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सेंधवा; वैश्विक स्तर पर विकास तो खुब हो रहा है लेकिन वह धारणीय विकास नहीं है

सेंधवा। वीर बलिदानी खाज्या नायक शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय सेंधवा में
शनिवार को राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया गया । सेमिनार का विषय “धारणीय विकास के लिए हरित कौशल” रहा । सेमिनार म.प्र. शासन, उच्च शिक्षा विभाग, भोपाल द्वारा प्रायोजित है एवं इसके आयोजक महाविद्यालय के रसायनशास्त्र विभाग और आई. क्यू.ए.सी. प्रकोष्ठ है ।
उद्याटन सत्र की शुरुआत मां सरस्वती के दीपप्रज्वलन के साथ हुई । स्वागत भाषण प्राचार्य डॉ जी एस वास्कले ने दिया । सेमिनार का परिचय देते हुए संयोजक डॉ दिनेश कनाडे कहा कि हमने इस विषय को इसलिए चुना कि वैश्विक स्तर पर विकास तो खुब हो रहा है लेकिन वह धारणीय विकास नहीं है, क्योंकि उसका खामियाजा हम भुगत रहे हैं जिसकी बानगी है देश की राजधानी दिल्ली का ए क्यु आई स्तर 500 से उपर जा रहा है । ऐसे में धारणीय विकास की आवश्यकता है ।


अतिथि परिचय आई.क्यू.ए.सी.प्रभारी डॉ महेश बाविस्कर एंव सेमिनार के सहसंयोजक प्रो इरशाद मंसूरी ने दिया । अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए डॉ वीणा सत्य अग्रणी महाविद्यालय बड़वानी की प्राचार्या ने कहा आपने शासन की मंशा के हिसाब से समसामयिक महत्व के विषय का चयन किया । समपोषणी विकास के लिए संतुलन जरूरी है जैसे कि सम मात्रा में लि गई दवा दवा है लेकिन वही दवा की अधिक मात्रा जहर भी है ।उन्होंने गोबर के बारे में बताते हुए कहा कि गोबर के सैकड़ों उत्पाद खोजें जा चुके हैं जो बेस्ट फार वेस्ट का बेहतर उदाहरण है ।जिसस हम हरित कौशल के द्वारा धारणीय विकास कर सकते हैं ।की नोट स्पीकर डॉ सुनील पाठक ऐसोसिएट प्रोफेसर शाहदा महाराष्ट्र ने कहा अच्छे से जीने के लिए पारंपरिक स्तोत्रो पर जाने की आवश्यकता महसूस होने लगी है ।उसके लिए नई टेक्नोलॉजी रुपी आपके कौशल की जरूरत है । उन्होंने अपने शोध-पत्र के माध्यम से केले और गन्ना की खेती को कम लागत से अधिक उत्पादन कैसे टिशुकक्चर पद्धति द्वारा किया जाता है उसे विस्तार से उदाहरण देकर बताया । आमंत्रित वक्ता डॉ अनिल बेलदार ने कहा कि हम पाश्चात्य आधुनिकता को पढ़ -सिख कर आगे बढ़ रहे हैं जबकि विदेशी हमारे पारंपरिक ज्ञान को सिख रहे हैं । जबकि धारणीय विकास के लिए प्राचीन भारतीय ज्ञान की आवश्यकता है । उन्होंने अपने प्रजेंटेशन में बताया कि हम हरित रसायन के द्वारा किस प्रकार प्रदुषण नियंत्रित कर सकते हैं । उन्होंने कई उदाहरण देकर बताया कि कैसे हम केमिकल प्रोसेस में उपयोग हो रहे विषैले पदार्थों को हरित पदार्थ से रिप्लेस कर धारणीय विकास का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है । प्रथम सत्र की रिपोर्टिंग डॉ एम एल अवाया ने , संचालन प्रो मनोज तारे एंव आभार प्रो प्रियंका यादव ने माना ।
द्वितीय सत्र के मुख्य वक्ता डॉ प्रमोद पंडित प्राध्यापक आदर्श महाविद्यालय बड़वानी ने बताया कि धारणीय विकास याने ऐसा विकास जो हमें जिस रूप में मिला है हमें उसी रुप में अगली पीढ़ी तक पहुंचाना है ।यह कब होगा जब जो पदार्थ जिस सिस्टम से बना है उसी सिस्टम के अनुसार समाप्त हो । उन्होंने कहा इस सेमिनार की सफलता तभी मानी जाएगी जब इस सेमिनार का शोध सारांश जमीनी स्तर और आम लोगों तक पहुंचे ।कहने -सुनने से उपर उठकर क्रियान्वयन करने की मनःस्थिति बनानी पड़ेगी । बहुत छोटे स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है फिर वह नदी में घर के भगवान पर चढ़ाएं फुल-साम्रगी बहाने का हो या फिर पराली जलाना है।उन्होने प्राध्यापक साथीयों से यही अपिल कि है कि आप जहां रहते हो ,काम करते हो वहां के धारणीय विकास को हमेशा बनाए रखें ।इस सत्र में डॉ राहुल सूर्यवंशी, डॉ चंदा यादव ने अपने अपने शोध-पत्र का वाचन किया ।इस सत्र का संचालन प्रो मनोज तारे एंव आभार प्रो दिपक मरमट ने माना ।
इस सेमिनार में भगवानपुरा महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ प्रकाश सोलंकी,एस एन महाविद्यालय खण्डवा से इंदुबाला सिंग , बड़वानी महाविद्यालय से डॉ सुनील मोरे , निवाली महाविद्यालय से डॉ किरण तावड़े, डॉ संतोषी अलावा , डॉ यशोदा चौहान , डॉ किशोर सोलंकी, डॉ संतरा चौहान,डॉ विक्रम जाधव,सहित शोधार्थी एंव महाविद्यालयीन स्टाफ उपस्थित थे।यह जानकारी सेमिनार के सहसंयोजक डॉ विकास पंडित ने दी।

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