इंदौरधर्म-ज्योतिष

पर्यावरण, परमात्मा द्वारा सृजित प्रकृति का साफ-सुथरा स्वरूप, इसे संरक्षित बनाएं

इंदौर,। आज संसार के सुखों की होड़ में हमने प्रकृति को दूषित-प्रदूषित करने के अनेक संसाधन जुटा लिए हैं। हमने चौराहों को पीकदान और सड़कों को डस्टबीन समझ लिया है। पर्यावरण, परमात्मा द्वारा सृजित प्रकृति का साफ-सुथरा और प्रदूषण मुक्त स्वरूप है। इंदौर ने साफ-सफाई के मामले में देश में छठी बार झंडा फहरा दिया, लेकिन अभी भी हमें पर्यावरण की रक्षा के लिए बहुत से तरीके अपनाने की जरूरत है। पॉलीथीन एवं प्लास्टिक के उपयोग से लेकर अपने नदी-नालों को साफ-सुथरा बनाए रखने के लिए हमें संगठित और सामूहिक प्रयास करना होंगे। प्रदूषणमुक्त शहर की स्थापना के लिए हमें अपनी नैतिक जिम्मेदारी पूरी करना होगी। पर्यावरण की शुद्धता के लिए यज्ञादि कर्म भी ज्यादा से ज्यादा होना चाहिए।

भीलवाड़ा-शकरगढ़ से आए महांडलेश्वर स्वामी जगदीश पुरी महाराज ने आज अ.भा. गीता जयंती महोत्सव की धर्मसभा में मौजूद हजारों भक्तों को पर्यावरण संरक्षण की शपथ दिलाते हुए उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज की अध्यक्षता में चल रहे इस महोत्सव में आज के सत्संग सत्र का शुभारंभ डाकोर (गुजरात) से आए वेदांताचार्य स्वामी देवकीनंदन दास के प्रवचनों से हुआ। आगरा से आए राष्ट्र संत स्वामी हरि योगी, भदौही (उ.प्र.) से आए पं. सुरेश शरण, हरिद्वार से आए स्वामी श्रवण मुनि एवं स्वामी सर्वेश चेतन्य, रामकृष्ण मिशन इंदौर के सचिव स्वामी निर्विकारानंद, जोधपुर से आए संत हरिराम शास्त्री एवं भीलवाड़ा से आए महामंडलेश्वर स्वामी जगदीशपुरी महाराज ने भी विभिन्न विषयों पर अपने प्रभावी विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष राम ऐरन, मंत्री रामविलास राठी, संरक्षक ट्रस्टी गोपालदास मित्तल, महेशचंद्र शास्त्री, प्रेमचंद गोयल एवं गीता भवन हास्पिटल के डायरेक्टर डॉ. आर.के. गौर ने सभी संतों एवं विद्वानों का स्वागत किया। मंच का संचालन स्वामी देवकीनंदन दास ने किया।

आज गीता जयंती का मुख्य महापर्व – गीता भवन में चल रहे 65वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव में  18 अध्यायों का सामूहिक पाठ देश के जाने-माने संत, विद्वानों के सानिध्य में होगा। भगवान शालिग्राम के विग्रह पर आचार्यों द्वारा विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ से सहस्त्रार्चन भी होगा।

