सेंधवा; गुरूद्वारा में बंदी छोड़ दिवस व दिवाली का पर्व उत्साह से मनाया

सेंधवा। शहर में दीपावली पर्व धूमधाम से मनाया गया। वहीं गुरूद्वारा श्री गुरु सिंह सभा में दीपावली पर्व के साथ ही बंदी छोड़ दिवस भी उत्साह से मनाया गया। सिख समुदाय दीपावली के त्योहार के साथ इस त्योहार को बंदी छोड़ दिवस के रूप में भी मनाते हैं। यह त्योहार सिखों के तीन त्योहारों में से एक है। सिख इसे बड़े धूमधाम से मनाते हैं। बंदी छोड़ दिवस गुरु हरगोबिंद साहिब के ग्वालियर किले से मुक्त होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन सिख समुदाय के लोग धार्मिक समागमों का आयोजन करते हैं। कीर्तन और कथा करते हैं। आतिशबाजी करते हैं और गुरुद्वारों में दीप जलाते हैं। समाज के कैप्टन छाबड़ा ने बताया कि
बंदी छोड़ दिवस का इतिहास काफी पुराना है। जानकार बताते हैं कि मुगलों ने मध्य प्रदेश के ग्वालियर के किले को अपने कब्जे में ले लिया था। इसे जेल में तब्दील कर दिया था। उस वक्त मुगल सल्तनत के बादशाह जहांगीर थे। उन्होंने इस जेल में 52 राजाओं के साथ 6वें सिख गुरु हरगोबिंद साहिब को कैद रखा था। जब से बादशाह ने गुरु हरगोविंद साहिब जी को कैद किया था, तब से उसकी तबीयत बहुत खराब हो गई थी। हर जगह इलाज कराने के बाद भी उसकी सेहत में सुधार नहीं आ रहा था। तब उसे एहसास हुआ कि यह सब गुरु साहिब को कैद करने से हो रहा है। तब उसने गुरु साहिब को छोड़ने का फैसला किया, लेकिन गुरु साहिब जी ने कहा मैं यहां से अकेले नहीं जाऊंगा, बल्कि इन सभी को भी लेकर जाऊंगा। तब बादशाह ने कहा कि आपका चोला पकड़ कर जितने राजा निकल जाएंगे, उतनो को में रिहा कर दूंगा, बाकी सभी को यहीं कैद रहना होगा।
तब गुरु साहिब जी ने 52 कलियों वाला चोला सिलाया। सभी राजा एक-एक कली पकड़ कर बाहर निकल गए। फिर जब गुरु साहिब जी अमृतसर के हरिमंदिर साहिब पहुचें, तो सब संगत ने उनका दीपमाला जला कर स्वागत किया। तब से सिख समाज इस दिवस को बंदी छोड दिवस के रूप मे मनाते है और दीपमाला कर कर एक दूसरे को बंदी छोड दिवस की बधाईयां देते है।