इंदौर

इंदौर के व्यापार को टेक्स फ्री ज़ोन बनाने के लिए 1718 वर्ष पहले परगने के राजा नंदलाल मंडलोई ने की थी अनेक राजाओं से संधि

आज शहर के प्रथम राजा के 294 वे बलिदान दिवस पर होगा छत्रियों का पूजन, बड़ा रावला में भी होगा गादी पूजन

इंदौर के व्यापार को टेक्स फ्री ज़ोन बनाने के लिए 1718 वर्ष पहले परगने के राजा नंदलाल मंडलोई ने की थी अनेक राजाओं से संधि

आज शहर के प्रथम राजा के 294 वे बलिदान दिवस पर होगा छत्रियों का पूजन, बड़ा रावला में भी होगा गादी पूजन

इंदौर,। बहुत कम लोगों को पता होगा कि इंदौर के प्रथम शासक एवं संस्थापक राव राजा राव नंदलाल मंडलोई ने सबसे पहले 3 मार्च 1716 को शहर से किए जाने वाले व्यापार को सम्पूर्ण भारतवर्ष में कर मुक्त करवाया था। इसके लिए उन्हें सवाई राजा जयसिंह के साम्राज्य से संधि, मुग़ल साम्राज्य से सनत एवं बाजीराव बल्लाल से संधि करना पड़ी थी। यह राव राजा राव नंदलाल मंडलोई की ही दूरदृष्टि थी कि आज के स्मार्ट इंदौर या महानगर इंदौर की नींव 1718 वर्ष पहले रख दी गई थी। सन 1700 में ही उन्होंने इंदौर परगने की राजधानी कम्पेल से बदलकर इंदौर को बनाया था। आज जिस बड़ा रावला को हम जूनी इंदौर क्षेत्र में देख रहे हैं, उस बड़ा रावला में छत्रपति शिवाजी महाराज, स्वामी विवेकानंद, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एस राधाकृष्णन, भारत रत्न जयप्रकाश नारायण, संत मदर टेरेसा, बोहरा समाज के धर्मगुरु बुराहनुद्दीन सैयदना, भारत रत्न पं. रविशंकर, जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती एवं भारत माता मंदिर हरिद्वार के संस्थापक एवं शंकराचार्य स्वामी सत्यमित्रानंद सहित देश की अनेक हस्तियाँ आ चुकी हैं।

इंदौर स्थापना दिवस समारोह समिति की ओर से सोमवार को सुबह 9.30 बजे राव राजा राव नंदलाल मंडलोई के 294 वे बलिदान दिवस के उपलक्ष्य में बड़ा रावला में उनकी गादी वाले स्थान की विशेष साज-सज्जा कर परिवार के सभी सदस्य मिलकर पूजा करते हैं। वर्तमान में मंडलोई परिवार की सोलहवी पीढ़ी के राव राजा श्रीकांत मंडलोई, उनके पुत्र युवराज वरदराज, रानी साहिबा माधवी मंडलोई जमींदार एवं उनकी पुत्री निवासरत हैं। इस बड़ा रावला में नंदलाल मंडलोई की गादी के साथ ही कुल 13 चौक, हाथीखाना एवं घुडसाल भी बने हुए हैं। राव राजा राव नंदलाल मंडलोई एवं उनके वंश को राजा विक्रमादित्य के दरबार में वराह मिहिर का वंशज माना जाता है। इस राज परिवार की 8 गढ़ियों में से एक गढ़ी यह बड़ा रावला भी है, जो उस समय का राजमहल था। तब इस राजमहल के सामने ख्याता (कान्ह) नदी एवं पेढ़ी घाट है जो शहर के सबसे प्राचीनतम घाट हैं। यह स्थान दो नदियों के संगम के करीब होने से तपस्वियों के लिए पवित्र स्थान माना जाता रहा है। इस महक के निर्माण में काले पत्थरों, लकड़ी, चूने एवं अन्य पुरातन निर्माण सामग्री का उपयोग हुआ है। मंडलोई परिवार श्री गौढ़ ब्राह्मण कुल का राजवंश है।

अनेक मोहल्लों के नाम मंडलोई परिवार के सदस्यों के नाम – शहर के अनेक पुराने हिस्सों के नाम आज भी मंडलोई परिवार के नाम पर हैं। नंदलालपुरा का नामकरण राव राजा राव नंदलाल मंडलोई के नाम पर, रानी साहिबा गौतम बेन के नाम पर गौतमपुरा, राजा तेजकरण के नाम पर तेजकरणपुरा, दौलतराव के नाम पर दौलतगंज तथा नवलखा क्षेत्र का नाम इसलिए नवलखा हुआ कि यहाँ राव राजा छत्रकरण ने आम के 9 लाख पेड़ उस ज़माने में लगवाए थे। 

आज के इंदौर की नींव 3 मार्च 1716 में तब रखी गई थी जब राव राजा राव नंदलाल मंडलोई ने इंदौर को व्यापारिक राजधानी बनाने के उद्देश्य से तिरला युद्ध के बाद देश के विभिन्न राजाओं से संधि कर सियागंज क्षेत्र के व्यापार को पूरे देश में कर मुक्त कराया था। उस दौर में सियागंज को टेक्स फ्री जोन कराने से इंदौर का व्यापार पूरे देश में फैलता चला गया। तब शहर से बाहर के व्यापारी भी कारोबार के लिए इंदौर आने लगे थे। तिरला में हुए युद्ध में राव राजा राव नंदलाल मंडलोई ने मुगलों से जमकर युद्ध कर विजयश्री प्राप्त की, जिसमें 12 हजार सैनिक शहीद हुए थे। इस युद्ध के दो माह बाद नंदलाल जी ने अपनी देह त्यागी थी। उनकी छत्रियां दौलतगंज एवं चम्पाबाग में बनी हुई है, जहाँ सोमवार को सामूहिक पूजा-अर्चना के बाद शहीदों के परिजनों के सहायतार्थ वेलफेयर फंड में सहायता राशि प्रदान की जाएगी। बड़ा रावला स्थित उनकी गादी का पूजन भी किया जाएगा।

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