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पैरेंट्स जितना भी समय बच्चो को दें क्वालिटी समय दें, कभी भी गिल्ट फील पैरेंटिंग न करें बल्कि गिल्ट फ्री पैरेंटिंग करें

इंदौर । कई बार देखने में आता है कि बच्चे पैरेंट्स को आवाज लगाते रहते हैं और पैरेंट्स अपनी ही धून में होते हैं…। ये गलत है। सब काम छोडक़र उन्हें सुने, मम्मी किचन में से गैस बंद करके पहले उन्हें अटैंड करें और पापा मोबाइल और किसी से बात भी कर रहे हैं तो पहले बच्चो की बात का जवाब दें, वरना बच्चे एक दिन उनसे अपनी बात कहना तो बंद कर ही देंगे बल्कि बाद में जब आप कुछ बोलेंगे तो वो नहीं सुनेंगे…। यह बात चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट एंड काउंसलर डॉ विनी झारिया ने शेयर की ।

वे क्रिएट स्टोरीज एनजीओ द्वारा आयोजित वर्कशॉप में सेंट अर्नाल्ड स्कूल के प्री प्राइमरी टीचर्स से चर्चा कर रही थी । वे पेरेंट्स के आने वाले सवालों को समझ सकें क्योंकि बच्चे उन टीचर्स को भी अपना पैरेंट ही मानते है । उन्होंने पैरेंट्स और टीचर्स द्वारा किस तरह अटेंशन दिया जाना चाहिए इस पर कई उन्होंने पहलुओं पर बात कही ।

एक्सपर्ट डॉ विनी झरिया ने कहा, पैरेंट्स जितना भी समय बच्चो को दे क्वालिटी समय दें, कभी भी गिल्ट फील पैरेंटिंग न करें बल्कि गिल्ट फ्री पैरेंटिंग करें । इसी तरह पैरेंट्स और टीचर्स को बच्चो के इमोशंस को समझना भी बहुत जरूरी है । एडल्ट होते हुए हमें भी कई बार बच्चो के इमोशंस समझ में नहीं आते हैं । बच्चा यदि कुछ फेंक रहा है या अग्रेसिव हो रहा है तो वो ऐसा क्यों कर रहा है ये समझना बहुत जरूरी है, जबकि पैरेंट्स और टीचर्स भी वैसे ही डिकोड या रिएक्ट करने लग जाते हैं। पता करें कि बच्चा जिस तरह से चीजों को रिफ्लेक्ट कर रहा है वो एक्चुअल में क्या है ? क्योंकि उस वक्त तो हमें वो अग्रेशन दिख रहा है लेकिन उनकी नजर में एक्चुअल में वही सही तरीका होता है ।

पैरेंट्स के लिए ये बातें हैं बहुत जरूरी-

बच्चो के लिए रुल्स सेट करें : यदि उन्हें आइसक्रीम खाना है तो खाने दें लेकिन यह भी बोल दें कि बीमार पडऩे पर दवाई लेना होगी।

बच्चो के रोने या बुरा मानने से डरे नहीं : कई बार वे किसी चीज की जिद् करते है तो उनके रोने या बुरा मानने के डर से उस विश को पूरा न करें बल्कि देखें कि क्या वाकई उनको उस चीज की जररुत है।

खुद बनाएं अपनी इमेज : जॉइंट फैमिली है तो कभी उन्हें ये महसूस न होने के कि मम्मी-पापा के हाथ में कोई पॉवर नहीं है, इससे वो अपनी बात किसी और सदस्य से मनवा लेंगे।

फेलियर एक्सेप्ट करना सिखाएं : किसी और से कम्पेयर करने पर यदि वो सामने वाले की तुलना में कमजोर हैं तो उन्हें फेलियर एक्सेप्ट करना सिखाएं, वरना ये कई बार खतरनाक भी साबित हो जाता है और विषय पर बच्चे के साथ डिस्कस करें।

बच्चो को ओवर पेम्परिंग बिल्कुल न करें : बच्चो को इमोशनल स्ट्रांग बनाएं लेकिन किसी मामले में ओवर पेम्परिंग न करें।

क्वालिटी टाइम स्पेंड करें : पैरेंट्स को बच्चो को साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करना चाहिए, चाहे साथ में मूवी देखना हो या गेम खेलना और खाना हो, सब उनके साथ करें, इससे वे आपके करीब रहेंगे और शेयरिंग भी बढ़ेगी।

हर चीज की प्रायरिटी तय करें : वीक में एक बार घूमने जाना है, लेकिन एक दिन सोशल सर्विस के लिए भी जाना है, लेकिन इस दौरान उन पर कोई बात थोपे नहीं।

बचपन से हो डिसिजन कैपेसिटी : जरूरी नहीं है कि 18 के बाद ही बच्चो को डिसिजन मेकिंग बनाना चाहिए, बल्कि बचपन से ही डिसिजन कैपिसिटी होना जरूरी है, इसके लिए उनसे पूछे उन्हें क्या पहनना है, क्या खाना हैै।

मोबाइल से दूर रखें और बड़ी स्क्रीन दें : स्क्रीन टाइम के रुल्स बना देंगे तो वो भी उसे फॉलो करेंगे, लेकिन बच्चो से मोबाइल छिनकर खुद मोबाइल चलाएंगे तो वो कभी उससे होने वाले नुकसान जान नहीं पाएंगे। ठीक वैसे ही कि यदि उन्हें जल्दी सुलाना है तो हमें भी जल्दी सोना पड़ेगा।

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