विविध

बाल निकेतन संघ में ‘यादों के झरोखे से’ पुस्तक का लोकार्पण

पूर्व छात्रा कल्याणी मदान ने साझा किए छात्र जीवन के अनुभव, सहपाठियों का हुआ भावुक पुनर्मिलन

बाल निकेतन संघ में ‘यादों के झरोखे से’ पुस्तक का लोकार्पण

• पूर्व छात्रा कल्याणी मदान ने साझा किए छात्र जीवन के अनुभव, सहपाठियों का हुआ भावुक पुनर्मिलन
• डॉ. नीलिमा अदमने और डॉ. जनक पलटा ने पद्मश्री शालिनी ताई मोघे की विरासत को याद कर दी श्रद्धांजलि

इंदौर, । बाल निकेतन संघ, पागनीसपागा, इंदौर एक भावनात्मक और ऐतिहसिक अवसर का साक्षी बना। संस्था की पूर्व छात्रा और लेखिका श्रीमती कल्याणी मदान की पुस्तक ‘यादों के झरोखे से’ का विमोचन संस्था परिसर में संपन्न हुआ। संस्था में आयोजित `यह कार्यक्रम केवल एक पुस्तक विमोचन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह पुराने साथियों, स्मृतियों और जीवन की अनमोल कहानियों को पुनर्जीवित करने का भी उत्सव बन गया। कार्यक्रम के दौरान कल्याणी मदान जी ने विशेष रूप से बाल निकेतन संघ की संस्थापिका पद्मश्री शालिनी ताई मोघे और दादा साहब के के योगदान को याद किया।

पुस्तक विमोचन समारोह में कल्याणी मदान के सहपाठी भी शामिल हुए। सभी ने एक बार फिर उसी वातावरण को महसूस किया, जिसमें उन्होंने अपनी पढ़ाई और जीवन के शुरुआती अनुभव साझा किए थे। कई सहपाठियों ने मंच से बोलते हुए उन घटनाओं और स्मृतियों का उल्लेख किया जब उन्होंने साथ मिलकर कठिनाइयों का सामना किया, परीक्षाओं की तैयारी की, खेलकूद और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लिया।

कल्याणी मदान द्वारा लिखित यह पुस्तक उनके बाल निकेतन संघ में बिताए गए आठ सुनहरे वर्षों का गहन चित्रण है। पुस्तक में उन्होंने संस्था के वातावरण, शिक्षकों की प्रेरणा, अनुशासन और मूल्यों की शिक्षा के साथ-साथ सहपाठियों के साथ जुड़ी आत्मीयता और दोस्ती के पलों को विस्तार से उकेरा है। ‘यादों के झरोखे से’ में उन्होंने न केवल अपने अनुभवों को संजोया है बल्कि उन सामूहिक यादों को भी शब्द दिए हैं, जिन्हें उनके बैच के हर छात्र-छात्रा ने महसूस किया। इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने यह संदेश देने का प्रयास किया है कि शिक्षा केवल ज्ञान का संग्रह नहीं बल्कि जीवनभर की दिशा देने वाली धरोहर होती है।

लेखिका कल्याणी मदान ने इस अवसर पर भावुक होकर कहा कि बाल निकेतन संघ ने ही उनके जीवन की नींव रखी। उन्होंने बताया कि यहाँ मिले संस्कार और शिक्षा ने उन्हें आत्मनिर्भर, संवेदनशील और दृढ़ व्यक्तित्व का निर्माण करने में मदद की। *उन्होंने कहा कि* “यह पुस्तक उनके लिए केवल एक साहित्यिक रचना नहीं है, बल्कि अपने सहपाठियों, शिक्षकों और संस्था को समर्पित श्रद्धांजलि है। उनके शब्दों ने उपस्थित हर व्यक्ति को भावुक कर दिया और सबने उनके इस प्रयास की सराहना की। उन्होंने कहा कि ताई और दादा साहब की सोच और कार्यशैली ने न केवल उन्हें बल्कि पीढ़ियों को जीवन के सही मूल्य सिखाए। शालिनी ताई मोघे जैसी विभूतियों के सान्निध्य में पढ़ने और सीखने का अवसर मिलना मेरे जीवन की सबसे बड़ी पूँजी है। यह पुस्तक उसी प्रेरणा का परिणाम है। मैं इसे अपने सहपाठियों, शिक्षकों और बाल निकेतन संघ को समर्पित करती हूँ।”

