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आपकी बात; पुलिस का तालिबानी कृत्य पूरे देश को शर्मसार करने वाला- रंजन श्रीवास्तव

आपकी बात
पुलिस का तालिबानी कृत्य पूरे देश को शर्मसार करने वाला
रंजन श्रीवास्तव

एक सप्ताह पूर्व 9 अक्टूबर को अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार के विदेश मंत्री का दिल्ली आगमन के साथ भारत दौरा शुरू हुआ. उसी दिन रात के समय दिल्ली से लगभग 800 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश में तालिबानी मानसिकता से चूर दो पुलिस आरक्षक बीटेक ग्रेजुएट 22 वर्षीय उदित गायकी के साथ अपना तालिबानी कृत्य दिखा रहे थे.
आरक्षकों द्वारा युवक के साथ बर्बरता तभी रुकी जब तक युवक बुरी तरह से घायल नहीं हो गया.
घटना लगभग 1.30 बजे रात की है. युवक की हालत ख़राब होने पर उसके दोस्त उसे अस्पताल ले गए पर अंदरूनी इतनी गहरी चोटें लगीं थीं कि युवक ने अस्पताल पहुँचने के पहले ही अपना दम तोड़ दिया.
यह घटना मध्य प्रदेश के किसी दूर दराज इलाके में नहीं बल्कि प्रदेश की राजधानी भोपाल में हुई जहाँ पूरी सरकार, प्रशासन और पुलिस के मुखिया मौजूद हैं. युवक भी किसी गरीब या सामान्य परिवार से सम्बंधित नहीं था बल्कि उसके पिता सहायक अभियंता हैं और जीजा पुलिस में ही डीएसपी.
युवक जो अपने दोस्तों के साथ इंद्रपुरी इलाके में अपने दोस्तों के साथ पार्टी सेलिब्रेट कर रहा था, की गलती (पुलिस की भाषा में इसे गलती ही कहा जायेगा) सिर्फ इतनी ही थी कि गश्त के दौरान जब पुलिस कर्मियों ने युवकों से पूछताछ शुरू की तो उदित भागने लगा.
पुलिस कर्मियों को उनकी ट्रेनिंग के दौरान और बाद में उनके अधिकारियों द्वारा संभवतः यही सिखाया गया होगा कि अगर उनको देखकर कोई भी व्यक्ति भागता है तो वह जरूर ही अपराधी या टेररिस्ट होगा और इसलिए उस व्यक्ति को पकड़कर उसके साथ इतनी बर्बरता की जानी चाहिए कि वह जिन्दा ना बचे.
ऐसा समझा जाता है कि युवक इसलिए वहां से भागा क्योंकि उसको लगा कि अगर पुलिस कर्मी उसे थाने ले जाते हैं तो उसके परिवार की बदनामी होगी.
दोस्तों का यह भी कहना है कि पुलिसकर्मियों ने 10000 रुपये की मांग की और पैसे नहीं देने पर उनके दोस्त के साथ बर्बरता की.
पिता का कहना है कि उनके बेटे को राइफल की बट से पीटा गया. उन्होंने यह भी कहा कि. “ये इंसाफ नहीं, जुल्म की हद है. एमपी में अब कानून नहीं, जंगल राज चल रहा है.”
इस बात के बावजूद कि घटना के बाद ही पता चल गया कि मृत युवक के जीजा पुलिस विभाग में ही हैं और बालाघाट में तैनात डीएसपी हैं सम्बंधित थाने ने या तो उच्च अधिकारियों के निर्देश पर या स्वयं पुलिसकर्मियों को बचाने के लिए अपनी रिपोर्ट में ‘हल्का बल प्रयोग’ शब्द लिखा.
पुलिस कर्मियों के बचाव में यह बात भी फैलाई गयी कि युवक की मौत किसी चोट की वजह से नहीं बल्कि हृदयाघात की वजह से हुआ है इस बात के बावजूद कि सीसीटीवी के फुटेज में पुलिसकर्मी युवक को बेरहमी से पिटाई करते नजर आ रहे थे.
