व तामपत्र जैसे कही पुरानी वस्तुए यहा रखी हुई हैं।
देश के साथ साथ विदेशी पर्यटक भी पहुंचते हैं:
पर्यटकों के प्रवेश पर शुल्क लिया जाता है। वही दिनेश मंडलोई बताते है कि भारतीय पर्यटक से 20 रु. प्रति पर्यटक जबकि विदेशी पर्यटकों से 400 रुपए शुल्क लिया जाता है। वहीं 10 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए प्रवेश निःशुल्क है। यहा पुराने समय मे होमगार्ड का कार्यालय हुआ करता था। सबसे पहले यहा ब्रिटिश कालीन जेल हुआ करती। वही कुछ समय जगह वीरान रही उसके बाद होमगार्ड का कार्यालय का संचालन हुआ साथ सेंट्रल जेल भी यहा पर रही है वही बाद में केंद्रीय विद्यायल यहा चालू किया फिर सन 2010 यह पुरातत्व विभाग के अधीन है। जो आज पुरातत्व संग्रहालय बना हुआ है। जहां जिले से निकलने वाली पुरानी वस्तु व प्रतिमाओं का एक अच्छा संग्रहण केंद्र बनाया हुआ है।