एक अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया कि जब भी विद्यालय में दिव्यांग बच्चों के लिए कोई विशेष आयोजन होता था, तो दादा साहब स्वयं नंगे पैर पूरे परिसर और मैदान में घूमकर यह सुनिश्चित किया करते थे कि कहीं कोई नुकीली वस्तु बच्चों को चोट न पहुँचा दे।

बाल निकेतन संघ की सचिव डॉ. श्रीमती नीलिमा अदमने ने भावुक शब्दों में कहा कि भले ही शालिनी ताई आज शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका मार्गदर्शन हमेशा हमारे साथ रहा है। उन्होंने कहा – “कई मौकों पर हमारी शिक्षिकाओं ने अनुभव किया है कि जब वे किसी उलझन या कठिनाई में फंसती हैं, तब जैसे उन्हें आभास होता है कि शालिनी ताई उनका मार्गदर्शन कर रही हैं। वास्तव में शालिनी ताई की शिक्षा और उनके संस्कार हमारे बीच हमेशा जीवित रहेंगे। वे जीवनभर हमारी यादों और हमारी शिक्षा का हिस्सा रहेंगी। मैं कल्याणी का आभार व्यक्त करती हूँ कि उन्होंने इन अनमोल यादों को पुस्तक के रूप में संजोकर हम सबको एक धरोहर सौंप दी है। साथ ही, मैं उन सभी सहपाठियों को भी धन्यवाद देती हूँ जिन्होंने इतने वर्षों बाद भी संस्था से अपना जुड़ाव बनाए रखा है और आज इस कार्यक्रम में उपस्थित होकर इसकी शोभा बढ़ाई है।”

समारोह में पर्यावरणविद् डॉ. जनक पलटा भी मौजूद रहीं। उन्होंने शालिनी ताई मोघे को याद करते हुए कहा – “शालिनी ताई का नाम पूरे भारतभर में समाजसेविकाओं में बड़े आदर से लिया जाता था। जब भी उन्हें समाज में कोई समस्या दिखती, तो वे बेचैन हो उठतीं और उसका समाधान खोजने के लिए स्वयं निकल पड़तीं। उन्होंने जो काम समाज के लिए किए, वे सबके सामने हैं। आज जब इतने वर्षों बाद उनके विद्यार्थी यहाँ एकत्रित हुए हैं और दुनिया के अलग-अलग कोनों से यहाँ पहुँचे हैं, तो यह शालिनी ताई की शिक्षा और संस्कारों का ही प्रताप है। इस किताब के माध्यम से उनकी प्रेरणा और शिक्षाएँ अमर हो गई हैं। जब तक यह दुनिया रहेगी, शालिनी ताई का नाम और उनका योगदान जीवित रहेगा। उनकी शिक्षा हमें निरंतर प्रेरित करती रहेगी कि हम समाज सेवा के नए-नए कार्यों के लिए समर्पित बने रहें। मैं संस्था और प्रबंधन को हार्दिक शुभकामनाएँ देती हूँ कि वे आज भी उसी परंपरा और संस्कारों को बच्चों में रोपित कर रहे हैं।”

कार्यक्रम का समापन सभी पूर्व छात्राओं और वर्तमान शिक्षक शिक्षिकाओं के बीच आत्मीय संवाद के साथ हुआ। इस दौरान पुराने दिनों की बातें, साझा किए गए अनुभव और भविष्य में संस्था से जुड़े रहने की प्रतिबद्धता ने पूरे माहौल को आत्मीयता से भर दिया। यह विमोचन समारोह केवल एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं रहा, बल्कि यह बाल निकेतन संघ की परंपरा, शिक्षा और अपनत्व की उस विरासत का उत्सव बन गया जिसे हर पीढ़ी याद रखेगी।

Show More

Related Articles

Back to top button