प्रदेश की नई प्रस्तावित आबकारी नीति में खामियां आ रही नजर नई वित्तिय वर्ष में बढ़ेगी ड्यूटी।
अभी तक नीति ही घोषित नहीं, 17 जगह दुकानें बंद होने से नुकसानी का आकलन और भरपायी का फैसला नहीं!

आशीष यादव धार
नई आबकारी नीति वर्ष 2025-26 के प्रस्ताव में अभी तक कई तरह के पेंच फंसते दिखाई दे रहे हैं। यही वजह है कि 24 जनवरी को महेश्वर में आयोजित कैबिनेट बैठक में अनुमोदित इस नीति की घोषणा शासन द्वारा अभी तक नहीं की गई, यह गंभीर सवाल है। जिस तरह से आबकारी विभाग ने इस नीति का प्रस्ताव बनाया उसमें कई खामियां नजर आ रही है। यह भी कहा जा रहा है कि यह प्रस्तावित नीति जल्दबाजी में बनाई गई है। अब यदि इसमें संशोधन होता है, तो प्रस्तावित नीति को फिर से कैबिनेट में पारित कराना पड़ेगा। प्रस्तावित नीति में खामी का सबसे बड़ा मसला तो 17 स्थानों की दुकानें बंद होने से होने वाले राजस्व के नुकसान का आकलन और उसकी पूर्ति का रास्ता तक नहीं निकाला गया। इसके अलावा पहले यह निर्णय लिया गया कि सिंगल शॉप के आधार पर दुकानों का आवंटन टेंडर से किया जाएगा। फिर उसके स्थान पर समूह में दुकानें नीलाम करने का निर्णय लिया गया। यानी यहां भी पेंच आया।
शराब ठेकेदारों के मार्जिन को कम करने से प्रदेश के शराब व्यवसायी इस प्रस्तावित आबकारी नीति से असंतुष्ट दिखाई दे रहे हैं। जिन अफसरों ने यह प्रस्तावित नीति बनाई, उनके बारे में कहा जा रहा है कि इससे व्यवसाय से जुड़े ख़ास वर्ग को ही लाभ होगा। आबकारी नीति बनाने के लिए विभाग के फील्ड वाले अधिकारियों के साथ कोई चर्चा नहीं की गई। जबकि, ये अधिकारी ही इस नीति का क्रियान्वयन करते हैं। इस बार की आबकारी नीति बनाने में दो अधिकारियों का ही नाम लिया जा रहा है, जिन्हें विभाग के इस काम का कोई जमीनी अनुभव नहीं है।
मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुसार प्रदेश के 17 धार्मिक स्थलों से मदिरा दुकानों को बंद करने के फैसले को जनता के साथ विपक्ष ने भी सराहा। परंतु, अभी तक आबकारी विभाग यह निर्णय नहीं ले पा रहा, कि बंद होने वाली दुकानों का राजस्व कम कर दिया जाए या उसे आस-पास की दुकानों में जोड़ दिया जाए। यदि आस-पास की दुकानों में जोड़ा जाता है, तो फिर बंद करने की घोषणा की सार्थकता पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा। यदि कम कर दिया जाए, तो यह सरकार के बड़े राजस्व नुकसान का कारण बनेगा। वास्तव में यह निर्णय तो कैबिनेट की बैठक में ही लिया जाना था। इस विषय को विभाग द्वारा कैबिनेट के सामने ही नहीं रखा गया, जो कि विभाग के सूत्रों के मुताबिक, गंभीर चूक को दर्शाता है। आख़िर इस बड़ी लापरवाही के लिए कौन जिम्मेदार है!
सरकार के राजस्व नुकसान का निर्णय कौन करेगा और अभी तक आबकारी नीति जारी क्यों नहीं की गई, यह गंभीर मसला है। सरकार राजस्व के नुकसान का फैसला उस परिस्थिति में नहीं ले सकती, जब सरकार के ऊपर कई हज़ार करोड़ का क़र्ज़ है। यह भी जानकारी मिली कि एक बड़े डिस्टलर के दबाव में छोटे बार खोलने का प्रावधान प्रस्तावित नीति में शामिल किया गया है। क्योंकि, इससे ड्रॉट बियर का भरपूर उत्पादन हो सकेगा और इसका लाभ उस डिस्टिलर की जेब में जाएगा।
आबकारी आयुक्त एवं अधीनस्थ अधिकारियों में भी तालमेल नहीं है आज तक नीति विषयक चर्चा लाइसेंस धारियों और आबकारी अधिकारियों से भी नहीं की गई। सामान्य रूप से जनवरी द्वितीय सप्ताह तक नीति आ जाती है और कार्यक्रम जारी हो जाता है। लेकिन, इस वर्ष इसमें देरी होने से टेंडर के चरणों में कटौती करने के कारण राजस्व का नुकसान होता है तो उसके लिए क्या आबकारी आयुक्त स्वयं जिम्मेदार होंगे! क्योंकि, सहयोगी दोनों विवादित अधिकारियों के विरुद्ध दर्ज प्रकरण और गंभीर जांच को देखते हुए उन पर गाज गिरना तय है। बताया जाता है कि प्रमुख सचिव और आबकारी आयुक्त के बीच तालमेल नहीं होने से भी आबकारी नीति में खींचतान है और शासन को इससे राजस्व का बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में मुख्य सचिव का कठोर निर्णय लेना जरूरी हो गया है।