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मानव को महामानव बनाते हैं सोलह संस्कार

यदि संस्कारों की व्यवस्था नहीं होती तो समाज कहां खड़ा होता, कहना मुश्किल है

इंदौर से विनोद गोयल की रिपोर्ट:—-

इंदौर, । सोलह संस्कारों की व्यवस्था केवल हमारे देश में ही मौजूद हैं। प्रत्येक संस्कार मानव जीवन को परिष्कृत कर उसे सभ्य और शालीन समाज के योग्य बनाता है। हर संस्कार की अपनी विशेषता और उपयोगिता होती है। संस्कारों के अभाव में मनुष्य पशुतुल्य माना जाता है। जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रत्येक मानव इन संस्कारों को आत्मसात कर अपने आपको महामानव बनाने के मार्ग पर प्रशस्त कर सकता है। यदि संस्कारों की व्यवस्था नहीं होती तो समाज कहां खड़ा होता, कहना मुश्किल है।

 ये दिव्य विचार हैं तिरुपति बालाजी मंदिर के पुजारी परिवार के सदस्य और 12 भाषाओं के विद्वान, 75 हजार परिवारों को गौ आधारित कृषि के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने वाले,  देश में गौसेवक एवं सनातन संस्कृति को समर्पित विद्वान के. ई. एन. राघवन के, जो उन्होंने बीती रात बड़ा गणपति स्थित हंसदास मठ पर आद्य गौड़ ब्राह्मण सेवा न्यास, हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा संस्थान, विश्व हिन्दू परिषद, हुमड़ जैन समाज ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में ‘सोलह संस्कारों का महत्व एवं उपयोगिता’ विषय पर  दो सत्रों में आयोजित व्याख्यान के दौरान व्यक्त किए। प्रारंभ में महामंडलेश्वर स्वामी रामगोपालदास, राधेश्याम शर्मा गुरूजी, पं. दिनेश शर्मा, पं. पवनदास शर्मा, साथ माधवन ने स्वस्ति वाचन के बीच दीप प्रज्ज्वलित कर इस अनूठे आयोजन का शुभारंभ किया। समाजसेवी गुणवंतसिंह कोठारी के मार्गदर्शन में हुए इस व्याख्यान में बड़ी संख्या में शहर के प्रबुद्धजन, सामाजिक-धार्मिक संगठनों से जुड़े पदाधिकारी मौजूद थे।

        मुख्य वक्ता राघवन ने प्रत्येक संस्कार की महत्ता को बड़ी गहराई से प्रस्तुत किया। उनके व्याख्यान के प्रति श्रोताओं की दिलचस्पी का आलम यह था कि दो सत्रों के बीच होने वाले मध्यांतर के लिए भी श्रेताओं ने मना कर दिया। बिना मध्यांतर के पूरे साढ़े तीन घंटों तक सोलह संस्कारों पर आधारित इस व्याख्यान को पूरी तन्मयता से निःशब्द होकर सुना गया।  समापन अवसर पर आयोजक संस्थाओं की ओर से राघवन का सम्मान किया गया।

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