प्रवचन, – सत्संग सत्र में स्वामी देवकीनंदन दास ने कहा कि गीता कर्मों की श्रेष्ठता पर बल देने वाला अनुपम ग्रंथ है। हमारे जैसे कर्म होंगे, फल भी वैसे ही मिलेंगे। गीता निष्काम भाव से कर्म करने की प्रेरणा देती है। आगरा से आए स्वामी हरि योगी ने कहा कि गीता अदभुत ग्रंथ है, जो युद्ध के मैदान में रचा गया। यह साक्षात भगवान श्रीकृष्ण की वाणी है, जो नित्य नूतन अनुभूति कराती है। भदौही से आए पं. सुरेश शरण रामायणी ने कहा कि आज का अखबार कल पुराना हो जाता है, लेकिन गीता कभी पुरानी नहीं होती। यह भगवान की ऐसी रचना है, जो जितनी बार पढ़ी जाए, उतनी बार नया संदेश देती है। इतिहास साक्षी है कि बड़े से बड़े अपराधी और दुराचारी का भी उद्धार हुआ है, जिसने भगवान की भक्ति और भजन का आश्रय लिया है। भजन चतुरता से नहीं, भक्ति भाव से करना चाहिए। हरिद्वार के श्रवण मुनि ने कहा कि कलियुग में भगवान नाम का संकीर्तन कुछ पल के लिए भी कर लेंगे तो कल्याण हो जाएगा। हम सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की भावना वाले लोग हैं। कुरुक्षेत्र की रणभूमि में भगवान जिसके सारथी बन जाते हैं, उसकी विजयश्री में की संदेह नहीं होता। इसी तरह हम भी अपने जीवन रथ की बागडोर भगवान के हाथों में सौंप देंगे तो हमारी भी विजयश्री सुनिश्चित हो जाएगी। सच्चा सुख प्रभु के चरणों में ही मिलेगा, लेकिन हम संसार के साधनों में ढूंढ रहे हैं। हरिद्वार के ही स्वामी सर्वेश चेतन्य ने कहा कि अपने घर में हम भोग विलास की चाहे जितनी सामग्री बाजार से खरीद सकते हैं, लेकिन मन की शांति नहीं खरीद सकते। बचपन में दूध नहीं पीने वाले बच्चों को माताएं डराती हैं कि दूध नहीं पीओगे तो बाबा आ जाएगा। ऐसा बच्चा बड़ा होने पर साधु-संतों के पास जाने में भी डरता है। संतों का सानिध्य मिले बिना विवेक का प्राप्ति नहीं होगी और जब तक विवेक नहीं मिलेगा, तब तक हम पशु तुल्य ही माने जाएंगे। रामकृष्ण मिशन इंदौर के सचिव स्वामी निर्विकारानंद ने कहा कि मानव जीवन का प्रमुख उद्देश्य ईश्वर की प्राप्ति है, भोग विलास नहीं। अन्य सभी योनियों में भोग को प्राथमिकता दी गई है। केवल मनुष्य ही ऐसा जीव है, जिसे ईश्वर की प्राप्ति का लक्ष्य मिला है। यह चिंतन का विषय है कि हम कहां से आएं हैं और कहां जाएंगे। याद रखें कि संसार में जो कुछ है, ईश्वर के सिवाय कुछ नहीं है। ईश्वर की सत्ता ही सर्वोपरि है। असल में हम बाहरी या संसारी रिश्तों में बंधे हुए हैं। हमारा स्वभाव और चरित्र वैसा ही बनेगा, जैसी हम संगत करेंगे। दुर्जनों का संग हमें भी अपराधिक श्रेणी का बना देता है। इसीलिए हमारे सभी धर्मग्रंथों में सत्संग को प्राथमिकता दी गई है। मन ही बंधन का भी कारण है और मुक्त का भी। मन ही विचार और संस्कार हैं। मन का अलग से कोई अस्तित्व नहीं होता। संकल्प करें कि हम अपने जीवन में सत्संग को भी प्राथमिकता देंगे। जोधपुर से आए रामस्नेही संत हरिराम शास्त्री ने कहा कि भारत भूमि में भारतीय एवं सनातनी होने का गौरव हमें प्राप्त है। आजकल देश में धर्मांतरण की चर्चा हो रही है। हम सर्वे भवन्तु सुखिनः के भाव वाले लोग हैं। हम प्राणी मात्र में सदभाव की कामना रखने वाले लोग हैं। हमारा देश गोविंद, गीता, गाय, गोवर्धन और गणेश की वंदना, पूजा का पक्षधर है और इसीलिए हमारी जड़ें बहुत मजबूत हैं। गीता उदासीनता से प्रसन्नता, भोग से योग, प्रमाद से आल्हाद की ओर ले जाने वाला अदभुत और अनुपम ग्रंथ है। अध्यक्षीय उदबोधन में जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज ने कहा कि संसार के सारे रिश्तों को ताक में रखकर केवल एक परमात्मा से ही मजबूत रिश्ता रख लें तो वे भी हमारी मदद के लिए हर समय तैयार और तत्पर रहेंगे। भय का अभाव और भक्ति का प्रभाव हमारे अंतःकरण को शुद्ध बनाते हैं। स्वयं को धोखा देने वाला कभी सुखी नहीं रह सकता।

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!