इंदौर

कहानी चाहे किताब से निकले या स्क्रीन से, आज दोनों एक-दूसरे को मजबूती दे रही

इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल में दूसरे दिन गूंजे लोकगीत नए लेखकों के लिए अहम रहा आज का दिन, राइटिंग टूल्स और हैबिट्स पर हुई चर्चा

इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल में दूसरे दिन गूंजे लोकगीत
नए लेखकों के लिए अहम रहा आज का दिन, राइटिंग टूल्स और हैबिट्स पर हुई चर्चा

कहानी चाहे किताब से निकले या स्क्रीन से, आज दोनों एक-दूसरे को मजबूती दे रही

इंदौर। इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल के डेली कॉलेज का परिसर सुबह से ही कला और साहित्य के रंगों में डूबा दिखा। सूफी कथक की प्रस्तुति ने शुरुआत से ही माहौल को सुर और लय से भर दिया। लोग अपनी सीटों पर बैठते ही इस अलौकिक प्रस्तुति में खो गए। इसके बाद स्थानीय कवियों ने शहर की धड़कन, रिश्तों और रोज़मर्रा की छोटी-छोटी बातों को अपनी कविताओं में पिरोकर श्रोताओं का मन जीत लिया।

लोकराग की धमाकेदार प्रस्तुति ने सभागार में तालियों की गूंज भर दी। इसी दौरान निमाड़ी साहित्य के वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री जगदीश जोशी ‘जगदीश जोशीला’ का सम्मान किया गया। मंच पर यह पल बेहद भावुक रहा, जहां साहित्य, भाषा और लोकधुनें एक साथ नज़र आईं। संगीत पर आगे बढ़ते हुए पंडित गौतम काले ने “सुर कैसे साधें” पर अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि संगीत सिर्फ कला नहीं, अनुशासन और साधना है, और इसे साधने के लिए मन का रियाज़ ज़रूरी है।

प्रवासी भारतीय साहित्यकारों में ब्रिटेन से आई दिव्या माथुर, अमेरिका से आई मंजू श्रीवास्तव, जापान से आई रमा पूर्णिमा शर्मा, नीदरलैंड से ऋतु शर्मा पांडे एवं सुषमा पारिजात के सत्र ने दर्शकों को भाषा और भावनाओं की असली ताकत से रूबरू कराया। विदेशों में रहकर हिंदी को जिंदा रखने की यात्राएँ, चुनौतियाँ और प्रयास सुनकर दर्शकों ने कई बार तालियाँ बजाईं। उन्होंने साझा किया कि हिंदी अब दुनिया के अलग-अलग देशों में नए घर बना रही है।

इसके बाद डॉ. विकास दवे ने “संकल्प से बदल दी सूरत” में बताया कि दृढ़ निश्चय किस तरह परिस्थितियों को पलट सकता है, इसके उदाहरणों ने श्रोताओं को खूब प्रेरित किया।

इसके बाद डॉ. विकास दवे ने “संकल्प से बदल दी सूरत” में बताया कि दृढ़ निश्चय किस तरह परिस्थितियों को पलट सकता है, इसके उदाहरणों ने श्रोताओं को खूब प्रेरित किया।

लोकतंत्र पर हुई संगोष्ठी में डॉ. ममता चंद्रशेखर, शोभा जैन एवं डॉ. प्रतीक श्रीवास्तव के बीच “एक राष्ट्र, एक चुनाव” को लेकर सरल भाषा में गहरी और संतुलित चर्चा हुई। वहीं कविता पर चर्चा में वक्ताओं ने बताया कि आज की कविता अपनी लय बदल रही है, सोशल मीडिया और मंचों की वजह से कविता अब और अधिक इंटरएक्टिव हो गई है।

अंग्रेज़ी लेखकों के साथ नए युग के लेखन में कपिल राज, बिशाल पॉल ने आधुनिक लेखन शैली, डिजिटल प्लेटफॉर्म और वैश्विक पाठक वर्ग की पसंद पर बेबाक बातचीत की। राइटिंग टूलकिट सत्र नए लेखकों के लिए खास आकर्षण रहा, जिसमें अनिश कंजलाल, आनंद प्रसाद, नितीश भूषण ने लेखन बेहतर करने के प्रैक्टिकल तरीक़े बताए। इस सत्र का संचालन गरीमा द्विवेदी और डॉ. ईशा तिवारी ने किया।

क्राइम फिक्शन और टेक्नोलॉजी पर हुए सत्र में अभिनेत्री एवं लेखिका वसुंधरा ने बताया कि डिजिटल युग ने रहस्य कथाओं की भाषा व संरचना में बड़ा बदलाव लाया है। उनके साथ बातचीत स्नेहा शर्मा ने की। मार्केटिंग पर हुए सत्र “मार्केटिंग मिक्सोलॉजी” में प्रसिद्ध ब्रांड रणनीतिकार अंबी परमेस्वरन ने ब्रांड, कहानी और उपभोक्ता मनोविज्ञान पर बेहद सरल और दिलचस्प बातें साझा कीं। इस संवाद का संचालन नवीन खंडेलवाल ने किया।

“हिंदी में भी हो रही धनवर्षा” सत्र में हिंदयुग्म के सीईओ शैलेश भारतवासी, लेखक अंकुश कुमार की चर्चा में श्रोताओं ने पाया कि आज डिजिटल दुनिया में हिंदी कंटेंट की मांग सबसे तेजी से बढ़ रही है, और नए लेखकों के लिए पूरा नया बाज़ार खुल चुका है।

“मीडिया–स्क्रीन और साहित्य का संगम” सत्र में विजय मनोहर तिवारी ने बताया कि कहानी चाहे किताब से निकले या स्क्रीन से, आज दोनों एक-दूसरे को मजबूती दे रहे हैं।

शाम को माजिद खान और उनकी टीम फिर मंच पर आए और “पधारो म्हारे देस” की प्रस्तुति से दर्शकों को राजस्थान की खुशबू से भर दिया। थोड़ी देर बाद माहौल में हँसी की बरसात तब हुई जब पारितोष त्रिपाठी मंच पर आए। उन्होंने गीत, हास्य और इश्क भरी बातों से दर्शकों को खूब गुदगुदाया।
रात का समापन लोकप्रिय साइको शायर अभि मुंडे के धमाकेदार शो से हुआ। उनकी कविताओं, अंदाज़ और प्रस्तुति पर युवाओं ने जोरदार तालियाँ बजाईं।

आयोजन समिति के प्रमुख प्रवीन शर्मा ने कहा,
“दूसरे दिन जिस तरह लोगों ने हर सत्र को प्यार दिया, वह बताता है कि इंदौर की सांस्कृतिक धड़कन कितनी मजबूत है। दिनभर चले कार्यक्रमों में एक बात साफ नज़र आई—इंदौर सिर्फ साहित्य पढ़ता नहीं, उसे जीता है। साहित्य, कला, संगीत और संवाद, सब एक ही मंच पर मिले और लोगों ने हर विषय को दिल से अपनाया। यही इस फेस्टिवल की सबसे बड़ी सफलता है।”

दिया, वह बताता है कि इंदौर की सांस्कृतिक धड़कन कितनी मजबूत है। दिनभर चले कार्यक्रमों में एक बात साफ नज़र आई—इंदौर सिर्फ साहित्य पढ़ता नहीं, उसे जीता है। साहित्य, कला, संगीत और संवाद, सब एक ही मंच पर मिले और लोगों ने हर विषय को दिल से अपनाया। यही इस फेस्टिवल की सबसे बड़ी सफलता है।”

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