इंदौरधर्म-ज्योतिष
मन की विकृतियों को दूर कर संस्कारों का सृजन करती है रामकथा – पं. अभिषेकानंद

इंदौर, । आधुनिक समाज में एक –दूसरे से से आगे निकलने की होड़ में हम सबके जीवन में ईर्ष्या की मनोवृत्ति देखने को मिलती है। रामकथा इसी मनोवृत्ति से बचने का सबसे श्रेष्ठ माध्यम है। मन की विकृतियों को दूर कर संसकारों का सृजन रामकथा से ही संभव है। रामकथा केवल शरीर से नहीं, मन, बुद्धि और चित्त के साथ श्रवण करना चाहिए। श्रद्धा और विश्वास के बिना की गई भक्ति सार्थक नहीं हो सकती। रामकथा ऐसा माध्यम है जो हमें ऐसी कुबुद्धि से बचाकर अपने लक्ष्य की ओर पहुंचाने में सार्थक भूमिका अदा करती है।
मानस मर्मज्ञ पं. अभिषेकानंद महाराज ने लोहार पट्टी स्थित श्रीजी कल्याण धाम के वार्षिकोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित श्रीराम कथा में राम सीता विवाह प्रसंग के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व हंस पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी रामचरणदास महाराज के सानिध्य में पं. पवनदास शर्मा, पूर्व महापौर डॉ उमाशशि शर्मा, पंडित योगेंद्र महंत, कमलेश खंडेलवाल, गोविन्द शर्मा, पंडित कृपाशंकर शुक्ला, महंत ,श्याम अग्रवाल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया।
पं. अभिषेकानंद महाराज ने कहा कि हनुमानजी के लिए पहली प्राथमिकता अपने प्रभु राम की सेवा थी। सीताजी की खोज में जब वे लंका जा रहे थे तब रास्ते में स्वर्ण पर्वत मेनार्क ने उन्हें विश्राम करने का निमंत्रण दिया लेकिन रामकाज करने के लिए तत्पर रहने वाले हनुमान ने उनका निमंत्रण अस्वीकार कर दिया। हम सबके जीवन में भी इसी तरह के स्वर्ण पर्वत प्रलोभन की शक्ल में आते रहते हैं। वहां तो सोने का पर्वत था, हमारे लिए तो कोई एक सोने की गिन्नी भी दिखा दे तो सब कुछ छोड़कर उस गिन्नी के लालच में फंस जाते हैं। सरस्वती की पूजा से प्राप्त विवेक औऱ ज्ञान से अर्जित धन कभी अनिष्टकारी नहीं होता। शुभ और लाभ की मान्यता हमारे समाज में है, लेकिन लाभ ही शुभ है यह नहीं होना चाहिए। जीवन की धन्यता शुभ ही लाभ है, इसमें होती है। जीवन में अर्थ की अपेक्षा होना चाहिए, अनर्थ की नहीं। हनुमानजी ने लोभ के बजाय लाभ को प्राथमिकता दी और समुद्र को पार कर सीता मैया की शरण में पहुंचे।