इस घटना से दो दिन पूर्व ही प्रदेश के पुलिस महानिदेशक कैलाश मकवाना ने ट्विटर पर पूरे प्रदेश में पुलिसकर्मियों को यह संदेश दिया था कि “अनुशासन, संवेदनशीलता और प्रोफेशनलिज्म ही पुलिस का वास्तविक परिचय हैं. थाना स्तर पर जनता से संवाद करते समय संयम और सहानुभूति से पेश आएँ — यही पुलिस का मानवीय चेहरा और जनविश्वास दोनों को सशक्त करेगा.”
पुलिस महानिदेशक को शायद ही पता रहा होगा कि उनके निर्देशों की धज्जियाँ 48 घंटे की भीतर ही ठीक उनकी नाक के नीचे भोपाल में पुलिस उड़ा देगी.
दोनों आरक्षकों को घटना के तुरंत बाद निलंबित कर दिया गया तथा शुरूआती हीलाहवाली के बाद उनके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया गया. दोनों आरक्षकों को 12 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया तथा कोर्ट में पेश किया गया जहाँ से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
पुलिसकर्मियों द्वारा मध्य प्रदेश या देश के किसी अन्य भाग में बर्बरता और उसके कारण से हुए मौत की ना तो यह पहली घटना है और ना अंतिम पर इस तरह की बर्बरता के कारण पुलिस द्वारा किये जाने वाले अच्छे कार्य भी लोगों के जेहन से धूमिल होने लगते हैं.
अभी कुछ समय पहले ही पुलिस महानिदेशक के निर्देश पर पूरे प्रदेश में नशा के विरुद्ध अभियान चलाया गया. इसी वर्ष मध्य प्रदेश पुलिस के 4 अफसरों को राष्ट्रपति विशिष्ट सेवा और 17 को सराहनीय सेवा पदक से सम्मानित किया गया. इनमें 6 आईपीएस अफसर हैं और इतनी ही संख्या राज्य पुलिस सेवा के अधिकारियों की है.
कई संगीन अपराध जिनमें बलात्कार और हत्या जैसे अपराध हैं पुलिस ने त्वरित गति से विवेचना करके साक्ष्य जुटाए और परिणामस्वरूप न्यायालय में रिकॉर्ड टाइम में आरोपियों को सजा मिली.
सड़कों पर सीसीटीवी कैमरा तथा हाथों में स्मार्ट फ़ोन आने के बाद पुलिसकर्मियों द्वारा लोगों से दुर्व्यवहार या बर्बरता की घटनाएं लगातार सामने आती रहती हैं. इन घटनाओं में कुछ पर एक्शन होता है और कुछ फाइलों में दब कर रह जाते हैं.
भोपाल में घटित इस घटना के बाद एक बार फिर वे ज्वलंत सवाल फिर से सामने हैं कि क्या कारण है कि ऐसी बर्बरता की घटनाएं चाहे मध्य प्रदेश हो या देश का अन्य कोई भाग रुकने का नाम नहीं ले रहीं? कौन से ऐसे फैक्टर्स हैं जो कुछ पुलिस कर्मियों को रक्षक के बजाय भक्षक बना देती हैं? क्या कारण है कि पुलिस सुधारों की रिपोर्ट्स पर सिर्फ बातें होती हैं पर पुलिस के कामकाज में सुधार के लिए कोई ठोस काम नहीं होता?
क्या पुलिस थानों पर लिखे ‘जन सेवा -देश सेवा’ के नारे सिर्फ नारे बनकर ही रहेंगे या उनको पुलिस अपने जीवन में भी चरितार्थ करेगी? अगर नीचे के स्तर पर पुलिस बर्बरता कर रही है तो पुलिस अधिकारी जिनका काम पुलिस थानों के स्तर तक पुलिस के काम की निगरानी है वे क्या करते रहते हैं? क्या वे लाचार हैं या उनकी सहमति से ही ऐसी घटनाएं हो रही हैं?

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