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16 हजार 731 किसानों ने करवाया पंजीयन, इसबार सरकारी 2600 में खरीदेंगी गेहूं मिलेगा 175 रु बोनस।

गेंहू कटाई का काम चालू सरकारी खरीदी 15 मार्च से पंजीयन 31 मार्च आखरी तारीख।

आशीष यादव धार

किसानों द्वारा सरकारी खरीदी से मुंह मोढ़ते हुए नजर आ रहे हैं जहां एक और जिले में गेहूं की रिकॉर्ड बुआई के बावजूद किसानों का रुझान सरकारी बिक्री को लेकर लगातार कम होता जा रहा है। यही कारण है कि साल दर साल किसानों के पंजीयन का आंकड़ा कम हो रहा है। वहीं उपज बेचने वाले किसान भी सीमित हो गए हैं। पिछले साल भी बड़ी संख्या में किसान उपज बेचने के लिए केंद्रों पर नहीं पहुंचे। हालांकि इसके पीछे कई कारण है, लेकिन सबसे बड़ा कारण रेट का है, जो बाजार भाव से कम है। इस साल भी पंजीयन का आंकड़ा16 हजार पार तक ही पहुंचा है। उल्लेखनीय है कि इस साल सरकार द्वारा गेहूं पर समर्थन मूल्य 2425 रुपए घोषित किए है। साथ ही 175 बोनस की भी बात कही गई है। वर्तमान में मंडी के अंदर गेहूं के अधिकतम भाव तीन हजार से ऊपर है। ऐसे में किसानों का ध्यान मंडी की ओर अधिक है। अभी नई फसल मंडियों में आना शुरू हो गई है जिसमें गेंहू 12 हजार बोरी की आवक दर्ज की गई है। वही अभी कुछ क्षेत्र की फसल कट कर ही बाजार में आई जिसमे ही मण्डी का दाम फूल रहा है।

सबसे कम पंजीयन डही में:
जिले की 9 तहसीलों में पंजीयन में सबसे कम आंकड़ा डही का है क्योकि उपार्जन के लिए वर्तमान में पंजीयन की प्रक्रिया चल रही है। यह 20 जनवरी से शुरू हुई जो 31 मार्च तक चलेगा ओर होली बाद खरीदी चालू की जायेगी। वही जिले में सर्वाधिक पंजीयन बदनावर तहसील 10 हजार से अधिक हुए हैं। इसी प्रकार धार में 9425 और सरदारपुर में 4463 व पीथमपुर में 2815 पंजीयन हुए हैं, जबकि निमाड़ अंचल की पांच तहसीलें मनावर, गंधवानी, कुक्षी, धरमपुरी और डही का आंकड़ा 1400 भी नही पहुँच पाया है। वैसे भी गेहूं के पैदावर में लगातार गिरावट आने और लागत बढने से किसानों का मोह भंग होता जा रहा है। निमाड़ में इस बार किसानों ने गेहूं की तुलना में डालर चना व मक्का की फसल बोवाई की गई है

पिछले साल 28 हजार किसानों ने करवाया पंजीयन:
गतवर्ष भी 21 हजार किसान नहीं पहुंचे थे केंद्रों तक क्योकि की पिछले सालों में समर्थन मूल्य के रेट कम थे। ओर मण्डी मे भाव अच्छा था वही किसानों का कहना है फसल की लागत बढ़ गई है। ओर सरकार की खरीदी कम भाव है इस लिए मंडियों की ओर रुख रहता है। वही सरकार ने भी इसबार सोयाबीन खरीदी की थी मगर गिनते के किसानों ने सोयाबीन सरकारी केंद्रों पर बेची थी पिछली बार 28328 किसानों ने पंजीयन कराया था, लेकिन केंद्रों पर उपज बेचने महज 7725 ही किसान पहुंचे थे। वहीं 75 हजार 586 क्विंटल की कुल खरीदी हुई थी। 66 में से कई केंद्रों पर खरीदी का श्रीगणेश भी नहीं हो पाया था।

वाजिब मूल्य मिलना चाहिए।
सरकारी खरीदी में किसानों का मोह भंग हो रहा है सरकारी नियंमो के चलते किसान गेंहू नही बेच पाता है वही खरीदी लेट होने के चलते किसान मंडियों में उपज बेच देते है।
खेती में हर साल लागत बढ़ रही है। ओर सरकार स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू नही कर रही है जिससे भी किसानों को वाजिब मूल्य नही मिल पा रहा है। सरकार को अपनी नीतियों में बदलाव कर लाभमकारी मूल्य देना चाहिए।
महेश ठाकुर, प्रांत मंत्री भारतीय किसान संघ

ये तीन कारण हैं खरीदी कम होने के
1 भाव में अंतरः- बाजार और सरकारी खरीदी के भाव में अंतर। पिछले साल सीजन की शुरुआत से मंडियों में गेहूं के दाम अच्छे होने से किसानों ने माल सरकार को बेचने की जगह मंडियों में बेचा। क्योंकि सरकारी खरीदी लेट चालू होती है।

02. नकद भुगतानः- मंडियों में उपज बेचने पर 2 लाख का नकद भुगतान प्राप्त होता है। सरकारी खरीदी के बाद भुगतान कही दिनों तक नही मिल पाता है । साथ ही सोयायटी से ऋण होने पर आधी राशि काट ली जाती है।

3.समय पर की बचत: किसान समय की साथ परेशान से बचने के लिए मंडियों में अपनी उपज बेचते है। क्योकि सरकारी खरीदी में नियंमो के करण कहि किसान उपज नही बेच पाते है।

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