कंस प्रवृत्ति से मुकाबले के लिए समाज को संगठित होना जरूरी – स्वामी नलिनानंद

इंदौर, । भारतीय समाज सोलह संस्कारों से मर्यादित और अलंकृत है। पहले हर काम संस्कारों पर आधारित होता था, लेकिन अब संस्कारों और संस्कृति से विमुखता हो रही है। समाज में पाश्चात्य संस्कृति के नाम पर विकृतियां पनप रही हैं। इन विकृतियों का मुकाबला संस्कारों और संस्कृति से ही संभव है। भारत की संस्कृति इतनी सुदृढ़ है, इसीलिए इसे सनातन संस्कृति कहा जाता है। सनातन अर्थात शाश्वत या कभी नष्ट नहीं होने वाली। कंस किसी व्यक्ति का नहीं, बल्कि प्रवृत्ति का नाम है। आज भी समाज में कंस प्रवृत्ति मौजूद है। इनके मुकाबले के लिए समाज को संगठित होने की जरूरत है।
वाशिंगटन (अमेरिका) से आए, इटरनल वॉइस के संस्थापक भारतीय मूल के स्वामी नलिनानंद गिरि महाराज ने आज एम.आर. 10 रोड, रेडिसन चौराहा के पास स्थित दिव्य शक्तिपीठ पर चल रहे श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ एवं सत्संग में उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व डॉ. दिव्या-सुनील गुप्ता, दिनेश मित्तल, अशोक ऐरन, विनोद सिंघल, श्याम सिंघल, राजेश कुंजीलाल गोयल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। कथा के दौरान आज गोवर्धन पर्वत की झांकी सजाकर 56 भोग भी समर्पित किए गए। विभिन्न वाद्य यंत्रों एवं शहनाई की सुर लहरियों पर भक्तों के नाचने और थिरकने का क्रम आज भी चलता रहा।
गोवर्धन पूजा प्रसंग पर विद्वान वक्ता ने कहा कि गोवर्धन पर्वत कोई पर्वत नहीं, स्वयं भगवान का ही स्वरूप है। इंद्र के अहंकार को तोड़ने और ब्रज क्षेत्र के लोगों को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए भगवान ने यह लीला की है। वैसे भी भगवान की लीलाओँ को समझना हमारे बूते की बात नहीं हो सकती, क्योंकि खुद सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी भी उनकी लीलाओं को नहीं समझ पाए थे। आज समाज में कंस की प्रवृत्ति बढ़ रही है। सामाजिक विघटन हो रहा है। कंस व्यक्ति नहीं, प्रवृत्ति का नाम है। इनसे मुकाबले के लिए समाज को संगठित होने की जरूरत है।