आसक्ति और मोह से मुक्त हुए बिना आगे बढ़ना संभव नहीं
नरसिंह वाटिका में चल रहे चातुर्मासिक अनुष्ठान की धर्मसभा में प.पू. विश्वरत्नसागर म.सा

आसक्ति और मोह से मुक्त हुए बिना आगे बढ़ना संभव नहीं
नरसिंह वाटिका में चल रहे चातुर्मासिक अनुष्ठान की धर्मसभा में प.पू. विश्वरत्नसागर म.सा.
इंदौर। आसक्ति अथवा मोह से मुक्त हुए बिना धर्म के क्षेत्र में आगे बढ़ना संभव नहीं है। आसक्ति की कोई सीमा नहीं होती। धन, पुत्र, पत्नी, भाई सहित किसी भी वस्तु के प्रति आसक्ति हो सकती है। दूसरे शब्दों में यह मोह का ही स्वरूप है। धर्म के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए पहली पात्रता यही होना चाहिए कि हम आसक्ति से मुक्त हों। आसक्ति का त्याग किए बिना किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ना संभव नहीं है। शिष्य वही हो सकता है, जिसमें बिना शर्त समर्पण की भावना हो। जहां शर्त होगी, वहां शिष्यत्व नहीं हो सकता। पानी की बूंद समुद्र में मिलकर अपना अस्तित्व समाप्त कर लेती है, लेकिन वही बूंद विशाल सागर का हिस्सा भी कहलाती है।
अर्बुद गिरिराज जैन श्वेताम्बर तपागच्छ उपाश्रय ट्रस्ट पीपली बाजार, जैन श्वेताम्बर मालवा महासंघ एवं नवरत्न परिवार इंदौर के तत्वावधान में एयरपोर्ट रोड स्थित नरसिंह वाटिका पर चल रहे चातुर्मासिक अनुष्ठान में युवा हृदय सम्राट जैनाचार्य प.पू. विश्वरत्न सागर म.सा. ने सोमवार को महावीर स्वामी द्वारा रचित उत्तराध्ययन सूत्र की विवेचना के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। इस मौके पर आयोजन समिति की ओर से अध्यक्ष पारस बोहरा, संयोजक पुण्यपाल सुराणा, कैलाश नाहर आदि ने सभी समाजबंधुओं की अगवानी की। प.पू. विश्वरत्न सागर म.सा. की पावन निश्रा में चातुर्मास संयोजक ललित सी. जैन, दिलसुखराज कटारिया, प्रीतेश ओस्तवाल आदि ने लाभार्थी परिवारों का बहुमान किया। चातुर्मास प्रभारी दीपक सुराणा, शैलेन्द्र नाहर, अंकित मारू, रीतिश आशीष जैन, मोनीष खूबाजी एवं ऋषभ कोचर ने विभिन्न व्यवस्थाएं संभाली। धर्मसभा में शहर के अलावा आसपास के कस्बों और गांवों के श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में पुण्य लाभ ले रहे हैं।
धर्मसभा को मुनि प्रवर उत्तमरत्न सागर म.सा. ने भी संबोधित किया और कहा कि सम्यक दर्शन अर्थात अटूट श्रद्धा। श्रद्धा तभी सम्यक होगी, जब किसी भी तरह के लोभ या दबाव में आकर हम अपनी श्रद्धा को खंडित नहीं होनें देंगे। आजकल परिवारों में कई बार ऐसे हालात बन जाते हैं कि व्यक्ति घर जाने में भी संकोच करता है। ज्योतिषी और पंडित उन्हें कई तरह के टोटके बताकर समस्याओं से जूझने का रास्ता बताते हैं, लेकिन याद रखें कि जो कुछ हमारे साथ हो रहा है, वह हमारे पूर्व जन्मों के कर्मों का फल है, जो हमें भुगतना ही पड़ता है। हमारी श्रद्धा अटूट और अखंड रहेगी तो पुण्य की मात्रा भी उसी अनुपात में बढ़ेगी।
*आनंद कुमार सुपर 30 आएंगे*- गणिवर्य कीर्तिरत्न सागर म.सा. ने कहा कि खिलाकर खाओगे तो खिलखिलाकर रहोगे और खाकर खिलाओगे तो मुरझाए रहोगे। उनका आश्रय था कि तप और त्याग के आलम्बन से ही मनुष्य का तेज निखरता है। नरसिंह वाटिका पर मंगलवार से सिद्धि तप आराधना का क्रम शुरू होने वाला है। यह आराधना प.पू. विश्वरत्न सागर म.सा. के सानिध्य में रहकर करने का यह दुर्लभ अवसर हम सबको प्राप्त हुआ है तो इसे व्यर्थ न जाने दें। ऐसा अवसर बार-बार नहीं आता। चातुर्मास में अगले शनिवार को आनंद कुमार सुपर 30 जैसे मोटिवेशनल स्पीकर भी आएंगे, जिनके व्याख्यान का लाभ लेकर युवा अपने जीवन के लक्ष्य का निर्धारण कर सकते हैं। इसी तरह अगले रविवार, 20 जुलाई को ‘महापुरुषों की महागाथा’ का अनूठा आयोजन भी होगा।
उत्तराध्ययन सूत्र की विवेचना के दौरान विनय सूत्र की व्याख्या करते हुए प.पू. जैनाचार्य ने कहा कि दुनिया में क्रोध ओर द्वेष नाम की की चीज नहीं है, लेकिन हम सब उसके शिकार हैं। गुरू बनने की शुरूआत शिष्यत्व से ही होगी। पहले शिष्य बनो, फिर गुरू, लेकिन आजकल उल्टा हो रहा है। समर्पण का भाव जब तक रिश्तों में नहीं आएगा, तब तक रिश्ते भी मजबूत नहीं होंगे। पति-पत्नी, माता-पिता, भाई-बहन और अन्य सभी परिवार के रिश्तों के साथ-साथ अपने गुरू के प्रति भी समर्पण का भाव होना चाहिए। हम लोग धर्मसभा में गुरू को जो वंदन करते हैं, वह व्यक्ति को नहीं बल्कि उस महान परंपरा को वंदन है, जो आदिकाल से चली आ रही है। यह वंदन महावीर स्वामी द्वारा स्थापित परंपरा को भी पहुंचता है। आजकल रिश्तों में स्वार्थ हावी रहता है। मतलब रहता है तब तक सारे रिश्ते बने रहते हैं, लेकिन मतलब हल होते ही इंसान दोगली प्रवृत्ति का बन जाता है। गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले लोग भी होते हैं। जीवन में यदि सफल और सार्थक बनना है तो मोह, राग, द्वेष, क्रोध आदि का त्याग करना ही पड़ेगा।