रानी काजल माता की पूजा अर्चना कर शुरू की आस्था पैदल यात्रा
-गांव-गांव में गांववासियों द्वारा आदिवासी पारंपरिक वाद्य यंत्र बजा कर यात्रा का स्वागत किया गया।

सत्याग्रह लाइव, सेंधवा।
संस्कृति, प्रकृति, संविधान एवं लोकतंत्र संरक्षण अनवरत यात्रा के तीसरे चरण की शुरुआत शनिवार को सेंधवा ब्लॉक के ग्राम नवलपुरा से रानी काजल माता की पूजा अर्चना कर की गई। ग्राम नवलपुर से यह यात्रा ग्राम बोरली, पीपल्या गोई, घुड़चाल, कालापाट, झापड़ी पाड़ला, राजगड़ उपला, ढाबा, पांजरिया से होकर ग्राम पलास पानी में पहुँचकर रात्रि विश्राम किया। जिन-जिन गांव से होकर यात्रा गुजरी उन गांव में आदिवासी समाज के धार्मिक आस्था केंद्र पालिया बाबा, गाताबाबा, गाँव काकड़, बाबदेव, भीलट देव, हिंदला बाबा, हनुवंत बाबा आदि की पूजा अर्चना कर आशीर्वाद लिया। यात्रा गांव में पहुंचने पर गांव पटेल, गांव डाहला, गांव पुजारा, गांव वारती एवं गांववासियों द्वारा आदिवासी पारंपरिक वाद्य यंत्र ढोल बजाकर यात्रा का स्वागत किया गया। संस्कृति, प्रकृति, संविधान एवं लोकतंत्र संरक्षण एवं आस्था पैदल यात्रा के उद्देश्यों को बताते हुए पोरलाल खरते ने कहा कि जब हमारे गांव की उत्पत्ति होती है या नया गांव बसाया जाता है तब हमारे पूर्वज गांव बसाने से पहले हमारे पूर्वज पाल्या बाबा, गाता बाबा, रानी काजल माता, भीलट देव, हनुमत बाबा को पहले बसाते हैं, ताकि हमारा गांव सुरक्षित रहे। हमारे गांव की सीमा के अंतर्गत रहने वाले सभी जीव-जंतु सुरक्षित रहे। फसल अच्छी पके, कोई आपदा एवं महामारी नहीं आए। समय-समय पर फसलीय त्यौहार दितवारिया, दिवास, नवाई, दिवावी आदि त्यौहार मना कर पूर्वजों एवं प्रकृति की पूजा की जाती है।
लेकिन आज हमारे समाज की नई पीढ़ी हमारी संस्कृति एवं परंपरा को भूलते जा रही हैं, इसे हमें बचाना होगा।
आदिवासी समाज प्रकृति पूजक है-
आदिवासी समाज प्रकृति के अनुरूप जीवन यापन करता है, प्रकृति पूजक है, वह प्रकृति से उतना ही लेता है जितना उनको आवश्यकता होती है, वह प्रकृति को कभी नुकसान नहीं पहुंचाता है। लेकिन आज विकास के नाम पर प्रकृति का विनाश किया जा रहा है, जिसका खामियाजा हमें बाढ़, भूकंप, अधिक गर्मी व वर्षा एवं कोरोना जैसी महामारी के रूप में भुगतना पड़ रहा है।
आदिवासी समाज उसकी पूजा करता है, जिससे उनका जीवन चलता है। जिसे वह महसूस करता है, जैसे धरती मां, चाँद, सूरज, हवा, पानी आदि। इन सब के बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है अर्थात जिससे हमारा जीवन चलता है, उन्हें सुरक्षित रखने की हम सब की जिम्मेदारी है। प्रकृति सुरक्षित रहेगी तो सारी दुनिया सुरक्षित रहेगी।
यह रहे मौजूद-
इस दौरान दूरसिंह पटेल, परसराम सेनानी, सिलदार सोलंकी, रूपसिंह सरपंच , अनिल रावत, प्रकाश बंडोड़, भावेश खरत, त्रिलोक सोलंकी, तुली चौगड़,अमिल डुडवे, विजय सेनानी, विजय सोलंकी, कांतिलाल ब्राह्मने, नेमाराम बर्डे, वाहरसिंह सेनानी, गुच्छा जमरा सरपंच, धरम सिंह पटेल, सीताराम बर्डे, महेंद्र सेनानी, शिवलाल बर्डे, मानसिंह अहिरे, बहादुर कोठारी, रामेश्वर नरगावें, संदीप लोहारिया आदि कार्यकर्ता साथ में चल रहे हैं।