इंदौरधर्म-ज्योतिष

ज्ञान के बिना सम्यक ज्ञान व दर्शन नहीं- विशुद्ध सागर

सुमतिधाम बना जैनियों का महाकुंभ, आचार्य विशुद्ध सागर ने की प्रवचनों की अमृत वर्षा, श्रावक-श्राविकाओं ने लिया आशीर्वाद

भजनों पर झूमे समाज बंधु, लाभार्थी परिवार ने की आचार्यश्री के सान्निध्य में संपन्न की विधियां

इन्दौर । जिनालाय का निर्माण नक्शे में नहीं आया, पत्थर में नहीं आया लेकिन सबसे पहले बुद्धि में आया। जो बुद्धि में आता है वही नक्शे पर आता है और जो नक्शे पर आता है वही आकार पत्थर पर आता है। जो बुद्धि में आता है वही आचरण में आता है और उसका फल निर्माण होता है। महिमा ज्ञान की गाना चाहिए। ज्ञान के बगैर सम्यक दर्शन नहीं और ज्ञान के बिना सम्यक चारित्र नहीं। ज्ञान की निर्मलता व ज्ञान के निर्णय के अभाव में शरीर की बहुत सारी साधना उत्पन्न हो जाती है और शरीर की साधना करते करते व्यक्ति मूढ़ हो जाता है। यदि ज्ञान की साधना प्रारम्भ हो जाए तो शरीर की साधना अपने आप हो जाती है। शरीर की साधना से सिद्धि प्राप्त करने का नियम नहीं है। अगर व्यक्ति ज्ञान साधना में डूब जाएगा तो उसे शरीर की साधना करनी ही पड़ेगी। ऐसा कभी नहीं हो सकता की ज्ञान साधक शरीर साधना नहीं करेगा। यह बात जैनाचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज ने गांधी नगर गोधा एस्टेट में आयोजित 6 दिवसीय पंचकल्याणक महोत्सव के चतुर्थ दिन शनिवार को बड़ी संख्या में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को सम्बोधित करते हुए कहीं। उन्होंने अभिभावकों समझाते हुए कहा कि भारत के बच्चों को विदेश जाने की आवश्यकता ही नहीं है। यदि यहां की प्रज्ञा को समझ लिया तो सारे विश्व की आंखें भारत की ओर होंगी। आपको यह समझना होगा कि तुम जहां जा रहे हो वहां प्रज्ञा कि न्यूनता है और पापों की प्रचुरता है। यहां जो बुद्धि में आता है वह नक्शे पर आता है।

पंचकल्याणक महामहोत्सव समिति आयोजक मनीष-सपना गोधा ने बताया कि शनिवार को पंचकल्याणक महोत्सव में दीक्षा एवं तप कल्याणक महोत्सव का उत्सव मनाया गया। सुबह शांतिधारा के साथ ही प्रतिष्ठाचार्य प्रदीपकुमार जैन मधुर (मुंबई), सह-प्रतिष्ठाचार्य चंद्रकांत गुंडप्पा इंड़ी (कर्नाटक), पं. नितिनजी झांझरी (इन्दौर), विधानाचार्य पीयूष प्रसून (सतना) एवं तरूण भैय्याजी (इन्दौर) के सान्निध्य में सुबह के सत्र में पूजन की सभी विधियां संपन्न कराई। सुबह सुमतिनाथ भगवान की बाल क्रीड़ा को नाटक से मंचित किया गया। वहीं इसके पश्चात आचार्यश्री ने प्रवचनों की अमृत वर्षा की। दोपहर में भगवान सुमतिनाथ के शासन एवं राज्याभिषेक का दृश्य नृत्य नाटिका के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। महोत्सव के दौरान भजन गायकों ने अपने सुमधुर भजनों की प्रस्तुति से सभी श्रावक-श्राविकाओं के साथ ही कल्याण भवन में उपस्थित सभी जैन धर्मालुजनों को मंत्रमुग्ध कर दिया। सुमतिधाम पर आने वाले सभी समाजजन अब इसे जैनियों का मिनी महाकुंभ नाम से भी जान रहे हैं। मनीष-सपना गोधा ने बताया कि रविवार 10 मार्च को ज्ञान कल्याणक महोत्सव मनाया जाएगा। रविवार को यहां आने वाले लोगों की संख्या को ध्यान में रखते हुए विशेष व्यवस्थाएं की गई है। सोमवार 11 मार्च को मोक्ष कल्याणक महोत्सव के साथ ही इस 6 दिवसीय पंचकल्याणक महामहोत्सव का समापन होगा।

