विवाह भारतीय समाज और संस्कृति का सबसे उजला पक्ष –दीनबंधुदास बिजली नगर स्थित बिजलेश्वर
महादेव मंदिर परिसर में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में धूमधाम से मना रुक्मणी विवाह-

विवाह भारतीय समाज और संस्कृति का सबसे उजला पक्ष –दीनबंधुदास बिजली नगर स्थित बिजलेश्वर
महादेव मंदिर परिसर में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में धूमधाम से मना रुक्मणी विवाह- आज समापन
इंदौर, । भगवान श्रीकृष्ण ने भारतीय समाज को अपनी लीलाओं से अनेक ऐसे संदेश दिए हैं, जो हर युग में प्रासंगिक हैं। पश्चिम की संस्कृति में विवाह सात दिन और सात माह के लिए होता है लेकिन भारतीय समाज सात जन्मों के परिणय बंधन को निभाता है, यही हमारे परिवारों और समाज की नैतिक ऊंचाईयों का प्रमाण है। रूक्मणी विवाह नारी के प्रति भगवान के मंगलभाव एवं उद्धार का संदेश देने वाला प्रसंग है। विवाह भारतीय समाज और संस्कृति का सबसे उजला पक्ष है। भगवान की सभी लीलाएं जीव मात्र के लिए कल्याणकारी होकर हर युग में प्रासंगिक होती है।
मलूक पीठाधीश्वर जगदगुरू द्वाराचार्य स्वामी राजेन्द्रदास देवाचार्य के परम शिष्य, वृंदावन के महामंडलेश्वर स्वामी दीनबंधुदास महाराज ने शुक्रवार को बंगाली चौराहा के पास बिजली नगर स्थित बिजलेश्वर महादेव मंदिर परिसर पर चल रहे संगीतमय भागवत ज्ञानयज्ञ में रुक्मणी विवाह एवं अन्य प्रसंगों की कथा के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा में विवाह का जीवंत उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया। कृष्ण और रूक्मणी ने एक-दूसरे को वरमाला पहनाई तो समूचा कथा मंडप जयघोष से गूंज उठा। महिलाओं ने बधाई गीत गाकर अपनी खुशियां जताई। कथा शुभारंभ के पूर्व पंचकुइया राम मंदिर के महामंडलेश्वर स्वामी रामगोपालदास महाराज के सानिध्य में श्रीमती पूनम सिकरवार, श्रीमती कृष्णा सिकरवार, श्रीमती रचना गौर, श्रीमती दीप्ति मिश्रा, प्रीति गौर, गजेन्द्र गौर, अनिल सैनी, मोहित मोघे, शुभम पाटीदार, अनिल रघुवंशी आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। विद्वान वक्ता की अगवानी एवं संतों का स्वागत विशाल सिंह सिकरवार, राम गौर, विकास मिश्रा, रोहित मिश्रा, सत्यमसिंह गोल्डी आदि ने किया । संगीतमय भजन संकीर्तन का मनोहारी सिलसिला भी पहले दिन से चल रहा है। संयोजक विशाल ठाकुर ने बताया कि बिजली नगर में भागवत कथा का समापन 26 अप्रैल को सायं 4 से 7 बजे तक द्वारिका लीला, सुदामा एवं परीक्षित मोक्ष के प्रसंगों के साथ होगा।
महामंडलेश्वरजी ने कहा कि भारत भूमि सामाजिक मर्यादाओं के दायरे में रहकर ही फल-फूल रही है। विवाह हमारी संस्कृति का श्रेष्ठतम अलंकरण है। हम जीवन के पहले दिन से मृत्यु तक सोलह संस्कारें में जीते हैं, और इन्हीं संस्कारों में से एक है – विवाह। भगवान कृष्ण और रूक्मणि का विवाह नारी शक्ति के प्रति मंगल भाव का सूचक है। विवाह एक अटूट बंधन है जो दो परिवारों के साथ ही मर्यादा एवं धर्म-संस्कृति को भी जोड़ता है।