23 की उम्र में अनिकेत चले वैराग्य की ओर, सेंधवा में वर्षीदान की परंपरा में लुटाई सांसारिक वस्तुएं

सेंधवा में निकला वरघोड़ा, जगह-जगह हुआ स्वागत।
सेंधवा। बैचलर ऑफ फाइनेंस मार्केटिंग करने के बाद शहर निवासी 23 वर्षीय मुमुक्षु अनिकेत शाह जैन दीक्षा ले रहे है। 14 दिसंबर को गुजरात के सूरत शहर में आचार्य भगवंत श्री कुलचंद्र सुरीश्वेर जी मसा के सानिध्य में मुमुक्षु अनिकेत शाह दीक्षा लेंगे। इसी अवसर पर शहर में बुणवार सुबह 10.30 बजे मुमुक्षु अनिकेत शाह का वर्षीदान वरघोड़ा जैन मंदिर से निकाला गया।
वरघोड़ा जुलूस मार्ग से होकर पुराना एबी रोड से होते हुए मंगल भवन पहुंचा। वर्षीदान वरघोड़े में अनिकेत शाह द्वारा लोगों को चावल, सिक्के, कपड़े, रुमाल बर्तन और अन्य वस्तुओं की पोटली बना हाथों में देकर वर्षीदान की परंपरा निभाई। वहीं कई जरूरतमंद लोगों को भी मुमुक्षु अनिकेत ने कपड़े, शाल और घरेलू समान जैसी कई वस्तुएं दी। शहर के गुजराती समाज, ब्राह्मण समाज, अग्रवाल समाज, वैश्य समाज सहित 40 से अधिक स्थानों पर मुमुक्षु अनिकेत शाह का स्वागत अभिनंदन किया।
वरघोड़े में आगे बच्चे लेझिम और डांडिया करते जा रहे थे। समाजजन दीक्षार्थी अमर रहे, आज का दिन कैसा हे सोने से भी महंगा है जैसे नारे लगा रहे थे। दोपहर को वरघोड़े का समापन मंगल भवन में हुआ। इस अवसर पर श्वेतांबर मूर्ति पूजक जैन संघ, वर्धमान स्थानक वासी जैन संघ, दिगंबर जैन संघ, आदिनाथ महिला मंडल, प्रेणना बहु मंडल, संयम बहु मंडल के सदस्य भी मौजूद थे।

साधु जीवन में पुण्य –
सांसारिक जीवन से साधु जीवन की ओर अग्रसर हो रहे अनिकेत ने मीडिया से चर्चा में कहा कि यदि सोचो तो संसार में कुछ भी नहीं है। सुबह उठो, काम पर जाओ, पैसे कमाओ और बस पैसे को पीछे भागो। आए दिन कुछ ना कुछ घटनाएं सुनने और देखने को मिलती हैं। कई प्रकार के अपराध हो रहे है। साधु जीवन में यह सब कुछ नहीं है। साधु जीवन में सुबह उठो, धर्म करो। वहां सिर्फ पुण्य ही मिलेगा। लेकिन यहां सांसारिक जीवन में पाप ही पाप है।

पढाई के दौरान आया दीक्षा लेने का भाव
मुमुक्षु अनिकेत शाह के पिता मनीष शाह ने बताया कि अनिकेत मुंबई में बैचलर ऑफ फाइनेंस मार्केटिंग की पढाई कर रहा था। इस दौरान उसने आचार्य के सानिध्य में मंदिर में सेवा की। करीब 8 महीने पहले सकल समाज के साथ में अनिकेत ने गिरनार जी जाकर भगवान नेमिनाथ के दर्शन किए थे। वहीं से उसके मन में दीक्षा लेने का भाव जागृत हुआ। घर आकर मुझे बार-बार दीक्षा लेने की अनुमति के लिए कहा तब मैंने अपन मन बड़ा करके उसे दीक्षा लेने की अनुमति दे दी।

दीक्षा के बाद नियमों का पालन –
गुजराती समाज अध्यक्ष निलेश जैन ने बताया कि जैन धर्म में दीक्षा लेना यानी सभी भौतिक सुख-सुविधाएं त्यागकर एक सन्यासी का जीवन बिताने के लिए खुद को समर्पित कर देना.। जैन धर्म में इसे चरित्र या महानिभिश्रमण भी कहा जाता है.। दीक्षा समारोह एक कार्यक्रम होता है। जिसमें होने वाले रीति रिवाजों के बाद से दीक्षा लेने वाले लड़के साधु साधु बन जाते है। जैन धर्म में दीक्षा लेने के बाद कई तरह के ठोस नियमों का पालन करना पड़ता है।
