पांढुर्णा गोटमार मेला: पत्थरों की बारिश में 1000 घायल, दो नागपुर रेफर Pandhurna Gotmar Mela: A tradition soaked in blood and injuries
जाम नदी किनारे परंपरा के नाम पर पत्थरबाजी, प्रशासन की सख्ती बेअसर

मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्णा में आयोजित गोटमार मेले में इस बार भी हिंसक परंपरा देखने को मिली। शनिवार को दिनभर चले पथराव में करीब 1000 लोग घायल हो गए। इनमें से दो गंभीर घायलों को नागपुर रेफर किया गया है। प्रशासन की ओर से धारा 144 लागू करने और बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात करने के बावजूद स्थिति पर काबू नहीं पाया जा सका।
जाम नदी किनारे सुबह 10 बजे शुरू हुआ गोटमार शाम करीब 7.30 बजे तक चलता रहा। इस दौरान पांढुर्णा और सावरगांव के हजारों लोग आमने-सामने आ गए और एक-दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाए। घटना में कई लोगों के हाथ-पैर और कंधे टूट गए। घायलों में पांढुर्णा निवासी ज्योतिराम उईके का पैर टूट गया, जबकि निलेश जानराव का कंधा फ्रैक्चर हो गया।
स्वास्थ्य व्यवस्था और सुरक्षा प्रबंध
घायलों के उपचार के लिए नदी किनारे प्रशासन ने 6 अस्थायी स्वास्थ्य शिविर स्थापित किए थे। यहां 58 डॉक्टर और 200 मेडिकल स्टाफ तैनात था। सुरक्षा व्यवस्था के लिए 600 पुलिस जवानों को लगाया गया। कलेक्टर अजय देव शर्मा ने धारा 144 लागू की थी, लेकिन पत्थरबाजी पर कोई असर नहीं पड़ा और परंपरा बदस्तूर जारी रही।
परंपरा की शुरुआत और मान्यता
गोटमार की शुरुआत जाम नदी में चंडी माता की पूजा के बाद होती है। इसके बाद सावरगांव के लोग जंगल से पलाश का पेड़ लाकर नदी के बीच गाड़ते हैं। इस झंडे को लगाने की जिम्मेदारी हर साल सुरेश कावले का परिवार निभाता है। इसके बाद पथराव शुरू होता है, जिसमें सावरगांव के लोग पेड़ और झंडे की रक्षा करते हैं, जबकि पांढुर्णा के लोग कब्जे की कोशिश करते हैं। अंत में झंडा टूटने के बाद दोनों पक्ष मिलकर पूजा कर परंपरा को विराम देते हैं।
1955 से अब तक 13 मौतें
साल 1955 से लेकर 2023 तक गोटमार में 13 लोगों की जान जा चुकी है। इनमें से तीन एक ही परिवार के थे। कई लोग आंखें और हाथ-पैर खो चुके हैं। बावजूद इसके यह परंपरा हर साल दोहराई जाती है। परंपरा से जुड़े परिवारों का दावा है कि गोटमार लगभग 400 साल पुरानी है। जिन परिवारों ने अपने प्रियजनों को खोया है, उनके लिए यह दिन शोक दिवस जैसा होता है।