सुमतिनाथ के साथ 24 तीर्थंकरों की प्रतिमाओं ने मोहा मन

सुमतिधाम पर आयोजित देश का सबसे बड़ा व भव्य पंच कल्याणक महोत्सव में प्रतिदिन अलग-अलग उत्सव मनाए जा रहे हैं। भजन गायक पहले दिन से ही इस उत्सव में अपने भजनों से चार-चांद लगा रहे हैं। इन्दौर सहित अन्य राज्यों के श्रावक-श्राविकाओं का उत्साह यहां देखते ही बनता है। सुमतिधाम में विराजित भगवान सुमतिनाथ की प्रतिमा सभी को समोहित कर रही हैं तो वहीं 24 तीर्थंकरों के दर्शन भी यहां लोग कर रहे हैं। नूतन जिनालय सुमतिधाम का आकर्षक बनावट यहां आने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है। कलाकारों द्वारा की गई पत्थरों पर कारिगरी देखते ही बनती है। नूतन जिनालय के निर्माण में लोहखंड का उपयोग नहीं किया गया है।

चार भोज शालाओं में अलग-अलग मैन्यू

पंचकल्याणक महोत्सव में आने वाले मेहमानों के लिए अलग-अलग भोज शाला बनाई गई हैं। इन भोज शाला में प्रतिदिन अलग-अलग मैन्यू बनाए जा रहे हैं। अतिथियों, इंद्र-इंद्राणी, समाज बंधु एवं आर्टिस्टों के लिए बनाई गई इन चार भोज शालाओं को स्नेह भोज, वात्सल्य भोज, द्वारका भोज एवं मधुबन भोज नाम दिए गए हैं। जहां प्रतिदिन 25 से 30 हजार समाज बंधु जैन भोजन ग्रहण कर रहे हैं।

सत्य में विकल्प नहीं

आचार्यश्री विशुद्ध सागर ने श्रावक-श्राविकाओं को प्रवचनों की अमृत वर्षा करते हुए कहा कि सत्य, सत्य है, देखने की आंख अपनी है। सत्य को जीव अपनी आंख से जैसा देखता है और उसे देखते-देखते सामाजिक, राजनीतिक, साम्प्रदायिक रूप दे देता है और समय बीतने पर एक नया सत्य सामने आ जाता है। जबकि सत्य शांत और तटस्थ था, सत्य में विकल्प नहीं था। आचार्य श्री ने कहा कि वस्तु, जीव, पुदगल, धर्म, अधर्म सभी तटस्थ हैं लेकिन जीव के विकल्पों ने नाना रूप खड़े कर दिए हैं। सत्य के पक्ष से दूर होकर सुख, अधिकार का पक्ष जिसके सामने आ गया वही सत्य का ज्ञाता नहीं बन सकता। जिस प्रकार वस्तु अनंत है, सनातन है वैसे ही जैन धर्म त्रेकालिक है। देखने वालों से वस्तु का निर्णय नहीं होता। जो निर्णय बदले हैं उन्हें भी ध्यान में रखना होगा। आपने श्रावक श्रविकाओं को ज्ञान, धर्म व अध्यात्म के बारे में बताया।

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