मन और बुद्धि के समन्वय से निरंतर अभ्यास करते हुए स्वयं को आत्म संयमित बनाएं

मन और बुद्धि के समन्वय से निरंतर अभ्यास करते हुए स्वयं को आत्म संयमित बनाएं
जे.के. योग केन्द्र के संस्थापक और विश्व प्रसिद्ध योग प्रशिक्षक स्वामी मुकुंदानंद को इंदौर से भावपूर्ण बिदाई
इंदौर, जीवन में आत्म संयम बहुत जरूरी है। आत्म संयम के बूते पर ही हम अपने मन को नियंत्रित बना सकते हैं। जिव्हा, स्वास्थ्य और वाणी पर नियंत्रण के लिए आत्म संयम के रास्ते से ही आगे बढ़ा जा सकता है। ऐसा नहीं किया तो मन निरंकुश होकर हमें व्यसनी, बीमार एवं क्रोधी भी बना सकता है। मन पर संयम पाने की साधना कोई बड़ी या कठिन साधना नहीं है। मन छोटे बच्चे के समान होता है। मन और बुद्धि के समन्वय से ही हम निरंतर अभ्यास करते हुए आत्म संयम की स्थिति प्राप्त कर सकते हैं। जीवन में सुख और आनंद की अनुभूति तभी संभव होगी, जब हम पूरी तरह से तनाव मुक्त होकर अपने दायित्व पूरे करेंगे।
जगदगुरू स्वामी कृपालु महाराज के शिष्य और योग एवं ध्यान के विश्व प्रसिद्ध प्रशिक्षक स्वामी मुकुंदानंद ने लाईफ ट्रांसफार्मेशन प्रोग्राम के तहत जीवन को सहज-सरल और सार्थक बनाने के सूत्रों पर आधारित सत्संग ‘द आर्ट एंड साइंस ऑफ हैप्पीनेस’ विषय पर देशभर से आए प्रबुद्धजनों को संबोधित किया हुए उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। दो दिवसीय सत्संग के बाद आज स्वामी मुकंदानंद ने जब इंदौर से बिदाई लेना चाही तो सैकड़ों शिष्य और प्रशंसक भावुक हो उठे। जे.के. योग केन्द्र इंदौर की ओर से राजेन्द्र माहेश्वरी, महेश गुप्ता, उमेश भराणी, कुशल चौरे, पंकज पंचोली, जे.पी. फड़िया आदि ने उन्हें आत्मीय बिदाई दी। गीता भवन सत्संग सभागृह में शहर के भक्तों ने उनका सम्मान किया। इस अवसर पर स्वामी मुकुंदानंद ने इंदौर की सफाई व्यवस्था की खुले मन से प्रशंसा की और कहा कि अब यहां के लोगों में सफाई का स्वभाव बन गया है। स्वभाव और आदत बन जाने के बाद इंदौर का नागरिक कहीं भी आसानी से पहचाना जा सकता है, जो अपने कचरे को उपयुक्त स्थान पर फेंकने का अभ्यस्थ हो गया है। यह अच्छा गुण है, जिसे अब नई पीढ़ी में भी हस्तांतरित करना होगा। स्वामी मुकुंदानंद यहां से हैदराबाद, बैंगलुरू, चैन्नई, तिरुपति और पटना यात्रा पर प्रस्थित हुए।